ब्याव में दिखावा ने खानपान को अजीरन

ब्याव को टेम चली रयो हे।वेवार रे तो लोगना निवतो बी देइज हे, ने अपना के बी निभाने वास्ते जानो पड़े ने जानो बी चइये। असा मोका पे एक-दूसरा से मिलनो -जुलनो बी हुई जाय। ब्याव होन में आजकल दिखावो बी खूब होय।छोटी-मोटी धरमशाला का जमाना अब गया। अबे तो बड़ा-बड़ा गार्डन ने परिसर बनी गया हे ,जो जादातर शहर से बायर रे। आम मनख के तो वां जाना में घणी तकलीफ उठानी पड़े । पण वेवार निभाने का संस्कार होय तो जानो बी पड़े। शुरुआत सेज दिखावा की पीच्चर शुरू हुई जाय। जसे ज तम घुसो तो एक लंबो रस्तो मिले, जिपे कालीन बिछी रे ने उना रस्ता भर लाड़ा-लाड़ी का फोटू लग्या रे। ये सगला फोटू ब्याव का पेला का यने “प्री वेड शूट” का रे। जसे जीमने का पेला स्टार्टर रे वसेज ये दिखावा का स्टार्टर रे। यो इनी बात को इशारो रे कि यो तो अखाड़ो हे अंदर तमके घणी जोरदार झांकी देखने के मिलेगी। ने असो होय बी जद मनख अंदर पोंचे, तो चकाचौंध में खोई जाय। असो लगे जने बड़ा मेदान में मेला लग्यो हे। जान-पेचान वाला के ढूँढनो पड़े भीड़ का रेला में। वां से फारिग हुई ने मनख पेला अवखो गार्डन घूमे। आजकल लाड़ा-लाड़ी कदी टेम पे स्टेज पे नी आवे, एका वास्ते मनख कने घणो टेम रे। मनख अंई-वंई थोड़ी देर टल्ला खाय ने फिर सगला स्टाल को मुवावनो करे। ब्याव की पार्टी को सबसे बड़ो आकर्षण स्टाल ई रे। फिर मनख अपना परिवार वाला को मार्गदर्शन करे ने उनकी पसंद की चीज होन का स्टाल कां-कां हे, वो बतई दे ने उनको ढूंढने को टेम बचई दे। शुरुआत कां से करां या सूझ नी पड़े। “मेन कोर्स” को स्टाल गरीब दुकानदार सरीको रे, जां पे भीड़ कम मिले, कां कि रोटी-भाजी तो हम रोज खावां। जादा दबाव तो गरम उतरता ताया, छोला-टिकिया, नूडल्स, मंचूरियन, गराडू, दूध-जलेबी, कचौड़ी पानी पातशा का स्टाल पे रे। यां असी लाइन लगे, जने आधार अपडेट करई रया हो। असा आयटम कम नी पड़ना चइये, नितो जो उनका सुवाद लेने से चुकी जाय, वो चार जना का आगे ब्याव के फेल बताने में देर नी करे। यां स्व अनुशासन रखो तो ठीक,नी तो धक्का-मुक्की बी मचे।आपस में कोनी होन टकराय ने कपड़ा पे बी बेरय जाय। बूढ़ा-आड़ा मनख का घणा फजीता होय। उनसे उबे-उबे नी खवाय। फिर घर का मनख उनके कुरसी पे बठई दे, ने उनकी थाली तैयार करने निकली पड़े। वे बापड़ा बठा-बठा मुंडो देखे कि कद थाली आय।आदी घंटा में उनकी थाली आय ने लाने वाला का चेरा पे युद्ध जीतने सरीको भाव रे। ने वो बी एक बार में सगला आयटम थाली में भरी ने लई आय, जसे घर में मेना को सामान भरां। बार -बार लाने को टंटो ज नी रखे। समजदार टाइप का मनख बी आय, जो सला दे कि पेला दो रोटी खई लो, फिर कंई बी अड़म-बड़म खाव तो पेट खराब नी होयगो। इका उलट जादातर असा रे जो माल सूतने का बाद पेट में जगे होय तो रोटी खाने को भाव रखे। ब्याव की पार्टी में मनख परेज भूली जाय। ठंडो, गरम, मिठो-खट्टो जो मिले ने जद मिले सूती लो। एक रिश्तेदार मिलिया। म्हने पूछियो कि खानो हुई गयो, तो वे केने लगिया कि हो, म्हने तो जादा कंई खायो नी। दाल -चावल ने दो रोटी खई बस ने अबी पान खायो। इत्ती देर में उनकी छोरी सीताफल की रबड़ी लय अई ने उनके केने लगी कि बाऊजी, तमने चखी कि नी। अबे बाऊजी को मन बी डांवाडोल होने लगियो। उनने मुंडा का पान के साईड में दबायो ने रबड़ी सूती ली। फिर तो उनके जो रंग चढ़ियो ओका बाद उनने गराडू बी खाया, काफी बी पी, आइसक्रीम बी खई ने बाद में जाते-जाते मसाला वालो पान बी दबई लियो। स्टाल होन देखी के मनख अपना आपा में नी रे खटटो-मीठो, ठंण्डो-गरम, आइसक्रीम, काफी सगली चीज होन एक सातें खय ले। यो असोज हे जसे एलोपेथी, होम्योपेथी ने आयुर्वेदिक दवई के एक साथ खई लेनो। ब्याव की पार्टी में स्टाल, मेनका की तरे कोय की बी तपस्या भंग करने की ताकत रखे। स्वरूचि भोज को मतलब यो रे कि तमारे जो अच्छो लगे, वो खाव पण मनख ने इको मतलब यो निकाल लियो कि सगला आयटम खाना हे ने जित्तो मन करे उत्ता खाना हे। छोटा -छोटा छोरा-छोरी होन तो बायर निकलते-निकलते बी माय-बाप का हात छुड़ई-छुड़ई ने आइसक्रीम खानो नी छोड़े। पण या बाल सुलभता माफी योग्य हे। कोय को सोचनो रे कि हजार को लिफाफो दियो हे तो वसूली तो करां। वसे बी लाड़ा-लाड़ी स्टेज पे देर से आय, तो मनख उनका माय-बाप के लिफाफो पकड़ई ने निकली जाय ने लाड़ा-लाड़ी उनका आशीर्वाद से खाली रई जाय। लाड़ा-लाड़ी को स्टेज पे आनो बी सेज नी रे। फंव्वारा, ढोल-ढमाका का साते क्रेन से स्टेज पे उतरे। तम मानो नी मानो, इवेंट कंपनी वाला होन ने पारंपरिक ब्याव को सत्यानाश करी नाख्यो हे। जने ब्याव नी सर्कस होय। कजन कंई-कंई कई कौतुक होन करे। संपन्न होने को मतलब यो नी हे कि दिखावा का नाद में बिना काम का खरचा करो। देखा देखी का चक्कर में आम मध्यमवर्गीय बी इना नाद में अई के अपनी हेसियय से जादा करे ने फिर बाद में तकलीफ उठाय। ब्याव ,मनख की जिनगी को घणो महत्वपूर्ण संस्कार हे। इके आनंद ने खुशी का सातें निपटानो चइये। दिखावा का नाद में हमने इनके इवेंट को रूप दई दियो ने अपनी संस्कृति, संस्कार के पीछे कर दियो। ब्याव में दिखावा ने खानपान का अजीरन से बचनो चइये, नी तो बाद में दोई तकलीफ को कारण बने। परमेशर इना अजीरन से सगला खे बचई ने रखे।
लेख़क – रजनीश दवे

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