कुछ लोग कहते हैं वह स्कूल नहीं गए कुछ कहते हैं उनकी शिक्षा पूरी हो गयी और अब वे अपने मन का कार्य कर रहे हैं। मुझे लगता है दोनों गलत है ।
एक उध्दरण देता हूँ । शहर की एक नामी संस्था के एक आयोजन में अपन कर्ता थे आयोजन बड़ा था मुख्यमंत्री आये थे एक विधायक महोदय लेट आये फिर भी उनका स्वागत तो होना ही था। अध्यक्ष कुर्सी से उठे नज़रें दौड़ाई स्वागत करने के लिए अच्छा कद ढूंढ रहे थे परेशानी समझ मैनें पूछ लिया क्या बात है…. जवाब मिला कुछ नहीं…. उनकी नज़रें खोजती रही कोई नहीं मिला… जल्दी थी… उन्होंने अपने को बुला लिया स्वागत के लिए… अपने को बुरा लगा क्योंकि अपन भर्ती में जा रहे थे…. मन मसोस कर चले तो गए लेकिन यह ठीक नहीं लगा।
जीवन में ऐसा अनेक बार होता है जब किसी का अहम ,किसी का दम्भ और किसी का स्वार्थ सामने होता है और न चाहकर भी आपको उसका भागी होना होता है। इसलिए मुझे लगता है ये जीवन सबसे बड़ी पाठशाला है जिसमें सबक नाम का चेप्टर सबसे बड़ा और क्लिष्ट है। आप एक सबक सीखते हो दूसरा प्रश्न की तरह फिर उपस्थित हो जाता है। इसका दूसरा बड़ा चेप्टर है विरोधाभास जिसके तत्व कथनी और करनी है । कथनी और करनी में बहुत अंतर आपको मिलेगा। जीवन का तत्व समझाने वाले लोग ही आपको भटकते मिल जाएंगे। विश्वास आप ढूंढते रहे नहीं मिलेगा लेकिन भरोसातोड़क तैयार मिलेंगें। झूठ का सच रूप तीसरा बड़ा चेप्टर है जो साबित करता है झूठ कितना सच्चा होता है।
यही सब जीवन है बहुत सी बाते हैं फिर कभी विस्तार से कहूँगा लेकिन जीवन एक पाठशाला है.. जिसकी कक्षाएं सतत चलती है… जिसका हर चेप्टर बहुत विस्तृत है… कठिन कुछ नहीं है …समझ सब आता है पर बेबस है… प्रश्न हल तो कर सकते है लेकिन समाधान नहीं निकाल सकते ….। इसलिए यह मत सोचिये क़ि आप स्कूल नहीं गए और यह भरम भी मत रखिये क़ि आप बहुत पढ़ लिख गए हैं ।
लेखक :- सुरेन्द्र बंसल (C)