“अरे सुन, बेटा ये लाइट यहाँ लगा और ये फूलों की झालर ऊपर लेजाकर लगा दे और सुमनिया तू तो सजधज कर अभी तक यहीं खड़ी है अरे जल्दी जाकर देख हरीश भैया तैयार हुआ की नहीं ? पांडे जी की खुशी उनके हर काम से मानो छलक –छलक कर बाहर आ रही थी। खुशी की तो बात थी ही आखिर कई सालों बाद कोई बारात “पांडे भवन” से निकल रही थी, अपने बेटे हरीश की बारात को लेकर पांडे जी बड़े उत्साहित थे।
“बाउजी हम भी चलेंगे भैया की बारात में जीजी को समझाइए ना आप”,सुमन ने लगभग ठुनकते हुये बाउजी से कहा। लड़कियां भी बारात में जाने कि जिद कर रही थी किन्तु जीजी का सख्त विरोध था और अल्टिमेटम भी कि हमारे घर में आज तक कोई लड़की बारात में गई ही नहीं, अगर लड़कियां गई तो ठीक नहीं होगा ,लेकिन लड़कियां नहीं मानी और चुपचाप तैयार हो गई थी जाने को पर्दे के पीछे उनका साथ राघव भैया, छोटे ताऊजी और देवास वाले फूफाजी दे रहे थे । जीजी याने पांडे जी कि 80 वर्षीय माताजी , झुकी कमर ,छोटा कद, मुंह में लगभग सभी दांत सलामत , घेरदार घाघरा लुगड़ा और रोबदार आवाज़ उनकी पहचान थी । जीजी ने अपने पोते-पोतियों को अपनी छाती से लगा कर सगी माँ कि तरह पाला पोसा और बड़ा किया था । पांडे जी कि पत्नी तो उम्र के 40 वें पड़ाव मे ही स्वर्ग सिधार गई थी तब से इन बच्चों कि माँ वही थी। स्वभाव से बहुत कठोर लेकिन सबका ध्यान बहुत अच्छे से रखती थी। बच्चो को कभी माँ कि कमी नहीं महसूस होने दी । परम्पराओ को शिद्दत से निभाने वाली जीजी के सामने किसी कि नहीं चलती थी, यहाँ तक कि बा साब की भी कभी नहीं चली उनके आगे । बहू के सामने दिनभर बैठक में बैठकर हुकुम चलाने वाली जीजी में उसके गुजरने के बाद जाने कहाँ से इतना दम आ गया था कि 6-7 लोगो का सारा काम खुद ही करने लगी थी ।
27 बरस पहले सबसे छोटे काका जी की बारात निकली थी, उसके बाद कोई बारात न निकाल पाई थी इस घर से । कहने को तो हरीश के दो बड़े भाई सुरेश और सतीश भी है ,लेकिन दूसरे नंबर के सुरेश ने किसी विजातीय लड़की से कोर्ट विवाह कर लिया था इसलिए जीजी ने उसे घर निकाला दे दिया था, बहुत हंगामे हुए थे उस वक़्त । जीजी ने पूरा घर माथे पर उठा लिया था, बेटे के बिगड़ने का आरोप लगा कर बेचारे पांडे जी को कई दिन कोसती रही थी। सबसे बड़ा बेटा सतीश कुछ सालों पहले घर से गायब हो गया था । पांडे जी ने बहुत तलाशा एक-एक रिश्तेदार ,दोस्त ,पुलिस ,कोर्ट सब जगह आखिर कंही से पता चला कि हरिद्वार मे उन्हे साधुओं कि टोली के साथ देखा गया था ,बेचारे पांडे जी तुरंत ट्रेन पकड़ कर हरिद्वार पहुंचे चप्पा चप्पा छान मारा हरिद्वार का लेकिन नहीं मिला सतीश । थक कर बैठ गए और फूट फूट कर रोने लगे । फिर किसी ने बताया कनखल में साधुओ के बड़े टोले ने पड़ाव डाला है बेचारे बस पकड़ कर वह पहुंचे सतीश मिल गया । पहले तो उसने पिता को पहचानने से ही इंकार कर दिया लेकिन बाद में बोला कुछ भी कर लो मैं आपके साथ नहीं जाऊंगा । क्या करते बेचारे पांडे जी बुझे मन से घर आ गए । आते ही जीजी ने दहाड़े मार कर रोना और पांडेजी को कोसना शुरू कर दिया और बेटे के घर छोडने का कारण तक कह दिया पांडे जी को ।
