इतने बड़े कुनबे के साथ रहना भी जैसे एक गुनाह हो गया है। इंसान तो क्या, कोई वायरस भी यहाँ सुकून से नहीं रह सकता। भारत आकर कोरोना भी ज्यादा सुखी नज़र नहीं आ रहा है। कल ही मिला था मुझे मेरे ढोकले के ठेले पर। ढोकले के ठेले की भी अपनी कहानी है। ढोकला हमेशा से ही मेरा बैकअप प्लान रहा है। इधर नौकरी गई, उधर ढोकला तैयार। वैसे भी दफ़्तर की खिड़की से देखने पर ढोकले वाला ही ज्यादा कमाता हुआ नज़र आता था। हाँ, ठेले की जगह कोई मुक़म्मल दुकान भी ली जा सकती थी। मगर ठेले के अपने फायदे हैं। उसे कहीं भी ठेला जा सकता है। खासकर अब, जबकि प्रशासन ने दुकानें लैफ्ट राइट के हिसाब से खोलने का अद्भुत प्रयोग किया है। ऐसे में ठेला एक दिव्य आत्मा सा मालूम होता है जो इस लैफ्ट राइट की मोह माया से परे है।
हाँ तो हुआ यूँ कि सुबह-सुबह मैंने अपने ठेले पर अगरबत्ती फिराकर, परम पराक्रमी निम्बू मिर्ची लटकाया ही था कि मुआ कोरोना आ धमाका। उसे देखते ही मैंने नाक मुँह सिकुड़ते हुए, सैनेटाइजर से भरी बोतल उसके मुँह पर दे मारी और अपने श्री मुख से प्राकृतिक सैनेटाइजर की फुहारें भी उस पर छोड़ दी। इतने तीखे प्रहार के बाद वो पीछे वाली नाली में गिरते-गिरते बचा। अधमरी हालत में वो बौखला कर बोला “ये क्या तरीका है, पहले कम से कम मेरी बात तो सुन लेती।” मैंने कहा “मैं थाने के पिछवाड़े रहती हूँ और पुलिस का अनुसरण करती हूँ, पहले लात फिर बात।”
ये सुनकर थका-मांदा सा कोरोना मुड़े पर आकर बैठ गया। मैंने कहा “देखो तुम यहाँ नहीं बैठ सकते। आज लैफ्ट वाली दुकानें खुलने की बारी है और इस हिसाब से तुम्हें राइट में होना चाहिए।”
वो बोला “तुम लोग मुझे गुमराह करने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन मैं भी धुन का पक्का हूँ, ऐसे जाने वाला नहीं।”
मैं सुनककर बोली “ज्यादा शेखी न बघारो। दो कौड़ी की इज़्ज़त ना रही तुम्हारी इस देश में। हज़ारों साल पहले हमारे यहाँ कलियुग आया था। राजा परीक्षित ने उसे रहने के कुछ ठिकाने बताये थे। वो आज भी मान सम्मान के साथ वहीं रह रहा है। एक तुम हो कि मुँह उठाए कहीं भी चले जाते हो, और तो और बच्चन साहब के घर भी चले गए।“
“मगर बच्चन साहब तो राइट में ही थे” वो सिर खुजाता हुआ बोला।
“हाँ मगर साफ सुथरे भी तो थे, और इस हिसाब से वो तुम्हारा इलाका नहीं था।“ मैंने उसका मार्गदर्शन करते हुए कहा।
“तो मेरा इलाका कौन सा है?” उसने एक नए नवेले गुंडे की तरह प्रश्न किया।
“ये तुम अपने बाप से पुछो” मैंने शशिकला की तरह नैन मटकाते हुए कहा।
“मेरा बाप कौन है?” उसने भावुक होकर पूछा।
“वो तुम्हारी माँ जाने। अब तुम यहाँ से जाओ। किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी” मैंने एक घबराई हुई प्रेमिका की तरह कहा।
“कहाँ जाऊँ, लैफ्ट में या राइट में?” उसने बड़ी मासूमियत से पुछा ।
कहीं भी जाओ, लगे तो भाड़ में जाओ, मगर मेरा पीछा छोड़ो” मैंने तुनकते हुए कहा।
“ये भाड़ कहाँ है?” उसने फिर सवाल किया।
तभी प्रशासनिक अधिकारियों का दिव्य रथ वहां प्रकट हुआ। मैंने तुरंत गले में लटका मास्क नाक पर चढ़ा लिया और कोरोना से दो गज की दूरी बना ली। पराए देश में बिना माई-बाप का कोरोना चुपचाप राइट साइड वाली भाड़ में जाकर खड़ा हो गया।
✍️सारिका गुप्ता