
पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस दिन जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है। सभी एकादशियों में रमा एकादशी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी दिपावली के चार दिन पहले आती है। रमा एकादशी व्रत को सबसे महत्वपूर्ण एकादशी में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि रमा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्महत्या सहित अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो भी व्यक्ति रमा एकादशी के दिन व्रत रखता है, उसके सभी पाप मिट जाते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं इस साल रमा एकादशी की तिथि पूजा विधि और महत्व के बारे में…
रमा एकादशी तिथि
द्रिक पंचांग के अनुसार 27 अक्टूबर 2024 को सुबह 07 बजकर 15 मिनट पर एकादशी प्रारम्भ होगी. 28 अक्टूबर को 08 बजकर 40 मिनट पर खत्म होगी. सनातन धर्म में व्रत उदया तिथि के द्वारा मानी जाती है. 28 अक्टूबर को एकादशी तिथि में सूर्योदय होगा. इसी वजह से रमा एकादशी व्रत 28 अक्टूबर को है. रमा एकादशी का पारण 29 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 23 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट के बीच किया जाएगा। वंही कुछ पंचांग में एकादशी 27 अक्टूबर 2024 को प्रातः 5:23 बजे प्रारम्भ हो रही है और समाप्त 28 अक्टूबर प्रातः 7:50 बजे।*
अधिकांश विद्वान ज्योतिषाचार्य एवं साधु संतों का मत है कि एकादशी व्रत 28 अक्टूबर सोमवार को रखना चाहिए। मलुकपीठ के महंत आचार्य राजेन्द्र दास जी महाराज ने भी एकादशी व्रत 28 अक्टूबर को ही बताया है। फिर भी यदि कोई कल करना चाहें तो कर सकते हैं। हमारे मत से दोनो दिन एकादशी मान्य रहेगी।
रमा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, मुचुकंद नाम का एक प्रतापी राजा था. उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था. पिता मुचुकंद ने अपनी बेटी चंद्रभागा की शादी राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से करा दिया. राजकुमार शोभन की एक आदत थी कि वो एक भी समय बिना खाए नहीं रहता था. इसी बीच शोभन एक बार कार्तिक के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया. उस दिन रमा एकादशी का व्रत भी था. चंद्रभागा के राज्य में सभी रमा एकादशी व्रत का नियम पूर्वक पालन करते थे तो दामाद शोभन से भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया. परंतु, शोभन इस बात को लेकर काफी परेशान हो गया. इसके बाद अपनी परेशानी को लेकर शोभन पत्नी चंद्रभागा के पास पहुंचा. तब चंद्रभागा ने कहा कि ऐसे में तो आपको राज्य के बाहर ही जाना पड़ेगा, क्योंकि पूरे राज्य के लोग इस व्रत के नियम का पालन करते हैं. यही नहीं आज के दिन यहां के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं. चंद्रभागा की इस बात को सुनने के बाद आखिरकार शोभन को रमा एकादशी व्रत रखना ही पड़ा. लेकिन, पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी. इसके बाद चंद्रभागा अपने पिता के यहां ही रहने लगी।
एकादशी व्रत के पुण्य प्रताब से शोभन का अगला जन्म हुआ. इसबार उन्हें मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर में पहुंचे. वहां सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखकर ही पहचान लिया. वहां ब्राह्मणों को देख शोभन भी अपने सिंहासन से उठकर पूछा कि यह सब कैसे हुआ. इसके बाद तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को पूरी बात बताई. चंद्रभागा बेहद खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो गई. इसके बाद वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची. फिर, मंदरांचल पर्वत पर गई और पति शोभन के पास पहुंच गई. इस तरह एकादशी व्रतों के पुण्य प्रभाव से दोनों का फिर से मिलन हो गया. कहते हैं, तभी से मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है. साथ ही उसकी सरी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं।
एकादशी तिथि के अवसर पर की गई गौसेवा का फल अक्षय होता है। गौमाता की सेवा से ही गोपाल प्रसन्न होते हैं एवं पितृ देव तृप्त होते हैं। स्नान दान के लिए अति विशेष कार्तिक माह की “रमा एकादशी” तिथि के अवसर पर यथा संभव गौसेवा करके पुण्यलाभ अर्जित करें..