लक्ष्मी पूजन संपूर्ण विधि – 31 अक्टूबर 2024

सनातन धर्म में दीपावली पर अपने घर में सद्गुरुदेव, भगवान गणपति, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती एवं कुबेर इनके विशेष पूजन का विधान है । वैदिक मान्यता के अनुसार दीपावली पर मंत्रोच्चारणपूर्वक इन पंच देवों के स्मरण पूजन से अंतर एवं बाह्य महालक्ष्मी की अभिवृद्धि तथा जीवन में सुख-शांति का संचार होता है । सर्वसाधारण श्रद्धालु भावपूर्वक वैदिक विधि-विधान का लाभ ले सकें, इस हेतु लक्ष्मी पूजन की अत्यंत संक्षिप्त विधि यहाँ प्रस्तुत की जा रही है ।

विधि :-
स्वयं स्वच्छ व पवित्र पूजा गृह में ईशान कोण अथवा पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें तथा अपने सम्मुख दायीं ओर लाल व बायीं ओर सफेद कपड़े का आसन बिछाएँ ।

लाल आसन पर गेहूँ से स्वास्तिक बनाएं । सफेद आसन पर चावल का अष्टदल कमल बनायें । अब घी का दीपक जलाकर अपने सम्मुख दायीं ओर रख दें ।

ॐ दीपस्थ देवताय नमः – इस मंत्र से दीपक को पुष्प एवं चावल चढ़ायें ।

अब स्वयं को व अन्य परिवारजनों को “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र से तिलक लगायें व ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र से सभी को मौली बाँध दें ।

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय‘ मंत्र को उच्चारित कर अपनी शिखा को गाँठ लगायें….फिर

ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ माधवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा

इन तीन मंत्रों से तीन आचमनी जल हाथ पर लेकर पीयें व ‘ॐ गोविन्दाय नमः’ इस मंत्र से हाथ धो लें ।

अब अपने बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ से अपने शरीर व पूजन-सामग्री पर निम्न मंत्र से छींटें.. ~

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

फिर अपने आसन के नीचे एक पुष्प रखकर ‘ॐ हाँ पृथिव्यै नमः’ इस मंत्र से भूमि एवं अपने आसन को मानसिक प्रणाम कर लें ।

इसके बाद मलिन वृत्तियों, विघ्नों आदि से रक्षा के निमित्त निम्न मंत्र से अपने चारों ओर चावल या सरसों के कुछ दाने डालें ।

ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः ।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥

भूमि पर स्थित जो विघ्न डालने वाली मलिन वृत्तियाँ हैं, वे सब कल्याणकारी देव की कृपा से दूर हो, नष्ट हो ।

अब हाथ में कुछ पुष्प लेकर निम्न मंत्र से अपने श्री सद्गुरुदेव का स्मरण करें~

ॐ आनन्दमानन्दकरं प्रसन्नं स्वरूपं निजभाव युक्तं ।
योगीन्द्र मीड्यं भवरोग वैद्यं श्री सद्गुरु नित्यं नमामि ॥

आनंद स्वरूप, आनंद दाता, सदैव प्रसन्न रहने वाले, ज्ञान स्वरूप, निजस्वभाव में स्थित, योगियों, इन्द्रादि के द्वारा स्तुति के योग्य एवं भवरोग के वैद्य जन-विधि श्री सद्गुरुदेव को मैं नित्य नमस्कार करता हूँ । फिर गुरुदेव को मानसिक प्रणाम करके पुष्प अपने आगे थाली में रख दें । लाल व सफेद आसन के बीच पुष्पासन पर सदगुरुदेव का श्रीचित्र स्थापित करें ।

तत्पश्चात् भगवान गणपति का मानसिक ध्यान इस प्रकार करें :-

ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ: ।
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

कोटि सूर्यों के समान महा तेजस्वी, विशालकाय और टेढ़ी सूंड वाले गणपति देव ! आप सदा मेरे सब कार्यों में विघ्नों का निवारण करें ।

भगवान गणपति की मूर्ति को थाली में रखकर ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र से स्नान करायें । फिर शुद्ध कपड़े से पोछकर गेहूँ के स्वास्तिक पर दूर्वा का आसन रखकर उस पर बैठा दें ।

फिर ‘ॐ गं गणपतये नमः’ इसी मंत्र से उनको तिलक करें, पुष्प-दूर्वा चढ़ायें, धूप करें, गुड़ का नैवेद्य दें, दीपक से आरती करें ।

इसके बाद ‘ॐ भूर्भुवः स्वः ऋद्धि सिद्धि सहित श्रीमन्महागणाधिपतये नमः’ इस मंत्र से मानसिक प्रणाम करें ।

