‘याद’ का ना होना ‘भूलना’ नहीं है
जैसे सुख का ना होना दुख नहीं है
और उम्मीद का ना होना नाउम्मीदी से अलग है
एक समय के बाद
होने और ना होने के बीच
कोई फ़र्क नहीं रह जाता
दुःख की शक्ल सुख से मिलने लगती है
दुःख अंततः अपना लिया जाता है
फिर सुख का एक क्षण भी
व्यवधान सा लगता है
‘याद’ जिए हुए सुख का ही दूसरा नाम है
जहाँ बिसरने को एक पूरी दुनिया है
याद रखने को सिर्फ़ एक लम्हा!
दिसम्बर की एक शाम
तुमने लिखी थी एक याद
मेरे होठों पर
हमारे आलिंगन में उलझ गई थीं
मेरी सुलझी हुई कविताएँ
दिसम्बर ‘याद’ है ‘सुख’ है ‘व्यवधान’ है
अलबत्ता गुज़र के लिए काफ़ी है दिसम्बर,
मग़र तुम्हारे बिना दिसम्बर का लौट आना
ग़ैर-मुनासिब है…
लेखक – सारिका