सालों बाद माँ की गोद में सो गया,
आज बचपन में खो गया,
सोचा क्यों न कुछ जिद कर डालूं,
पहले की तरह हर बात मनवा लूं,
पर न जाने कब आँखें सो गयीं,
उसकी नींद तो बस मेरी आँखों में खो गयी,
रात भर मुझे निहारती रही,
दुलारती रही, मेरी बलाएं उतारती रही,
माथा छुकर मेरा अंदाजा लगाती रही,
ठन्डे पानी की गीली पट्टी आती जाती रही,
सुबह से पहले नींद में मैं बड्बडाने लगा,
चेहरा उसका अचानक मुरझाने लगा,
बचपन की तरह, सब पर इलज़ाम झूठे लगाता रहा,
अपने हर झूठ पर उसके सच की मुहर लगवाता रहा,
यकायक गहरी नींद में खो गया,
सबसे दूर पास सपनों के हो गया,
वो जाग कर प्रभु से मनाती रही,
दुआएं मांगती रही ,मन्नतें बांधती रही,
सुबह जागा तो था सूरज सर पर,
पूछा ”माँ” आप कब आयीं उठकर,
बोली बस थोड़ी देर पहले ही जागी हूँ,
तू बता बेटा तू कैसा है ”मैं चाय लाती हूँ”