खाकी का ऐसा खौफ तो ठीक नहीं!

IDS Live - News & Infotainment Web Channel
कीर्ति राणा

पुलिस की वर्दी का ऐसा खौफ भी हो सकता है क्या? यह प्रश्न परेशान किए हुए है। जो घटना देखने-पढ़ने में आई है वह यह कि इंदौर के विजयनगर थाना क्षेत्र स्थित कृष्णबाग कॉलोनी में शनिवार की रात दो पुलिसकर्मी किसी रमेश नामक व्यक्ति का मकान तलाश रहे थे। एक मकान के नीचे रामकिशन नामक आटो चालक खड़ा था। पुलिस वालों ने उससे रमेश का पता पूछा। यह सारा माजरा मकान की दूसरी मंजिल से गीताबाई पति रामकिशन देख रही थी। पति से पुलिसवालों की बातचीत देख वह घबरा गई। वह तेजी से नीचे की ओर आने लगी कि पैर फिसला, संतुलन बिगड़ा और दूसरी मंजिल से वह नीचे आ गिरी, वही पुलिस जवान और अन्य लोग उसे एमवायएच ले गए लेकिन बचाया न जा सका।तीन बच्चे और पति इस हादसे से अवाक हैं।

क्या वाकई आमजन में खाकी वर्दी का इतना खौफ है ? क्या पुलिस जवान किसी नागरिक से वर्दी में बातचीत भी करें तो अन्य लोगों में यह प्रभाव ही पड़ता है कि निश्चित ही उस आदमी ने कोई अपराध किया होगा, पुलिस जवान उसी संदर्भ में पूछताछ कर रहे हैं। इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में तो साबित होगा नहीं कि मौत का कारण खाकी वर्दी का खौफ है। पुलिस अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर के ऐसी शंका वाले कारण आधारित पीएम रिपोर्ट न आने दे यह भी संभव है। जब तक कारण सामने नहीं आता तब तक तो खाकी वर्दी का खौफ ही माना जाएगा, तो क्या मृतका के परिवार को किसी तरह की आर्थिक मदद का हक नहीं बनता? आनंद मोहन माथुर जैसे किसी वरिष्ठ अधिवक्ता के संज्ञान में ‘वर्दी के खौफ से हुई मौत’ का मामला आ जाए तो यह मुकदमा अनूठा हो सकता है।या खुद पुलिस ही अपना संवेदनशील चेहरा आगे लाए और इस परिवार की मदद के लिए हाथ बढ़ाए।

इस घटना पर मनोवैज्ञानिकों को भी चिंतन करना चाहिए कि निरपराध आमजन के मन में खाकी का ऐसा खौफ आज तक दूर क्यों नहीं हो पाया है।पुलिस पर काम का दबाव, तनाव का ही यह आलम है कि अधिकांश पुलिसकर्मी अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा पर कम ध्यान दे पाते हैं, यह बात अलग है कि स्कूलों में बच्चों के बीच खूब ज्ञान बांटते हैं।

खाकी के खौफ का इससे हास्यास्पद पहलु और क्या होगा कि आज भी जब किसी के मकान में चोरी की वारदात होती है तो पीड़ित व्यक्ति पहले मोहल्ले, कॉलोनी के प्रभावी व्यक्ति से फोन लगवा कर रिपोर्ट लिखे जाने की सिफारिश करवाता है फिर थाने में दाखिल होने का साहस घिघियाते हुए करता है। यानी खाकी का खौफ जिन अपराधी तत्वों में होना चाहिए वे तो बेखौफ होकर घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं, पुलिस से सेटिंग होने पर ही कोर्ट में पेश होने का इंतजाम कर लेते हैं, गिरफ्तारी हो भी जाए तो जुलूस-मारपीट से बचने के तरीके तलाश लेते हैं।

सिर्फ पुलिस ही नहीं, सरकार और समाज को भी मिल बैठकर सोचना चाहिए कि पुलिस और आम जन में दोस्ताना संबंध की कवायदें क्यों नहीं सफल हो रही हैं।गीताबाई की इस मौत से पुलिस को भी अपनी वर्दी, कार्य, व्यवहार पर मंथन का मौका मिला है । ऐसा क्यों होता है कि ड्यूटी खत्म कर के वह अपने घर में भी पुलिस जवान के रूप में ही प्रवेश करता है। गालियों की बौछार वहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ती, पिता-भाई की जिम्मेदारी निभाते हुए भी उसका अदृश्य पुलिसिया खौफ क्यों घर में भी मंडराता रहता है?

Review Overview

User Rating: Be the first one !

: यह भी पढ़े :

मगरमच्छ के आसुंओ में डूब गई न्याय की उम्मीद

श्री बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर बावड़ी हादसा हुवा तब हादसे में पीड़ितों को बचाने का …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »