गोवर्धन पूजा महत्व मुहूर्त विधि एवं कथा

गोवर्धन पूजा भारत के प्रमुख त्योंहारों में से एक है जो दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। और इसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है।

इसका विशेष महत्व है। विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में…इस वर्ष गोवर्धन पूजा 2 नवंबर शनिवार यानी कल है।

दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को अन्नकूट और गोवर्धन की पूजा की जाती है।
मुख्यतः, ये प्रकृति की पूजा है…जिसका आरंभ भगवान श्री कृष्ण ने किया था। इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है। ये पूजा ब्रज से आरंभ हुई थी और धीरे धीरे पूरे भारत में प्रचलित हो गई।

गोवर्धन पूजा की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 1 नवबंर यानी आज शाम को 6 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 2 नवंबर यानी कल रात 8 बजकर 21 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, इस बार गोवर्धन और अन्नकूट का त्योहार कल 2 नवंबर को ही मनाया जाएगा।

गोवर्धन पूजन के लिए ये मुहूर्त रहेंगे

  • एक मुहूर्त सुबह 6 बजकर 34 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा.
  • दूसरा मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 23 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगा.
  • तीसरा मुहूर्त शाम 5 बजकर 35 मिनट से लेकर 6 बजकर 01 मिनट तक रहेगा.

गोवर्धन पूजन विधि
इस दिन सबसे पहले शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करें। इसके बाद घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं. साथ ही उस पर्वत को घेरकर आसपास ग्वालपाल, पेड़ और पौधों की आकृति बनाएं. उसके बाद गोवर्धन के पर्वत के बीचोंबीच भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या तस्वीर लगाएं।

इसके बाद गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा करें. पूजन करने के बाद अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करें. इसके बाद भगवान कृष्ण को पंचामृत और पकवान 56 भोग इत्यादि का भोग लगाएं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो लोग गोवर्धन पर्वत की प्रार्थना करते हैं, उन लोगों की संतान से संबंधित समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

गोवर्धन पूजा की कथा
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक अद्भुत लीला रची।

श्री कृष्ण में देखा कि एक दिन सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे और किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे। इसे देखते हुए श्री कृष्ण जी ने माता यशोदा से पूछा कि यह किस बात की तैयारी हो रही है?

श्री कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा माता ने बताया कि इंद्रदेव की सभी ग्राम वासी पूजा करते हैं जिससे गांव में ठीक से वर्षा होती रहे और कभी भी फसल खराब न हो और अन्न धन बना रहे। उस समय लोग इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट चढ़ाते थे।

यशोदा मइया ने श्री कृष्ण जी को यह भी बताया कि इंद्र देव की कृपा से ही अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है।

इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि फिर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव तो कभी प्रसन्न नहीं होते हैं और न ही दर्शन देते हैं।

इस बात पर बृज के लोग इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर इंद्र देव क्रोधित हुए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इंद्रदेव ने इतनी वर्षा की कि उससे बृज वासियों को फसल के साथ काफी नुकसान हो गया।

ब्रजवासियों को परेशानी में देखकर श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़े समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा।

इस बात पर इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा की गति को और ज्यादा तीव्र कर दिया। तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर विराजमान होकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इंद्र लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें कृष्ण जी की पूजा की सलाह दी।

ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र ने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और उनकी पूजा करके अन्नकूट का 56 तरह का भोग लगाया। तभी से गोवर्घन पर्वत पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में 56 भोग चढ़ाया जाने लगा।

गोवर्धन पर्वत गोबर का क्यों बनाया जाता है
ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण को गायों से अत्यंत प्रेम था और वो गायों तथा बछड़ों की सेवा किया करते थे। यह भी माना जाता है कि गाय का गोबर अत्यंत पवित्र होता है, इसलिए इसी से गोवर्धन पर्वत बनाना और इसका पूजन करना फलदायी माना जाता है।

इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है और इसके चारों कोनों में करवा की सींकें लगाईं जाती हैं। इसके भीतर कई अन्य आकृतियां भी बनाई जाती हैं और इसकी पूजा की जाती है।

गोवर्धन के दिन गाय की पूजा का महत्व
ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी गोवर्धन की इस कथा का पाठ करता है और श्रद्धा पूर्वक गाय को भोजन करता है उनके निमित्त गौशाला में दान करता है एवं गाय के गोबर से बने पर्वत की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

श्री गोवर्धन जी की आरती

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तोपे पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तेरे गले में कंठा साज रेहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ,
तेरी झांकी बनी विशाल।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

 तेरी सात कोस की परिकम्मा,
       चकलेश्वर है विश्राम।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

गिरिराज धरण प्रभु तुम्हरी शरण

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