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पद्म पुरस्कारों में बॉलीवुड से परहेज के मायने

केंद्र सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित पद्म पुरस्कारों की सूची से इस बार बॉलीवुड का पत्ता कट गया है। हर साल राष्ट्रपति के हाथों इस प्रतिष्ठित अलंकरण से नवाजे जाने वालों में इस बार बॉलीवुड से किसी भी अभिनेता-अभिनेत्री, निर्माता-निर्देशक, गीतकार-संगीतकार, गायक-गायिका को सुपात्र नहीं पाया गया है। जबकि पिछले साल कंगना रनौत, करण जौहर, एकता कपूर, अदनान सामी, सुरेश वाडकर और सरिता जोशी जैसे आधा दर्जन नाम पद्म पुरस्कार पाने वालों में शामिल थे।
हालाँकि इस वर्ष पद्म अलंकरण के लिए चुने गए 119 गणमान्य लोगों की सूची में पांच शख्स ऐसे हैं तिनका ताल्लुक सिनेमा से रहा है। पद्म विभूषण के लिए चयनित दिवंगत पार्श्वगायक एस.पी. बाल सुब्रमण्यम ने अस्सी और नब्बे के दशक में एक दूजे के लिए से लेकर मैंने प्यार किया तक रोजा और साजन जैसी अनेक हिन्दी फिल्मों के गीत गाकर लोगों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाई, पर उन्हें बॉलीवुड की चर्चित हस्ती नहीं माना जा सकता. क्योंकि मूलतः दक्षिण भारतीय फिल्मों में ही उन्होंने अपना सर्वाधिक योगदान किया।
केरल की पार्श्व गायिका चित्रा (पूरा नाम सुश्री कृष्णन नायर शान्ताकुमारी चित्रा) को पद्मभूषण के लिए चुना गया है, जिनका हिन्दी फिल्मों में योगदान नाम मात्र का रहा है। मुंबई में पली बढ़ी एक अन्य दक्षिण भारतीय मूल की पार्श्व गायिका जयश्री का नाम भी पद्मश्री पाने वालों की सूची में शामिल है। गौर तलब है कि तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में इसी वर्ष विधान सभा चुनाव होने हैं। जाहिर है केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को इसका कहीं न कहीं इसका थोडा बहुत लाभ तो मिलेगा। ब्रिटिश फिल्मकार पीटर ब्रुक का नाम भी इस वर्ष पद्मश्री पाने वालों में शामिल है।
इधर गुजराती फिल्मों में चार दशक तक अभिनय, गीत-संगीत के जरिये धूम मचाने वाली महेश नरेश की लोकप्रिय जोड़ी के महेशभाई कानोड़िया और नरेशभाई कानोड़िया को मरणोपरांत पद्मभूषण के लिए चुना गया है। सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में गुजराती फिल्मों में अपनी सफल पारी के बाद कानोड़िया बंधु राजनीति में भी सक्रिय रहे थे। भाजपा से नजदीकियों के चलते महेश कानोड़िया पाटन से चार बार सांसद रहे। वहीं उनके अनुज नरेश कानोड़िया कर्जन से एक बार विधायक चुने गये.
यदि सरकार चाहती तो गत वर्ष दिवंगत ऋषि कपूर, इरफ़ान खान, बासु चटर्जी, सरोज खान, और जगदीप जैसी फ़िल्मी हस्तियों में से किसी को भी मरणोपरांत यह सम्मान देकर बॉलीवुड का सांकेतिक मान रख सकती थी। न सही सुशांत राजपूत, किन्तु ‘अपनी शक्ति हमें देना दाता’ जैसे अमर गीत के रचयिता गीतकार अभिलाष को मरणोपरांत पद्मश्री देने में क्या हर्ज था..? सौ से अधिक फिल्मों में वस्त्र विन्यास करनेवाली दिवंगत ड्रेस डिज़ाइनर भानु अथैया तक को सरकार ने किसी भी श्रेणी के पद्म अलंकरण के लायक नहीं समझा जबकि जीते जी उन्हें सैंतीस साल पहले सर रिचर्ड एटनबरो की गाँधी (1983) के लिए अकादमी अवार्ड, गुलज़ार की लेकिन (1991) और लगान (2002) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा 2009 में फिल्म फेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त हो चुका था।
कोरोना काल में जरुरतमंदों की निःस्वार्थ आर्थिक सहायता कर सुर्ख़ियों में आ चुके अभिनेता सोनू सूद का नाम भी इस वर्ष पद्म अलंकरण के लिए चला था। कई संस्थाओं और संगठनों ने उनके नाम की अनुशंसा भी की थी। पर शायद सुशांत राजपूत की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत के मनहूस साये से समूचे बॉलीवुड की प्रतिष्ठा को इस कदर ठेस पहुंची जिसका दूरगामी असर पता नहीं कब तक उसे झेलना पड़ेगा। इतिहास में पहली बार पद्म अलंकरण की सालाना फेहरिस्त में हिन्दी फिल्मों की चकाचौंधभरी दुनिया से जुड़े नाम नदारद हैं। यह उपेक्षा फिल्म प्रेमियों के मन में गहरी टीस पैदा करनेवाली है। फ़िल्मी हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से अलंकृत करने का मामला हो या उन पर डाक टिकट निकालने का मुद्दा हो सरकार का रवैया हमेशा उदार और निरपेक्ष क्यूँ नहीं रहना चाहिए..?
लेखक :- विनोद नागर
(फिल्म समीक्षक व स्तंभकार)

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