हो आदमी खुदा के तो मान भी जाओ
यू बाग़ की डाली को विधवा न बनाओ
एक फूल हूँ मैं मुझको बिलकुल न सताओ
शम्मा हूँ मोहब्बत की यू मुझको जलाओ
मैं नूर हूँ खुदा का सबको ये बताओ
पैगाम हूँ खुदा का ये भूल न जाओ
हो आदमी………..
मेरा जहाँ में काम है खुशबू बिखेरना
मेरा जहाँ में काम है शमशीर तोडना
मेरा जहाँ से काम है नफरत ढकेलना
किसने कहा कि मुझको तुम यूँ ही रुलाओ
हो आदमी………..
किसने कहा कि मेरा तुम हार बनाओ
किसने कहा कि मुझसे तुम जिस्म सजओ
किसने कहा कि मेरा तुम इत्र बनाओ
किसने कहा कि मुझको तुम शव पे चढाओ
हो आदमी………..
किसने कहा कि तोड़ो तुम मुझको डाल से
किसने कहा कि फेंको देवो के भाल पे
तस्वीर मेरी देखो तुम अपने लाल में
मैं प्रेम का प्रतीक हूँ सबको ये बताओ
हो आदमी………..
Author: Sunil Verma (सुनील कुमार वर्मा मुसाफिर)