आपको भरपूरबनाने की कीमत मांगतेपेट तो छोटा हैखजाने की कीमत मांगतेआजकल दुनिया का येदस्तूर है ऐसा फकीरखाना तो महंगा नहींखिलाने की कीमत मांगतेभगवान फकीर
इस शायरी को लिखने वाले शहर के शायर भगवान दास पहलवान उर्फ फकीर ने पिछले दिनों शहर में सिंधी थाली शुरू की है।
इस शायरी को सार्थक करते हुए वे महज 60 रूपए में सिंधी थाली परोस रहे हें, जिसे खाने दूर दूर से लोग आ रहे हैं। थाली में परोसे जाने वाले आईटम और उनका सिंधी स्वाद लाजवाब है। तो चलिए लजीज लुत्फ में इस बार हम आपको इस नए ठिए से अवगत करवाते हैं।
शायर भगवानदास का कहना है की आज के समय में खाना इतना महंगा नहीं है जितना उसे दिखाया जा रहा है। इसके साथ ही आज किसी भी होटल में मध्यमवर्गीय परिवार अगर खाना खाने जाता है तो उसे 800 से 1200 रूपए तक खर्च करने पड़ते हैं। इसी के चलते हमने नो प्रोफिट नो लोस में सिंधी थाली का कांसेप्ट शुरू किया है। इस थाली में 60 रूपए में जो आईटम दिए जाते हैं, वह शहर की किसी भी होटल में 150 रूपए से कम शायद ही मिले, वह भी इस स्वाद के साथ।
60 रुपए में मिलती हैं इतनी सारी चीजें
महज 60 रूपए में सिंधी थाली परोस रहे हें, जिसे खाने दूर दूर से लोग आ रहे हैं मटर पनीर की सब्जी, सीजनल सब्जी, दाल, 4 रोटी, चांवल, सलाद, पापड़, अचार . . . .
इसके साथ ही इसको बनाने का तरीका सिंधी घरों की तरह ही है जिसको खाने पर घर के खाने की फीलिंग आती है। भगवानदास का कहना है की खाना महंगा नहीं है, खिलाने वालों ने इसकी कीमत बढ़ा रखी है। जिससे लोग परिवार के साथ होटलों में जाने में डरने लगे हैं।
बंबई रहे पर दिल न लगा – भगवानदास ने यशवंत प्लाजा, रेलवे स्टेशन के सामने यह रेस्टारेंट अभी एक माह पहले ही खोला है। लेकिन आसपास के सभी बाजारों और परिवारों से लोग यहां आने लगे हैं। वे बताते हैं की vw साल वे मुंबई में रहे, कई सीरियलों, बड़े कलाकारों के लिए शायरियां लिखीं। लेकिन वहां की भागदौड़ भरी जिंदगी में मन नहीं लगा। पृष्ठभूमि इंदौर की थी इसलिए वापस इंदौर आ गए। अब यहां आकर सिंधी थाली को पहचान दिलाने के लिए इसकी शुरूआत की गई। रेस्टॉरेट का नाम भी इन्होंने छोटी ढाणी रखा है। कहते हैं की हर किसी मध्यमवर्गीय परिवार के बस में नहीं की 500 रूपए के टिकट लेकर ढाणियों में जाए, यहां ६० रूपए प्रति थाली लेकर परिवार बाहर खाना एंजाय कर सकते हैं।
प्रदेशभर में खोलने की योजना – छोटी ढाणी को खुले अभी एक माह भी नहीं हुआ है और शहरभर में यह लोगों की पसंद बन गई है। यहां अब तक अधिकांश प्रबुधजन भोजन करने आ चुके हें। जिनमें जनप्रतिनिधी, समाजसेवी, व्यवसायी और अधिकारी भी शामिल हैं। सिंधी समाज के समाजसेवियों ने भगवानदास को इसको और बढाऩे के लिए समाज की तरफ से जमीन देने की बात भी कही है। भगवानदास बताते हैं की सभी दूर राजस्थानी, गुजराती, मारवाडी, पंजाबी सहित अन्य थालियों मिलती हैं, लेकिन कहीं सिंधी थाली नहीं मिलती थी। इसको शुरू करने के पीछे मकसद सिंधी संस्कृति और खानपान को आमजन तक भी निकालना है।
सिंधी थालीदाल-ऐ-दिलबरीपनीर-ऐ-पसंदाआलू-ऐ-अपनापनचपाती-ऐ-चमनचावल-ऐ-चाहतहलवा-ऐ-हलचलआचार-ऐ-प्यारसलाद-ऐ-स्वादपापड़ -ऐ-सिंधजय हिंदआपका स्वागत हैसिंधी थालीका लुत्फ उठाने के लिएआप पधारेंभगवान फकीर
कहां – यशवंत प्लाजा, इंदौर
कीमत – 60 रूपए
क्या – सिंधी थाली
लखन शर्मा