Tag Archives: Poets Corner

''छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया''

रह-रह कर याद आती है वह छोटी-सी प्यारी-सी नन्ही-सी बिटिया बहुत, बार-बार…. मन-ही-मन मुसकराने वाली सारी दुनिया से न्यारी वह कोमल-सी छुटकी-सी फूलों-सी बिटिया. प्रश्न उठता है यह बार-बार क्यों होती है बेटी भाव-प्रवीणा बेटों की तुलना में कोमल, कर्तव्य-अनुप्रेरित और सहृदय ? प्रश्न शाश्वत , उत्तर अब भी अनुत्तरित !!! त्रासद है फिर भी …. बेटी ‘बेटी’ ही रहती …

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''भोलापन तेरी आँखों का''

भोलापन तेरी आँखों का , क्यूँ उतर-उतर आता है तेरे रस-भीगे ओंठों में, शब्द जो निकलना चाहते हैं… सकुचाकर दबे-दबे से क्यों ठहर-ठहर जाते हैं, रह जाते हैं मेरे मनोभाव टकटकी लगाए से, सिहर-सिहर जाते हैं क्यों स्वप्न मेरे उतरकर मेरी आँखों से जाने को तेरी आँखों में ? Author: Dr. Surendra Yadav ( डॉ. सुरेन्द्र यादव )

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वह 'लड़की' याद आती है

उम्र की इस दहलीज पर जब देखकर हमें आईना भी बनाता है अपना मुँह, कुछ शरमाकर , कुछ इठलाकर मुसकराती-सी वह लड़की याद आती है …. जब हम भी थे कुछ उसी की तरह उसी की उम्र में…उसी की तरह सकुचाकर मुसकराने वाले. तब हम ऐसे थे…, जैसे कोई पंछी देखकर परछाई चाँद की जल में हो जाते थे बावले-से …

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फिर याद आ गए तुम

तारों के झिलमिलाते आँगन में अम्बर के अंतहीन ह्रदय में अंकित पूर्णिमा का चाँद देखते ही एक बार फिर याद आ गए तुम —- युगल पंछियों का नीड़ की ओर बढ़ना देख धरा की प्यास श्यामल पावसों का उमड़ना मुखरित हुआ अनूठा एहसास प्रतीक्षारत साँझ में एक बार फिर याद आ गए तुम —- चाँद की लरजती खूबसूरती में मुग्ध …

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मेरे अश्क़

मेरे अश्क़ !! बातूनी हैं बहुत तन्हाइयों में सखियों सी बेहिसाब बातें करते हैं—- मेरे अश्क़ !! हताशा का रुख मोड़ अपनेपन से मुस्कुराकर मिलते हैं—- मेरे अश्क़ !! पारदर्शी मोती के वलय में खुशियों के सतरंगी रंग भरते हैं—– मेरे अश्क़ !! ख़्वाबों को लड़ियों में पिरोकर मन को समझाते हैं मेरे अश्क़ !! भीगे बादल से कभी भोली …

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फूल की फरयाद

हो आदमी खुदा के तो मान भी जाओ यू बाग़ की डाली को विधवा न बनाओ एक फूल हूँ मैं मुझको बिलकुल न सताओ शम्मा हूँ मोहब्बत की यू मुझको जलाओ मैं नूर हूँ खुदा का सबको ये बताओ पैगाम हूँ खुदा का ये भूल न जाओ हो आदमी……….. मेरा जहाँ में काम है खुशबू बिखेरना मेरा जहाँ में काम …

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लम्हों

गुजर गये लम्हे धीरे धीरे और वे सब यादो में ‘बदलते’ रहे। हम तेरे साथ की ख़ुशी में भूल गये की ‘लम्हे’ कभी नही होते सदा के लिए ‘यादे’ ही साथ रहती है अंत तक । लम्हों की खुशीयां तो क्षणिक होती है यादे ही तो है जो उन लम्हों को बार बार ‘जीवन’ देती है। और फिर बच जाती …

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सिर्फ तुम थे

दर्पण से आज बातें की बेहिसाब तुम्हारे प्रतिबिम्ब को मुस्काने दीं बेहिसाब प्रतीक्षा भरे दृगों में तुम ही थे …. सिर्फ तुम ही थे आंजन की सलाई से भरा सावन के मेघों सा चाहत का विश्वास भोर की चटकती उम्मीद में लालिमा में , तबस्सुम में तुम ही थे …. सिर्फ तुम ही थे रुखसार पे सिमट आई शर्मीली सी …

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बसंत रुत आई

मेड़ों की पीली सरसों खेतों की भीगी माटी हरी हरी अमराइयाँ आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई पत्तों से छन छनकर आती उमंगों की घाम पिघलती हुई अनुभूतियाँ आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई मधुप की मकरंद चाह फूलों की हवा संग ठिठोली कोयलिया की शब्दलहरियां आई ,,, आई ,,, बसंत रुत आई लबों पे लाज भरी मुस्कान …

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विवाह – vivah

विवाह एक उत्सव जो लाता है जीवन मे उत्साह कुछ दिनों पहले शुरू हो जाती है तैयारियाँ धर्मशाला , टेन्ट-हाउस , कैटरींग जैसी जिम्मेदारीयाँ नये-नये कपड़े , नये-नये आभूषण घर-धर्मशाला मे lighting और Decoration जोरदार तरीके से किया जाता है बारातियों का स्वागत सभी होते हैं एक दुसरे से अवगत जब घोड़े पर होता है , दूल्हा और निकलती है …

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