महाभारतकालीन जलकुंड जो भीषणतम सूखे में भी नहीं सूखते

Indore Dil Se - Artical
प्रमोद भार्गव
वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार
शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी, म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007

शिवपुरी में महाभारत कालीन ऐसे 52 कुंड हैं, जो जलराशि से तो बारह माह भरे ही रहते हैं, नवग्रह मंडल की सरंचना के भी प्रतीक हैं । अब इन कुंडों में से 20 कुंड अस्तित्व में हैं, जबकि 32 कुंड लुप्त हो चुके हैं। इन सभी कुंडों का अस्तित्व तीन किलोमीटर की लंबाई में था, इसलिए यदि इनकी खोज हो तो लुप्त हुए 32 कुंड भी मिल सकते हैं। लेकिन इनका खोजा जाना, इसलिए संभव नहीं लगता, क्योंकि जो बचे हैं, वे भी अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। इन कुंडों के बारे में कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य एवं किंवदंतियां ऐसे जरूर मिलते हैं, जो इन्हें महाभारतकालीन होने के साथ पांडवों द्वारा बनवाए जाने के संकेत देते हैं।

ऐसा बताया जाता है कि पांडव 14 वर्ष के अज्ञातवास के दौरान अंतिम दिनों में शिवपुरी क्षेत्र में थे। दरअसल उत्तर से दक्षिण का मार्ग शिवपुरी होकर निकलता है। शिवपुरी के उत्तर में प्रागएतिहासिक नगर नलपुर है, जिसे वर्तमान में नरवर के नाम से जाना जाता है। यहां राजा नल द्वारा बनवाया गया आलीशान किला आज भी विद्यमान है। शिवपुरी के ही पास वह विराट नगरी है, जहां पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान वेश बदलकर शरण ली थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ हरिहर निवास द्विवेदी ने प्राचीन विराट नगरी के रूप में बैराड़ की पहचान की है। यहां उस गढ़ी के अवशेष भी हैं, जहां के शासक राजा विराट थे।

इसी कसबे के पास कालामढ नामक बस्ती में एक कीचक शिला भी है, जहाँ कहा जाता है कि भीम ने कीचक का वध कर द्रोपदी की इज्जत बचाई थी ! इस कालखंड में ही जब पांडव भटक रहे थे, तब उन्होंने सुरवाया गढ़ी में भी मां कुंती और द्रोपदी के साथ कुछ दिन व्यतीत किए थे। जनश्रुति है कि पांडव जब सुरवाया गढ़ी में रह रहे थे, तब एक दिन जंगल में शिकार करने के लिए निकले। शिकार की टोह में वे शिवपुरी के वनप्रांतर में पहुंच गए। यहां कुंती को प्यास लगी, किंतु आस-पास कहीं जल को स्रोत नहीं था। तब अर्जुन जे धनुष-बाण हाथ में लिए और 52 जगह तीर छोड़ दिए। इन सभी स्थलों से निर्मल जलधाराएं फूट पड़ीं। चूंकि यह धाराएं बाण चलने से फूटी थीं, इसलिए इन्हें बाणगंगा कहा गया। बाद में नकुल और सहदेव ने मिलकर इन सभी कुंडों को बावड़ीनुमा आकार दिया। इसी आकार में शेष बचे 20 कुंड आज भी दिखाई देते हैं। हालांकि इनमें से भी अब मात्र बारह कुंड ऐसे हैं, जो अपना प्राचीन स्वरूप बचाए हुए हैं।

