भोलापन तेरी आँखों का ,
क्यूँ उतर-उतर आता है
तेरे रस-भीगे ओंठों में,
शब्द जो निकलना चाहते हैं…
सकुचाकर दबे-दबे से
क्यों ठहर-ठहर जाते हैं,
रह जाते हैं मेरे मनोभाव
टकटकी लगाए से,
सिहर-सिहर जाते हैं
क्यों स्वप्न मेरे
उतरकर मेरी आँखों से
जाने को तेरी आँखों में ?
Author: Dr. Surendra Yadav ( डॉ. सुरेन्द्र यादव )