फिर याद आ गए तुम

तारों के झिलमिलाते आँगन में अम्बर के अंतहीन ह्रदय में अंकित पूर्णिमा का चाँद देखते ही एक बार फिर याद आ गए तुम —- युगल पंछियों का नीड़ की ओर…

मेरे अश्क़

मेरे अश्क़ !! बातूनी हैं बहुत तन्हाइयों में सखियों सी बेहिसाब बातें करते हैं—- मेरे अश्क़ !! हताशा का रुख मोड़ अपनेपन से मुस्कुराकर मिलते हैं—- मेरे अश्क़ !! पारदर्शी…

सिर्फ तुम थे

दर्पण से आज बातें की बेहिसाब तुम्हारे प्रतिबिम्ब को मुस्काने दीं बेहिसाब प्रतीक्षा भरे दृगों में तुम ही थे …. सिर्फ तुम ही थे आंजन की सलाई से भरा सावन…

बसंत रुत आई

मेड़ों की पीली सरसों खेतों की भीगी माटी हरी हरी अमराइयाँ आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई पत्तों से छन छनकर आती उमंगों की घाम पिघलती हुई अनुभूतियाँ आई…