शादी और गणित

सीजन प्रधान देश में शादियों का सीजन चल रहा है शादियां अब कहां रही सादी, पुराने लोग कहते थे बर्बादी ,सही आज यह बात सच साबित हो रही है शादी में अंक शास्त्र की घुसपैठ पत्रिका गुण मिलान से ही हो जाती है और फिर सात फेरे से मजबूत होता है गठ बंधन l बांकेलाल जी कहने लगे कि व्यंजनों की संख्या के अंक शास्त्र की होड़ ने अन्न की बर्बादी को चरम पर पहुंचा दिया है , स्टेट्स दिखाने के लिए शादी में व्यंजन आकड़ा १०० से १५० तक पार होने लगा है इतने आयटम रखने लग गए है कि एक एक लेकर केवल टेस्ट करूं उसमें ही पेट भर जाए बाकी बचा हुआ तो फेंकना ही है ना l कहा जाता है जूठन एक राष्ट्रीय समस्या है और अन्न की बर्बादी भी है एक और कितने ही लोग भूखे सोते है और सामजिक हैसियत दिखाने के चक्कर में यह सब हो रहा है और ये सब वो ही करते है जो अपने आप को समाज सेवक कहते नही थकते l बड़े -बड़े सामूहिक विवाह के आयोजन करके ,मितव्ययिता का ढोल पीटते है और अपने घर की शादी में इतना मितव्यय करते है कि जिसकी कोई सीमा नहीं l समाज सेवा और दिखावा कर दोहरी जवाबदारी को ढोते है और समाज में अपनी धाक जमाते है l
बांकेलाल जी कहने लगे की देखा देखी की भक्ति में जिनकी
हैसियत नहीं होती वह भी बढ़चढ़ कर व्यंजन की संख्या में शतक लगाने की कोशिश करते हैं और सारी उर्जा उसी में लगा देते है मेरे परिवार में भी एक शादी होने वाली है उसी जद्दोजहद में दिमांग खराब चल रहा है सब को खुश करने के चक्कर में आयटम की गिनती बढ़ती ही जा रही है जिसमे पुरानी पीढ़ी ,युवा पीढ़ी और बच्चे सब की अपनी -अपनी फरमाइश है कि यह होना जरूरी है उन अंकल के यहां भी तो था ऐसा ही होना चाहिए ,सब को संतुष्ट करने में बजट असन्तुष्ट हो रहा है और निमंत्रण की लिस्ट रोज बढ़ती जा रही है समझ ही नहीं आ रहा है कि इस महंगे युग में सब कैसे मैनेज किया जायें काला धन आ जाता तो बहुत राहत मिलती पर कुछ आसार ही नहीं दिख रहे है सपने दिखाने वाले बाबा और नेता रोज यू – टर्न ले रहे है और विपक्ष इस यू -टर्न को भुनाने में लगा है l पर मैं तो परिवार के दबाव के बोझ तले यू टर्न भी नहीं ले पा रहा हूँ क्या करुं ?
व्यंजनों की संख्या और आमंत्रित लोगों का अंक गणित मेरे तो
ऊपर से ही जा रहा है , दोनों की संख्या कम करने की बात पर मुझे व्यवहारिक गणित में हमेशा की तरह शून्य मिलता नजर आ रहा है कोई भी अपने अंक को छोटा करने को तैयार ही नहीं है मुझे ही अपना गणित बढ़ाकर बड़ी संख्या से लोहा लेना पड़ेगा ? इसमें गणित में फेल होना प्रतिष्ठा को चारों कोने चित्त कर देता है और शादी के बाद भी अलग ही गुणा भाग चलता ही रहता है l

संजय जोशी ‘सजग “[ व्यंग्यकार ]

Review Overview

User Rating: Be the first one !

: यह भी पढ़े :

आप न्यायाधीश हैं, निर्णय करना आपका काम है

न्यायालय में एक मुकद्दमा आया, जिसने सभी को झकझोर दिया | अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »