स्वाइन फ्लू से बचने के कुछ घरेलू उपाय!

देशभर में मौत बनकर फैलता जा रहा है स्वाइन फ्लू। अबतक ये खतरनाक फ्लू 600 लोगों की जान ले चुका है। बीते सिर्फ तीन दिनों में ही 100 से ज्यादा लोगों को मार चुका है स्वाइन फ्लू। अगर राजस्थान की बात करें तो 176 लोगों की तो सिर्फ यहीं स्वाइन फ्लू से मौत हो चुकी है। कर्नाटक में भी कुछ लोगों की मौत इससे हो चुकी है, लेकित मंगलवार को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री यूटी कादर ने कहा कि राज्य में स्वाइन फ्लू की स्थिति पूरी तरह से काबू में है। गुजरात में भी स्वाइन फ्लू से 150 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। गुजरात में स्वाइन फ्लू की चपेट में 1800 से ज्यादा लोग आ चुके हैं। महाराष्ट्र में मौत का आंकड़ा 60 तक पहुंच चुका है। अकेले मुंबई में स्वाइन फ्लू के 134 केस आ चुके हैं। मुंबई में 8 लोग स्वाइन फ्लू से जान गंवा चुके हैं। सिर्फ नागपुर में स्वाइन फ्लू से 25 लोगों की हो चुकी है मौत। दिल्ली और नोएडा में भी सैंकड़ों लोग इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। अस्पतालों में स्वाइन फ्लू के लिए खास वार्ड बनाए जा चुके हैं। मध्य प्रदेश में भी स्वाइन फ्लू कहर बरपा रहा है। यूपी में भी स्वाइन फ्लू तेजी से पैर पसार रहा है। देश भर से स्वाइन फ्लू के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं। हर रोज मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। बीते एक रोज में कई और लोगों की ये ले चुका है जान।

क्या है स्वाइन फ्लू
दरअसल स्वाइन फ्लू सूअरों में होने वाला सांस संबंधी एक अत्यंत संक्रामक रोग है जो कई स्वाइन इंफ्लुएंजा वायरसों में से एक से फैलता है। आमतौर पर यह बीमारी सूअरों में ही होती है, लेकिन कई बार सूअर के सीधे संपर्क में आने पर यह मनुष्य में भी फैल जाती है। ये बलगम और छींक के सहारे मनुष्य से मनुष्य में फैलती है।

कौन सा है वायरस
आमतौर पर यह बीमारी एच1एन1 वायरस के सहारे फैलती है, लेकिन सूअर में इस बीमारी के कुछ और वायरस (एच1एन2, एच3एन1, एच3 एन2) भी होते हैं। कई बार ऐसा होता है कि सूअर में एक साथ इनमें से कई वायरस सक्रिय होते हैं जिससे उनके जीन में गुणात्मक परिवर्तन हो जाते हैं। माना जाता है कि स्वाइन फ्लू का वायरस एच1एन1 उन वायरसों का पूर्ववर्ती है जिनके कारण वर्ष 1918-1919 में स्पेन में स्पेनिश फ्लू की महामारी फैली थी जिसमें भारी संख्या में लोगों की मौत हुई थी।

स्वाइन फ्लू के लक्षण
स्वाइन फ्लू के लक्षण आम मानवीय फ्लू से मिलते-जुलते ही हैं। बुखार, सिर दर्द, सुस्ती, भूख न लगना और खांसी। कुछ लोगों को इससे उल्टी और दस्त भी हो सकते हैं। गंभीर मामलों में इसके चलते शरीर के कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं, जिसके चलते इंसान की मौत भी हो सकती है।

कैसे करें बचाव ?
स्वाइन फ्लू से बचने का सबसे अच्छा तरीका साफ सफाई है। छींकते समय हमेशा अपनी नाक और मुंह कपड़े से ढंककर रखें। छींकने के बाद अपने हाथ जरूर धोएं। गंदगी से वायरस बड़ी आसानी से फैलता है इसलिए साफ-सफाई और हाईजीन का विशेष ख्याल रखें। बीमार के संपर्क में कम से कम जाएं और जाना मजबूरी हो तो पूरी ऐहतियात बरतें।

ये हैं स्वाइन फ्लू से बचने के नुस्खे:-

  1. जीवनीय शक्तिवर्धक हल्दी, तुलसी, नीम, गिलोय, फुदीना, आंवला, ग्वारपाठा, लहसुन, अदरख इत्यादि का सेवन प्रतिदिन करें।
  2. रोग नाशक द्रव्य के रूप में सुदर्शन क्वाथ या उनकी वटी/चूर्ण, भारंग्यादि क्वाथ, संशमनी वटी, गिलोय की वटी/चूर्ण/क्वाथ का सेवन करें।
  3. पाचनतंत्र को स्वस्थ रखने के लिए हल्का, गर्म, ताजा भोजन ही लें।
  4. सूप, नींबू रस, आंवला रस, मोसंबी के रस, हल्दी वाला दूध और ज्यादा पानी का सेवन करें।
  5. नियमित प्राणायाम करें।
  6. गुग्गुल, काली मिर्च, गाय का शुद्ध घी, कपूर और शक्कर मिश्रित कर सेवन अवश्य करें।
  7. पर्याप्त मात्र में नींद लें।
  8. तनावग्रस्त न रहें, प्रफुल्लित और प्रसन्न रहें।
  9. जीवनी शक्ति/इम्युनिटी पावर बढ़े, ऐसे सभी प्रयास करें।

