मुंबई में जन्मे और मैट्रिक की पढ़ाई के बाद 17 साल की उम्र में वैराग्य ले लिया। घर छोड़कर 5 साल तक भारत भ्रमण किया। साल 1955 में लंगोट पहने 25 साल का यही युवा जब खरगोन के तेली भट्याण गांव पहुंचा तो मूसलाधार बारिश हो रही थी।
बाबा यहां किस तिथि को आए, यह किसी को याद नहीं, पर उस दिन एकादशी थी। बाबा ने एक बरगद के पेड़ के नीचे आश्रय लिया और एक कुटिया बना ली। आते ही 12 वर्ष तक इसी पेड़ के नीचे खड़े रहकर मौन साधना की। कई माह तक सिर्फ नीम की पत्ती व बिल्वपत्र का ही सेवन किया। बाबा का असली नाम कोई नहीं जानता था।
इस कठोर तपस्या के बाद बाबा ने पहला शब्द- सियाराम कहा। तब से इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। बाबा रोज ब्रह्ममुहूर्त में नर्मदा में स्नान करते व रामचरित मानस पाठ करते। आश्रम में भक्त बाबा को लाखों का चढ़ावा चढ़ाते। बाबा 10 रु. से एक भी पैसा ज्यादा नहीं लेते। यही 10-10 रु. जोड़कर जनसेवा के लिए बाबा ने करोड़ों रुपए दान दिया। नागलवाड़ी भीलट मंदिर में 2.57 करोड़ व 2 लाख का चांदी का झूला दान किया।
आश्रम के सामने एक करोड़ की लागत से घाट बनवाया। भट्याण-ससाबड़ रोड पर 5 लाख की लागत से यात्री प्रतीक्षालय भी बनवाया। इसके अलावा, बाबा ने ढाई लाख रुपए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भी दान किए। जामघाट गेट के समीप स्थित पार्वती मंदिर में बाबा ने 20 लाख रुपए नकद, सोने के आभूषण व चांदी का छत्र दान किया।
बाबा नर्मदा परिक्रमा करने वालों के लिए सदाव्रत (हमेशा अन्न बांटने का व्रत) भी चलाते थे। जो आश्रम में रात में विश्राम नहीं करते थे, उन्हें कच्चा सामान भी देते थे।
गुजरात के काठियावाड़ में जन्म, मुंबई में हुई पढ़ाई
संत सियाराम बाबा का जन्म गुजरात के काठियावाड़ में हुआ। बाबा के पिता मुंबई में नौकरी करते थे। बाबा की मैट्रिक तक पढ़ाई मुंबई में ही हुई। उनके परिवार में दो बहने और एक भाई थे। भाई-बहन और पिता की मौत के बाद बाबा को 17 साल की आयु में वैराग्य हुआ और वे घर छोड़कर चल पड़े।
पांच साल तक भारत भ्रमण के साथ मानसरोवर की यात्रा की। भ्रमण के दौरान ही बाबा भट्याण पहुंचे थे। सेवादार बताते हैं कि बाबा ने ही बातों-बातों में बताया था कि जब वे मुंबई में पढ़ रहे थे, तब फिल्म बैजू-बावरा की शूटिंग भी देखी थी। बाबाजी यह भी बताते थे कि उन्होंने गांधीजी को देखा है।
बाबा की माता जी एक हाथ से खाना बनाती थी और दूसरे हाथ में गीता रखकर पढ़ती थी। इन्हीं संस्कारों के बीच बाबाजी का बाल्यकाल बीता था। बाबा को हिंदी के अलावा गुजराती, मराठी व अंग्रेजी भाषा भी बहुत अच्छे से आती थी।
तेली भट्यान के रहने वाले मोतीराम बिरला (35) पिछले 22 साल से बाबा से जुड़े हैं। अंतिम दिनों में भी वे बाबा के साथ थे। मोतीराम बताते हैं कि 28 नवंबर से बाबा का स्वास्थ्य खराब होने लगा था। कुछ दिन सनावद के मोरी अस्पताल में इलाज चला। जब वापस आश्रम लाया गया, तो बाबा ने सेवादारों से कहा था, ‘अब मेरा शरीर साथ नहीं दे रहा, कमजोर हो गया है, कोई भरोसा नहीं है।’ तीन मंजिल आश्रम में बाबा का गादी स्थान नीचे है। बाबा ने सेवादारों से कहकर इस कक्ष में ईंटों की चार फीट ऊंची दीवार बनवा दी थी। उन्होंने कहा था कि इस तरफ का हिस्सा मेरा और दूसरा हिस्सा आने वाले भक्तों के लिए होगा।
बाबा ने बोला था- मोदीजी के काम बाद में दिखेंगे
बिरला का कहना है कि यूं तो बाबा आश्रम पर आने वाले साधु-संतों, परिक्रमावासियों की आवाभगत करते थे, लेकिन नेता, अधिकारियों से ज्यादा बातचीत नहीं करते थे। बावजूद एक बार टीवी पर न्यूज देखते समय हमने उनसे पूछा कि मोदीजी हमेशा विदेश घूमते रहते हैं। ये कुछ करेंगे कि नहीं, तो बाबा ने तपाक से बोला था कि ये जो करेंगे, इसका प्रभाव अभी नहीं, आने वाले सालों में दिखेगा।