सुखद सांस

वो क्रूरता का पुजारी था
अर्थियों का व्यापारी था
उसका न कोई मजहब था
ना ही कोई जात थी
उसने अस्पताल तक को ना छोड़ा
मंदिर मस्जिद को भी तोडा
इनके आकाओं ने सोचा
भारत तो अमन का सौदागर है
माफ़ कर ही देगा

जबकि अंत में तुम्हारे जमीर ने ही..
तुम्हे नही किया माफ़..
अल्ला से फरियाद कर
पश्चाताप के दावानल में जलते रहे
तुम्हारे आका जेहाद के, धर्म के नाम से
तुम्हे छलते रहे..
हमारे शर्माजी..करकरेजी की शहादत
खुशबू खो नही सकती
आज बदल गई हमारे वतन की फिजां !

Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)

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