उम्र की इस दहलीज पर
जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह,
कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर
मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है ….
जब हम भी थे कुछ उसी की तरह
उसी की उम्र में…उसी की तरह सकुचाकर मुसकराने वाले.
तब हम ऐसे थे…, जैसे कोई पंछी
देखकर परछाई चाँद की जल में
हो जाते थे बावले-से मोहित उसपर,
जानकर बनते हुए अनजान कि
रचाता है वह सारी रात तारों के साथ रास
और
उनसे मिलने की संभावनाएँ सारी
घटती जाती थी उसकी कलाओं की तरह प्रतिदिन.
कभी जाते थे उनके शहर में उनसे मिलने के लिए
हो जाते थे हम अजनबी उनके लिए ,
देखते नहीं थे एक बार भी वे हमें
बात करने की तो बात ही कहाँ थी ?
गुजर गयी उम्र सारी
बात जो मन में थी
मन में ही रह गयी ,
कल जो देखा उन्हें …
थी तो वही…
मुसकराहट भी वैसी ही …
अनजानापन भी वही
पर अब वह …’वह’ नहीं थी
जो थी कभी वह
सोचकर जिसे आज भी
गुनगुनाने को मन करता है …
‘वह लड़की याद आती है’….
”वह लड़की बहुत याद आती है”
Author: Dr. Surendra Yadav ( डॉ. सुरेन्द्र यादव )
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