तुम दूर रह के कहते हो ,
अब कोई दूरीयाँ कहाँ !
कितने हैं हम मजबूर ,
तुम्हे मजबूरीयाँ कहाँ !
क्या क्या करें जतन ,
के ये दिल चाहे ना जहां .
अपना लुटा के चैन लो ,
बैठे हैं हम यहाँ .
तुम दूर रह के कहते हो ,
अब कोई दूरीयाँ कहाँ …
चाहत से हमें प्यार है ,
क्या डर ज़माने की बात का .
चाहत हो जो बेहद कभी ,
क़तल खुद की करे जुबाँ .
तुम दूर रह के कहते हो ,
अब कोई दूरीयाँ कहाँ …
कैसी ये बेखुदी सी हुई ,
कहो कैसे करें बयान .
डूबी मेरी कश्ती जहां ,
तुमसे हीं है वो तूफ़ान .
तुम दूर रह के कहते हो ,
अब कोई दूरीयाँ कहाँ !
कितने हैं हम मजबूर ,
तुम्हे मजबूरीयाँ कहाँ !
Author: Shatrunjay Mishra