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स्मृतियाँ

यहाँ कुछ नहीं ठहरा है
यहाँ कुछ नहीं ठहरेगा
सिवाय स्मृतियों के…..

कुहासे में धुंधलाई
तस्वीरों का कोलाज,
संवादों की प्रतिध्वनि,
और पलकों की कोर से झरी हुई
कुछ उपेक्षित कविताएँ 
ठहरी रहेंगी यहाँ
सांसों के आने जाने के बीच

और ठहरे रहेंगे
आत्मा को बिंधते 
असंख्य नुकीले प्रश्न,
रूठी आँखों में जागती
अनमनी प्रतिक्षाएँ
और दोनों ध्रुवों के बीच पसरा
निष्ठुर मौन, 

कुछ और भी है
जो ठहर जाता है वक्त बेवक़्त
तंग रास्तों पर दौड़ती भीड़ के बीच
आँखों की सीली सतहों में
सिमटा हुआ
चोरी का एक लम्हा,
और पार्श्व में गूंजता
“तेरे मेरे मिलन की ये रैना”

हाँ ये सब ठहरा रहेगा
और विसर्जित होगा मेरे साथ ही
सफ़र फिर भी चलता रहेगा
मेरा भी तुम्हारा भी

तुम अपने चुने हुए सुख के साथ
तस्वीरों में मुस्कुराते रहना
मैं अपनी सहेजी हुई स्मृतियों के साथ
लिखती रहूँगी कहानियाँ
प्रेम की, प्रतिक्षाओं की
और इन दोनों के बीच
सूखी टहनियों में अटके
रिक्त स्थान की…..
लेखिका :- सारिका गुप्ता

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