कहाँ जा रही हो छोड़ कर राह मेँ मुझे इस तरह माँ
अभी तक तो मैँने चलना भी नही सीखा
अरे मुरझाया हुआ फूल हूँ मै तो
अभी तक तो मैँने खिलना भी नही सीखा
खेल खेल मेँ गिर जाऊ तो कौन साहारा देगा मुझे
मैने तो अभी उछलना भी नही सीखा
चल दी हो तुम कहाँ अकेला कर के मुझे
घर से अकेला अभी तक निकलना भी नही सीखा
कौन पोछेगा मेरे आँसू जब भी तेरी याद मेँ रोया तो
अभी तक तो मैने सम्भलना भी नही सीखा
देगा कौन अपने आँचल की छाँव इस तपती धूप मेँ तेरे सिवा
अभी तक तो मैने जलना भी नही सीखा.
इंसान सिमट गए पैसों में
खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे…!! “और बीच में लिखी…