पुछ मत सपनो में किस तरह मिलते है घर
देख ले आँखों में आशा की तरह पलते है घर
बेघरो से कभी पुछ तो… घर के सुकून की तिशनगी
जनम से मरने तक जिन्हें नहीं मिलते है घर…!!
तिनका -तिनका जोड़कर वोह ख्वाबो को अपने बुनता रहा ,
ख्वाब कभी तो हकीकत का रंग लेंगे ,
येही सोचकर दर-बदर घूमता रहा ,
फिर भी उसके दिल में एक सवाल सा खटकता रहा ,
क्या एक साधारण इंसान को भी महल जैसे मिलते है घर…??
जितनी चादर है उतने ही पैर फैलाना
COMPETTION के दौर में कभी खुद को ना आज़माना
HOME-LOAN के ज़रिये आज टके -टके के भाव बिकते है घर…!!
उसने ऊँचे ख्वाब देखे और घर सजाता गया
अपने कमाई का हर हिस्सा घर की सजावट पर लगाता गया
आज बारिशो में भी उसे जलता हुआ मिलता है घर…!!
यह महंगाई और फिर कर्जो में डूबता हुआ इंसान ,
दर्द के तूफ़ान में यहाँ जब -तब हिलता है घर…!!
जो पास है उसी में ख़ुशी मनाना ,
पराये घर को देख कर अपने मन को ना डगमगाना…!!
“मीत” घर तो वोह है जहाँ सब मिलकर खुशियाँ मना सके ,
वरना यहाँ अपनों की छोटी -छोटी लडाइयों में ,
सबसे पहले…
हमे बिखरा हुआ मिलता है घर…!!
Author: Mit Bhatt (मीत)