रह-रह कर याद आती है वह छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया बहुत, बार-बार…. मन-ही-मन मुसकराने वाली सारी दुनिया से न्यारी वह कोमल-सी छुटकी-सी फूलों-सी बिटिया. प्रश्न उठता है यह बार-बार क्यों होती है बेटी भाव-प्रवीणा बेटों की तुलना में कोमल, कर्तव्य-अनुप्रेरित और सहृदय ? प्रश्न शाश्वत , उत्तर अब भी अनुत्तरित !!! त्रासद है फिर भी …. बेटी ‘बेटी’ ही रहती ...
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''भोलापन तेरी आँखों का''
भोलापन तेरी आँखों का , क्यूँ उतर-उतर आता है तेरे रस-भीगे ओंठों में, शब्द जो निकलना चाहते हैं… सकुचाकर दबे-दबे से क्यों ठहर-ठहर जाते हैं, रह जाते हैं मेरे मनोभाव टकटकी लगाए से, सिहर-सिहर जाते हैं क्यों स्वप्न मेरे उतरकर मेरी आँखों से जाने को तेरी आँखों में ? Author: Dr. Surendra Yadav ( डॉ. सुरेन्द्र यादव )
Read More »वह 'लड़की' याद आती है
उम्र की इस दहलीज पर जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह, कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है …. जब हम भी थे कुछ उसी की तरह उसी की उम्र में…उसी की तरह सकुचाकर मुसकराने वाले. तब हम ऐसे थे…, जैसे कोई पंछी देखकर परछाई चाँद की जल में हो जाते थे बावले-से ...
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