दीपावली तिथि संसय समाधान

दीपावली निर्णय हेतु सूर्य सिद्धांत से संबंधित पंचांग कारों ने काशी, अयोध्या एवं पूर्वांचल के लगभग समस्त पंचांग कारों सहित “काशी विद्वत परिषद एवं पीतांबरा पीठ दतिया की विद्वत सभा” एवं ठाकुर प्रसाद कैलेंडर, चिंता हरण पंचांग, सहित अनेकानेक पंचांग कारों ने 31 अक्टूबर को ही दीपावली का निर्णय दिया है और उत्तरप्रदेश सरकार ने भी दीपावली महालक्ष्मी पूजन का पर्व 31 अक्टूबर को ही होना निश्चित किया है।

क्योंकि 31 अक्टूबर को प्रदोष बेला के पूर्व से प्रारंभ होकर रात्रि पर्यंत अमावस्या तिथि प्राप्त हो रही है सूर्य सिद्धांत कारों 1 नवंबर को अमावस्या तिथि शाम को 5:00 बजे के आसपास पूर्ण कर दी है किंतु दृग सिद्धांत के पंचांगकार 1 नवंबर की शाम को 6:16 तक अमावस्या का मान दिखा रहे हैं प्रदोष समये राजन कर्तव्या दीप मालिका, का सहारा लेकर 1 नवंबर को दीपावली दीपोत्सव महालक्ष्मी पूजन की बात दृग सिद्धांत कार कह रहे हैं।

1 नवंबर को रात्रि में अमावस्या तिथि नहीं प्राप्त होगी क्योंकि सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त (यानी 2 घंटा 24 मिनट) तक प्रदोष बेला रहेगी उसके बाद रात्रि बेला शुरू होगी।

निर्णय सिंधु में लिखा है कि तिथि तत्व में ज्योतिष का वचन है कि रात्रि वेला प्रारंभ होने के 1 मुहूर्त बाद तक यानी रात्रि वेला शुरू होने के 48 मिनट बाद तक (2 घंटा 24 मिनट की प्रदोष बेला+एक मुहूर्त यानी 48 मिनट की रात्रि बेला का प्रथम प्रहर) कुल मिलाकर सूर्यास्त के 3 घंटा 12 मिनट बाद तक यदि दूसरे दिन अमावस्या प्राप्त हो रही हो तो दूसरे दिन महालक्ष्मी पूजा दीपावली की जानी चाहिए।

काशी क्षेत्र से प्रकाशित अधिकांश पंचांग कार 1 नवंबर को अमावस्या तिथि शाम को 5:00 के आसपास समाप्त कर रहे हैं किंतु दृग सिद्धांत के अनुसार 1 नवंबर को सूर्यास्त के 52 मिनट बाद तक अमावस्या तिथि प्राप्त हो रही है यानी रात्रि वेला प्रारंभ होने से 2 घंटा 20 मिनट पहले ही अमावस्या तिथि समाप्त हो रही है अतः दृग सिद्धांत का निर्णय उचित नहीं प्रतीत होता है।

निर्णय सिंधु में लिखा हुआ है की सूर्यास्त के बाद संध्या बेला, प्रदोष बेला के बाद रात्रि बेला में यदि 1 दंड अमावस्या मिले यानी दीपावली के दिन सूर्यास्त के 3 घंटा 12 मिनट बाद तक अमावस होनी चाहिए।

  1. दण्डैक रजनोयोगे दर्श: स्यात्तु परे हानि । तदा विहाय पूर्वेद्यु: परेन्हि सुखरात्रिके ।।

2 . दिवोदासीये तु प्रदोषस्य कर्म कालत्वात् – अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मी राश्रयितुं गृहान् । अतः: स्वलंकृता लिप्तता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सवा: ।।

  1. इति ब्रह्मोक्तेश्च प्रदोषार्धरात्रिव्यापिनी मुख्या ।। प्रदोषस्य मुख्यत्वादर्धरात्रे अनुष्ठेयाभावाच्च ।।
  2. एवं गते निशीथे तु जने निद्रार्धलोचने ।तावन्नगरनारीभि: शूर्पडिण्डिमवादनै:।। निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मी: स्वगृहांगणात् ।।

उपर्युक्त वचनों के आधार पर 31 अक्टूबर को प्राप्त हो रही है अमावस्या ही दीपावली पर्व हेतु सर्वश्रेष्ठ है !

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