इन कुंडों की विशेषता यह है कि ये सभी वर्गाकार हैं और इनमें उतरने के लिए किसी में दो तरफ, तो किसी में चारों तरफ सीढ़ियां बनी हुई हैं। इनमें 10 से लेकर 30 फीट तक पानी भरा रहता है। बाणगंगा के नाम से जो स्थल जाना जाता है, उस क्षेत्र में कुल 9 कुंड हैं। इनमें गंगा नाम का जो कुंड है, उसके ऊपर एक किनारे पर मंदिर बना हुआ है। इसी परिसर में एक गणेश मंदिर है, जिसके नीचे गणेश कुंड है। इनके अलावा 4 कुंड खुले मैदान में हैं। इनमें 2 कुण्ड बड़े हैं और दो कुण्ड बहुत छोटे हैं। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियां भी नहीं हैं। गंगा कुंड का पानी सबसे स्वच्छ व निर्मल हैं। हर साल यहां मकर संक्रांति के अवसर पर मेला लगता है। इस दिन हजारों लोग इन कुंडों में डुबकी लगाकर पुण्य कमाने आते हैं। सिंधिया राजवंश की छत्री परिसर में कुल आठ कुण्ड हैं। इनमें केवल मोहन कुंड अच्छी अवस्था में है। शेष सभी कुंड कूड़े-कचरे से भरे पड़े हैं। यदि इन्हें जल्दी नहीं संवारा गया तो यह भी अपना अस्त्तिव खो देंगे।

सिद्ध बाबा क्षेत्र परिसर में पांच कुंड हैं। ये सभी कुंड अस्तित्व का संकट झेल रहे हैं। परमहंस आश्रम के पीछे तीन कुंड हैं। इनकी स्थिति भी अच्छी नहीं है। परमहंस आश्रम परिसर में भी 2 कुंड हैं। जो लगभग ठीक हैं। भदैयाकुंड क्षेत्र में भी दो कुंड हैं। जिनमें 12 महीने पानी भरा रहता है। भदैयाकुंड के ऊपर गौमुख भी हैं, जिनसे पानी की निर्मल जलधार बहती रहती हैं। ग्वालियर राज्य में इस पानी से सोडा वाटर बनाया जाता था। इस कारखाने की इमारत में अब पर्यटन ग्राम होटल में आने वाले यात्रियों के वाहन चालक ठहराए जाते हैं। सिद्धेश्वर मंदिर परिसर में भी एक कुंड है, जिसे चौपड़ा के नाम से जाना जाता है। इस कुंड पर दीवारें उठाकर घेराबंदी कर ली गई है। कुंड में बड़े-बड़े कई पेड़ उग आए हैं, जो इसे नष्ट करने पर उतारू हैं। गोरखनाथ मंदिर परिसर में भी एक कुंड है, जो छह माह पहले तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। इसका अब धर्मस्व न्यास के अनुदान से जिला-प्रशासन ने जीर्णोद्धार कर दिया है। इसमें अब करीब 30 फुट पानी भरा है। इसके प्राचीन स्वरूप को भी बहाल किया गया है। इसमें उतरने के लिए चारों ओर से सोपान हैं। इस तरह से ये 20 कुंड वर्तमान में अस्तित्व में तो हैं, किंतु कई कुंडों को वर्चस्व बचाना मुष्किल हो रहा है। इन कुंडों की नवग्रह मंडल के रूप में सरंचना की गई है। इस आधार पर इनमें से 10 दिग्पाल, 9 ग्रह, 12 राशियां, 8 वषु, 10 दिशाएं और ब्रह्मा, विश्णु और महेश हैं। इस दृष्टि से इस सरंचना का खगोलीय महत्व भी है, जिसकी पड़ताल करने की जरूरत हैं।

बाणगंगा स्थल पर तीन प्राचीन शिलालेख भी उपलब्ध है। इनमें से एक शिलालेख सिद्ध बाबा मंदिर के पीछे वाले कुंड में लगा है। दूसरा शिलालेख परमहंस आश्रम के कुंड में है। तीसरा शिलालेख बाणगंगा के मुख्य कुंड के पीछे लाट के रूप में है। इन शिलालेखों को पढ़कर इन कुंडों की अवधारणा और उद्देष्य के रहस्य को जाना जा सकता है। किंतु अब तक पुरातत्व और इतिहास विभाग के जानकारों ने इस दिशा में कोई पहल ही नहीं की है। यदि सभी कुंडों को संवार लिया जाए तो इस पूरे क्षेत्र को खगोलीय महत्व के स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

Review Overview

User Rating: Be the first one !

: यह भी पढ़े :

शाही परम्परा के साथ सिंधिया परिवार मनाता है दशहरा उत्सव

स्वतंत्रता बाद तरीका बदला लेकिन आयोजन जारी रहा। देश के स्वतंत्र हो जाने के बाद …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »