अन्नपूर्णा माता को हिंदू धर्म में भोजन की देवी माना जाता है। उन्हें समृद्धि, सम्पत्ति, और संपूर्णता की देवी के रूप में पूजा जाता है। अन्नपूर्णा का अर्थ होता है ‘अन्न’ यानि भोजन और ‘पूर्णा’ यानि पूर्ण। उनकी पूजा विशेष रूप से दिवाली, नवरात्रि और अक्षय तृतीया जैसे पर्वों पर की जाती है।
अन्नपूर्णा माता की कथा भी बहुत प्रसिद्ध है। यह कथा संग्रह ‘स्कन्द पुराण’ में मिलती है। कथा के अनुसार, काशीपुर में एक समय पर्वतराज हिमालय और उनकी पत्नी पार्वती रहते थे। पार्वती ने दिनभर कोई भोजन नहीं खाया था क्योंकि उन्हें भोजन देने वाला कोई भी नहीं था। इससे वे बहुत दुखी थीं। एक दिन उन्होंने भगवान शिव से इस बारे में शिकायत की।
भगवान शिव ने पार्वती की शिकायत सुनकर उन्हें अन्नपूर्णा माता के रूप में स्मरण करने की सलाह दी। भगवान शिव ने कहा कि वह अन्नपूर्णा माता को अन्न और भोजन का दान करने वाली हैं और जो कोई भी उन्हें अपने मन से या प्रेम से याद करेगा, वह भोजन के समर्थ होंगे।
पार्वती ने भगवान शिव के उपाय को मान लिया और अन्नपूर्णा माता की पूजा करने लगी। जैसा ही उन्होंने पूजा शुरू की, उनके घर में अनंत भोजन की आवश्यकता से भरपूर अन्न और भोजन की सामग्री आने लगी।
अन्नपूर्णा माता की पूजा का उत्सव पार्वती ने हर साल मनाने का निश्चय किया। यहां तक कि उन्होंने अपने नाम पर उनके पूजा और भोजन के आयोजन का नाम भी रख दिया अन्नपूर्णा जयंती।
अन्नपूर्णा माता की पूजा को करते समय, भक्तों को भोजन का दान करना चाहिए। इससे उन्हें अन्नपूर्णा माता की कृपा मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अन्नपूर्णा माता की पूजा और कथा हमें यह सिखाती है कि अन्न दान महादान है और हमें उन्हें हमेशा महत्व देना चाहिए। यह हमें समग्र समृद्धि और समृद्धि की प्राप्ति मिलती हैं।
शुम्भ, निशुम्भ, चण्ड, मुण्ड और रक्तबीज का वध देवी माँ ने किस प्रकार किया
महामुनि मेधा ने राजा सुरथ और समाधि वैश्य को महा सरस्वती का चरित्र इस प्रकार सुनाया। प्राचीन काल में शुम्भ और निशुम्भ नामक दो परम पराक्रमी दैत्य उत्पन्न हुए थे।…