दर्पण से आज
बातें की बेहिसाब
तुम्हारे प्रतिबिम्ब को
मुस्काने दीं बेहिसाब
प्रतीक्षा भरे दृगों में
तुम ही थे …. सिर्फ तुम ही थे
आंजन की सलाई से
भरा सावन के मेघों सा
चाहत का विश्वास
भोर की चटकती उम्मीद में
लालिमा में , तबस्सुम में
तुम ही थे …. सिर्फ तुम ही थे
रुखसार पे सिमट आई
शर्मीली सी शबनम
कान के लरजते झुमके
नाक की दमकती लौंग
माथे की बिंदिया में
तुम ही थे …. सिर्फ तुम ही थे
अलकों के मध्य
सुवासित गजरा
अनुरागित निशा के
अमावसी वक्ष पर
प्रीत आभा से श्रृंगारित मन में
तुम थे … सिर्फ तुम थे
Author: Jyotsna Saxena (ज्योत्सना सक्सेना)