
धर्म मानव जीवन को मैं और मेरे से ऊपर उठकर सबके लिए जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। जब धर्म किसी व्यक्ति के जीवन में आता है तो वह अपने साथ विनम्रता जैसे अनेक सद्गुणों को लेकर भी आता है। धर्म के साथ विनम्रता ऐसे ही सहज चली आती है, जैसे फूलों के साथ सुगंध और सूर्य के साथ प्रकाश। जिस प्रकार बिना मेघों के बरसात नहीं हो सकती उसी प्रकार सद्गुणों के अभाव में धर्म भी घटित नहीं हो सकता।
जीवन में जितनी मात्रा में धर्म रहेगा उतनी ही मात्रा में व्यक्ति मानवता के निकट भी रहेगा। मानवता की पाठशाला का नाम ही धर्म है। धर्म ही जीवन में सत्य, प्रेम, करुणा, औदार्य, आत्मीयता, सहजता, सहनशीलता एवं विनम्रता जैसे दैवीय गुणों को प्रकट करता है। इसीलिए शास्त्रों ने उपदेश किया कि जिस जीवन में धर्म नहीं वह जीवन मानवीय मूल्यों से रहित पशुतुल्य ही है।
नमामि गंगे तव पादपंकजम्।
सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम्।।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यम्।
भावानुसारेण सदा नराणाम्।।