मेरे सपनों ने मुझे सुला कर रक्खा …
मेरे अपनों ने मुझे जगा कर रक्खा …
यूँ तो मुस्कान रही चेहरे पर हमेशा,
पर उदासी ने गला दबा कर रक्खा …
जीने के लिए चलना बहुत ज़रूरी था,
पर मन को शीत कब्र बना कर रक्खा …
कोई टूट कर मुझे चाहे मुमकिन ना था,
पर इस ख्वाहिश ने मुझे मिटा कर रक्खा …
मेरे मंसूबों में कहीं बहुत दम तो था,
पर सियासत ने मुझे झुका कर रक्खा …
रंग फीका हो न कभी वफ़ा का ‘गुँचा’,
उस के वादों ने मुझे सजा कर रक्खा …
Author: Neelam Nagpal Madiratta
कर रक्खा
मेरे सपनों ने मुझे सुला कर रक्खा ... मेरे अपनों ने मुझे जगा कर रक्खा ... यूँ तो मुस्कान रही चेहरे पर हमेशा, पर उदासी ने गला दबा कर रक्खा ... जीने के लिए चलना बहुत ज़रूरी था, पर मन को शीत कब्र बना कर रक्खा ... कोई टूट कर मुझे चाहे मुमकिन ना था, पर इस ख्वाहिश ने मुझे मिटा कर रक्खा ... मेरे मंसूबों में कहीं बहुत दम तो था, पर सियासत ने मुझे झुका कर रक्खा ... रंग फीका हो न कभी वफ़ा का 'गुँचा', उस के वादों ने मुझे सजा कर रक्खा ... Author: Neelam Nagpal…
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