अब माँ लक्ष्मी के पूजन हेतु भगवान नारायण सहित उनका इस प्रकार ध्यान करें :-

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
हरिप्रिये महादेवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥
नमस्तेऽस्तु महामाये सर्वस्यातिहरे देवि l
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥
यस्यस्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् ।
विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभ विष्णवे ॥

‘सिद्धि-बुद्धि प्रदात्री, भुक्ति-मुक्ति दात्री, विष्णुप्रिया महादेवी महालक्ष्मी ! तुझे नमस्कार है । सबके दुःखों का हरण करने वाली महादेवी, हे महामाया ! तुझे नमस्कार है । शंख-चक्र-गदा हाथ में धारण करने वाली हे महालक्ष्मी ! तुझे नमस्कार है । जिनके स्मरणमात्र से (प्राणी) जन्मरूप संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है, उन समर्थ भगवान विष्णु को नमस्कार है ।

इसके बाद थाली में लक्ष्मी जी की मूर्ति या चाँदी के श्रीयंत्र अथवा चांदी के सिक्के को नारायण सहित ध्यानकरते हुए निम्न मंत्र से स्नान करायें :-

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः ।
स्नापितोऽसि महादेवी ह्यतः शांतिं प्रयच्छमे ॥

फिर लक्ष्मी जी की मूर्ति या श्रीयंत्र को चावल के अष्टदल कमल पर स्थापित करें ।
फिर निम्न मंत्र :-

‘श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा।’

यह मंत्र को पढ़ते हुए कुमकुम का तिलक करें, मौली चढ़ायें, पुष्प माला पहनायें, धूप करें, दीपक कपूर की आरती दें तथा नैवेद्य चढ़ायें । फिर पान के पत्ते पर सुपारी, इलायची, लौंग आदि रखकर चढ़ायें ।

फल, दक्षिणा आदि सब इसी मंत्र से चढ़ायें ।

तत्पश्चात् निम्न मंत्र से क्षमा-प्रार्थना करें :

‘आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ।।’

इसके बाद निम्न मंत्र की एक माला करें :

ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे ।अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।।
या
“ ॐ श्रीं महालक्ष्मीयै नमः ”

फिर हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि भगवान व गुरु की भक्ति प्राप्ति के निमित्त सत्कर्म की सिद्धि हेतु हमने जो भगवान लक्ष्मी-नारायण का पूजन जप किया है, वह परब्रह्म परमात्मा को अर्पण है ।

फिर आरती करके ‘ॐ तं नमामि हरिं परम्’ इसका तीन बार उच्चारण करें ।

जहाँ लक्ष्मी-पूजन किया है उन्हीं दोनों स्थापनों के सामने ही कलश-पूजन करें ।

कलश-पूजन :
जल से भरे हुए तांबे के कलश को मौली बाँधकर उस पर पीपल के पांच पत्ते रखें, उस पर एक नारियल रखें व सभी तीर्थ-नदियों का निम्न मंत्र से आवाहन करें :-

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥

फिर भगवान सूर्य को प्रार्थना करें कि वे इस कलश को तीर्थत्व प्रदान करें :-

ब्रह्माण्ड कर तीर्थानि करे स्पृष्टानि ते रवै ।
तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर ।।

इसके बाद उस कलश को पूर्व आदि चारों दिशाओं में तिलक करेंगे । नारियल पर भी तिलक कर व चावल चढ़ाकर अपने आगे भूमि पर कुमकुम से एक स्वास्तिक बनाकर उस पर स्थापित करें ।

अब भगवान वासुदेव को प्रार्थना करें कि वरुण कलश के रूप में स्थित आप हमारे परिवार में शांति व सात्विक लक्ष्मी की वृद्धि करें ।

अब हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र से माँ सरस्वती का मानसिक ध्यान कर पुष्प श्वेत आसन पर चढ़ा दें :-

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥

जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्म विचार परम तत्व हैं, जो सब संसार में व्याप रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खता रूपी अंधकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिक मणि की माला लिये रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान हैं और बुद्धि देने वाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वंदना करता हूँ ।

फिर ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस मंत्र से कुबेर का ध्यान करते हुए अपनी तिजोरी आदि में हल्दी, दक्षिणा, दूर्वा आदि रखें ॥ॐ शुभमस्तु ॥

पूजन के उपरांत घर के सभी सदस्य अपने से बड़े सदस्य के पांव छूकर आशीर्वाद लें घर मे जो कन्या (लक्ष्मी) हो उसे भी दक्षिणा दे और गौमाता के लिए भी कुछ न कुछ दक्षिणा गौसेवा दें।

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