गर्भवती महिलाओं को ज्यादा खतरा
संक्रमण के लिहाज से गर्भवती महिलाओं को सबसे आसान शिकार माना जाता है। जिस स्वाइन फ्लू से दुनिया में खौफ कायम है, उसका आसान शिकार ज्यादातर वे महिलाएं हुई हैं, जिनका गर्भपात हुआ है या जो गर्भवती हुई हैं। गर्भधारण के समय महिलाओं की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ जाती है और जिसके कारण वो इससे कहीं ज्यादा मात्रा में प्रभावित होती हैं। गर्भधारण के समय ये फ्लू तेजी से फैलता है और शरीर कमजोर और संक्रमित बना देता है जिससे निमोनिया या भ्रूण संकट जैसी भयानक स्थिति पैदा हो सकती है।

गर्भपात के दौरान गर्भाशय का आकर बढ़ने लगता है महिलाओं में वैसे ही इस बढ़ते हुए आकार के कारण डायाफ्राम और जिस जगह फेफड़े होते हैं वहां दबाव पड़ने लगता है, जिसकी वजह से फेफड़ों में हवा की आवाजाही में कमी हो जाती है। इस प्रकार उनका शरीर किसी भी संक्रमण से प्रभावित हो सकता है।

ऑब्स्टेट्रिशन एवं गायनेकोलॉजिस्ट एनेचर क्लिनिक की डॉ. अर्चना धवन बजाज ने बताया कि जिन महिलाओं में बाहरी संक्रमण पाया जाता है उन्हें बुखार, शरीर में दर्द, बहती नाक, गले में खराश, सर्दी और शरीर के तापमान में लगातार बदलाव महसूस हो सकता है। उन्हें दस्त और उल्टिया भी हो सकती है। अगर इन सब लक्षणों में से कोई लक्षण पाया जाता है तो तुरंत किसी चिकित्सक से सलाह लें और जितनी जल्दी हो सके इसका उपचार करवाएं।

इन बातों का रखें ध्यान:

  • अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हों जो फ्लू से पीड़ित हो, तो बिना अपना समय गवाएं अपने चिकित्सक के पास जाकर जांच करवाएं कि आप कितने हद तक इस संक्रमण से प्रभावित हैं।
  • अगर आपको फ्लू के लक्षण अपने अंदर महसूस होते हैं तो अपने घर पर ही रहें और जितना हो सके लोगों से मिलने जुलने पर रोक लगाएं। बिना समय को गंवाए या दर्द कम करने की अनावश्यक दवा खाना या दवा की दुकान का चक्कर काटने की जगह स्वास्थ्य विशेषज्ञ से जांच कराएं और सलाह लें।

फ्लू से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए उपचार:

  • अगर गर्भवती महिलाओं में फ्लू के लक्षण लक्षण पाए जाते हैं तो उनका उपचार एंटी वायरल से किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसी दवा 24 घंटों के भीतर काम करना शुरू कर देता है। फ्लू के लक्षण शुरुआती चरण में हों तभी यह इलाज कारगर रहता है। एंटी वायरल सबसे बेहतर तब काम करती है जब इनका सेवन 2 दिन के अंदर शुरू किया जाए।
  • किसी भी तरह के बुखार का इलाज करें खासकर अस्टीमिनोफेना नामक बुखार का।
  • तरल पदार्थों का बड़ी मात्रा में सेवन करें।
  • एंटी-वायरल दवाओं का कोई भी बाहरी नुकसान नहीं होता ना ही शरीर को कोई हानि पहुंचाता है, बच्चा और मां दोनों सुरक्षित रहते हैं।

फ्लू संक्रमण से बचाव के कुछ बड़े उपाय
अपने हाथों को प्राय: साफ रखें। खाना खाने से पहले और शौच जाने के बाद हाथों को धोते समय सही तरीके का इस्तमाल करें। साफ पानी से कम-से-कम 15 सेकंड तक हाथों को ठीक ढंग से मल-मल कर साफ करें। साबुन और पानी के नहीं होने पर सैनिटाइजर्स जैल का इस्तेमाल करें।

खांसते और छींकते समय अपने खली हाथों को मुंह से दूर रखें। उसके कारण पूरे शरीर में कीटाणु फैल जाते हैं और आसानी से लोगों में भी फैलते हुए नजर आते हैं। ऐसे में टिशू का इस्तमाल करना लाभकारी होगा। अगर फिर भी टिशू का इस्तमाल नहीं किया गया तो तुरंत खांसी के बाद हाथों को सही तरीके से साफ करें। अपनी आंखें, नाक और मुंह को न छुएं क्योंकि आपके हाथों में होने वाले कीटाणु प्रभावित कर सकते हैं। कपड़े का भी ध्यान रखें। अगर आपके घर में कोई बीमार है तो उनसे कम से कम 6 फीट की दूरी बनाए रखें।

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