विष बदल जाये अमृत की धारा
तिरस्कृत को भी स्नेह अपारा
जटाजूट मृगछाल को धारा
है अनूठा सौंदर्य तुम्हारा
जय शिवशंकर
जय बम भोले
जय जय जय
डमरू वाला —–
चाँद को माथे पे सजाया
गंगा को सर पर बिठाया
गले में सर्पमाल सजाया
है अद्भुत रूप तुम्हारा
जय शिवशंकर
जय बम भोले
जय जय जय
डमरू वाला —–
पार्वती के दिल को भाया
हिमगिरि की हर बूँद समाया
करुणा सिंधु रूप दर्शाया
प्रभु सुन्दर रूप तुम्हारा
जय शिवशंकर
जय बम भोले
जय जय जय
डमरू वाला —–
Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)