बहरहाल बारात सज गई थी द्वारचार कि रस्में काकी-भाभियाँ निभा रही थी । जाते समय लड़कियो को तैयार देखकर जीजी ने फिर लड़कियों को डांटा और कलाप करने लगी , लेकिन कुछ महिलाओं ने जीजी को समझाया कि पुराना जमाना गया आजकल तो बारात में लड़कियां भी जाती है। जीजी भुनभुनाती रह गई और बारात रवाना हो गई । 3 घंटे में बारात लड़की वालों के घर पहुँच गई थी ,वहाँ सारी रस्में बहुत अच्छे से हो गई थी। फेरों के बाद बारात विदा भी हो गई । बस अपनी गति से चल रही थी । सब लोग थक कर सो गए थे । तभी अचानक बस झटके से रुक गई । एक भेंस को बचाने के चक्कर में गाड़ी रोड से नीचे जाकर एक पेड़ से टकरा गई थी । ड्राईवर सीट के पीछे ही दूल्हा दुल्हन बैठे थे ।बस रुकते ही चीख पुकार मच गई थी । सबसे ज्यादा दूल्हे को लगी थी , माथे से खून कि धार बह रही थी,किसी ने रुमाल लगाकर खून रोका कुछ लोगों को मामूली खँरोचे आई थी । बहू सुरक्षित थी बस को तुरंत पास के गाँव मे प्राथमिक चिकित्सालय में ले जाया गया जहां मरहम पट्टी कर दी गई थी । कोई गंभीर बात नहीं लग रही थी । लेकिन सबके मन मे एक ही भय रह रह कर घूम रहा था, कि घर पहुँचते ही जीजी तो घर सर पर उठा लेगी और बेचारी नई बहू को इस दुर्घटना का दोषी मानेगी। भारी मन से बस रवाना हुई, सब भगवान से प्रार्थना करते जा रहे थे । दुल्हन भी बेचारी बहुत घबराई हुई थी। आखिर बारात द्वार पर पहुँच ही गई । द्वराचार- नेग के लिए भुआ और बहने तैयार खड़ी थी , बारात से लौटी लड़कियों ने भी झटपट देहरी के भीतर जाकर मोर्चा सम्हाल लिया । जैसे ही दूल्हा-दुल्हन बस से उतरे दूल्हे के सिर पर बंधी पट्टी देखकर सब काना फूसी करने लगी थी । उन्हे काकाजी ने इशारे से चुप रहने को कहा और जीजी को बाहर बुलाने के लिए आवाज़ दी लेकिन जीजी बाहर कैसे आती? बिलकुल परंपरागत महिला जो थी,उन्होने भी वही किया जैसा कि आमतौर पर पुराने जमाने की महिलाएं करती है। विधवा होने का सारा दोष खुद के सर मढ़ लेती है और खुद को शुभ कार्यों से दूर कर लेती है। हालांकि ऐसा करके वह कर खुद को बड़ी मुश्किल से रोक रही थी जीजी नई बहू को देखने को आतुर थी । नेगचार कि रस्म अदायगी के बाद घर कि महिलाओ ने एकी-बेकी खिलवाई और कांकण डोरे छुड़वाए उसके बाद जैसे तैसे जीजी को बाहर बुलाया गया , सबको किसी बड़े हंगामे कि आशंका या यूं कहिए इंतजार ही था। लाल छींट वाले लुगड़े के पल्लू से मुंह पोछती जीजी बाहर निकली। ताईजी ने नई बहू और हरीश को पैर छूने का इशारा किया और उसी के साथ एक चुप्पी सी छा गई । सब के सब जीजी कि प्रतिक्रिया के इंतजार में सहमे से बैठे थे। लेकिन जीजी बहुत शांत दिखाई दे रही थी,उन्हे देख कर प्रतीत हो रहा था कि शायद उन्हे किसी से हादसे की खबर मिल चुकी थी । जैसे ही दोनों ने पैर छुए जीजी की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली । सिर पर हाथ फेर कर गले लगा लिया हरीश को । तब तक नई बहू सहमी सी खड़ी रही। फिर नई बहू की बलैया लेकर कहा ,”अखंड सौभाग्यवती रो बेटा ,पीलो पेरो ने मीठों जीमो ,बेटी थारा चूड़ा में भोत बल है जो नानो बची गयो । भगवान की दया से इतरा पेज उतरी नी तो कई भी हुई सकतों थो। थारे तो नी लगी नी ?चल अबे तू आराम करे ले थकी गई होगी ,ले छोरी संगीता भाभी के कमरा मे ली जा। “ भीषण तूफान आते आते रह गया था सब हतप्रभ थे साथ ही खुश भी ।