।। पटाक्षेप ।।

ये विरासत
ये फलसफे
ये शोहरतें
ये नामावरी
ये सियासत

एक दिन
सब रह जाएगा
पीछे बहुत पीछे
जब वक़्त से आगे
निकल जायेंगे हम

यकीं नहीं आता
जब तलक
वह समय नहीं आता
आदमी अचानक
चला नहीं जाता

जिंदगी अच्छी और
सच्ची लगती है
मुस्कुराती हुई
हंसती खेलती
नटखट नाटक सी

मशीन रुकने सी
बंद होती धड़कनें
दिमाग मर जाता कभी
मौत हकीकत बन फख्र से
दर्ज होती प्रमाण पत्र में

रास्ते ढूंढ़ती है
पगडंडियों से आती है
खुले राजपथ पर
शान से जाती है
जिंदगी पीठ दिखाती है

दो पैरों पर चलने वाला
चार कंधों पर जाता है
ऐसा वक़्त फिर नहीं आता
इतिहास में दर्ज हो जाता है
एक नाम बचा रह जाता है

जिंदगी तेरे नाटक का
अंत ऐसा आता है
हंसता हुआ आया था
रुलाकर चला जाता है
पटाक्षेप हो जाता है

।। स्वस्थ रहें , मस्त रहें , सतर्क रहें ।।
।। सदा जय हो , भारत विजय हो ।।

लेखक :- अरुण कुमार जैन

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