मेरे मन की, पिता के मन की,
सारे भावों को जान लेती है।
ज़िन्दगी को मुद्दत से देखती आई है,
हर दुख-दर्द को सहती आई है।
अपने ऊपर हर कष्ट लेकर,
आँचल का छाँव देती आई है॥
मेरी दादी माँ, मेरे और मेरे पिता के,
संग संग हर पल, हर वक़्त रहती है॥
मेरे मन की, पिता के मन की,
सारे भावों को जान लेती है।
ज़िन्दगी को मुद्दत से देखती आई है,
हर दुख-दर्द को सहती आई है।
अपने ऊपर हर कष्ट लेकर,
आँचल का छाँव देती आई है॥
मेरी दादी माँ, मेरे और मेरे पिता के,
संग संग हर पल, हर वक़्त रहती है॥
खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे…!! “और बीच में लिखी…
महारास की अमृतमय पूर्णिमा, भगवान श्रीकृष्ण, चंद्रमा और 16 कलाएंभगवान श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से युक्त संपूर्ण अवतार माने जाते हैं लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने चंद्रमा की 16 कलाओं से संयुक्त शरद…