लूटकेस

हल्की पुल्कि, पारिवारिक हास्य का पिटारा

निर्देशक :- राजेश कृष्णन
अदाकार :- कुणाल खेमू, रसिका दुगल, विजय रहज, गजराज राव, आर्यन प्रजापति, रणवीर शौरी

फ़िल्म से पहले विवाद पर एक छोटी चर्चा कर लेते है
फ़िल्म सिनेमाघरों में आने वाली थी लेकिन फ़िल्म को नेपाली फ़िल्म जात्रा की नकल बताया गया, फिर करोना महामारी में तालाबन्दी जिससे फ़िल्म अटक गई अब जब कि फ़िल्म मूल विषय जात्रा जैसा ही है लेकिन फ़िल्म में बहुत से किरदार और नई नई रचनात्मकता को जोड़ा गया है तो फ़िल्म केवल मूल विषय पर समानता के चलते नकल नही मानी जा सकती।
कहानी :-
चंदन कुमार (कुणाल खेमू) मध्यम वर्गीय परिवार की समस्याओं से जूझते हुवे परिवार चला रहे है चावल के धंधे में है, जिज़की अपनी माली(रोकड़े) परेशानियां भी है, वह एक चाल में रहते है साथ मे उनकी पत्नी लता(रसिका दुगल) और बेटा(आर्यन प्रजापति) भी है,
चंदन को एक सूटकेस पड़ा मिलता है, वह अच्छे आदमी की तरह उस सूटकेस को मालिक तक पहुच देना चाहता है, लेकिन मनुष्य की लालच की मनः स्तिथि उस सूटकेस को घर ले आने पर मजबूर कर देती है और वह घर ले आता है, घर लाकर जब खोलता है तो उसके सपने उसकी इच्छाए, उसकी ज़रूरतें उस सूटकेस में मिलती है यानी नोटों से भरा पड़ा है वह सूटकेस।
यहां से शुरू होता है इच्छाए पूरी करने का खेला या तमाशा, आम आदमी को जेसे वरदान मिल गया हो
आज के कलयुग में रोकड़ा भगवान तो नही पर कम भी नही।
परन्तु इस सूटकेस को एक राजनेता (गजराज राव) दूसरे राजनेता को भेजते है और गलती से चंदन के पास पहुच गया है, अब एक लोकल गैंगस्टर (विजय राज) और पोलिस वाले (रणवीर शोरी) को इस सूटकेस खोजने के लिए लगाया जाता है
क्या यह रोकड़ा उसके मालिक तक पहुच पाता है
क्या चंदन अपनी ज़िंदगी बदल पाता हैं
क्या गुंडों और पोलिस से आम आदमी निपट पाता है
इन सवालों के जवाब के लिए फ़िल्म देखी जा सकती है

अब परिस्तिजन्य हास्य पैदा होता है वह बढ़िया बना है।
फ़िल्म एक पुरानी फ़िल्म नसीरूद्दीन शाह की मालामाल-1988 की याद ताजा कर देती हैं।
अदाकारी :-
कुणाल खेमू पूरे रंग में एभिनय करते नज़र आए मराठी भाषी किरदार को सटीक ग्रहण किया एक आम आदमी की सादगी- बेचारगी- लालच उम्दा एभिनय से चित्रण किया है
विजय राज इस अदाकार की यह खासियत है कि हर किरदार जो यह करते है वह जीवंत बना देते है
गजराज राव पिछले कई सालों से हम कॉमेडी करते देख रहे है इस बार भी उन्होंने किरदार को सोफ़ीसदी दिया हैं
रणवीर शोरी उम्दा कलाकार और रंगमंचीय आभा लिए अभिनेता है
रसिका दुगल, आर्यन प्रजापति छोटे छोटे किरदार से भी न्याय करते नज़र आए
कूल मिलाकर फ़िल्म शानदार अभिनेताओं के एक गुलदस्ता लगने लगती है।
सचिन नायक टेक्सी ड्राइवर के किरदार में दिखे किरदार छोटा पर सचिन पूरी तरह से छाप छोड़ जाते है
गीत संगीत :-
कूल तीन चार गाने है जो सिचुएशनल (परिस्तिजन्य) होने के कारण फ़िल्म को आगे बढ़ाते है
आप फ़िल्म में ही छोड़ आएगे गीत संगीत रोहन – विनायक का है दो गाने लाल पेटी, मुफ्त का चंदन, अच्छे लिखे और अच्छा फिल्मांकन किये गए है
जो फ़िल्म को रफ्तार देते है
विवाद पर हमारी राय
नेपाली फ़िल्म जात्रा की नकल नही है क्योकि जात्रा में राजनीतिक कोई किरदार नही था ईसमे है, जात्रा का दूसरा भाग सीक्वल भी बना था जात्रा जात्रा नाम से इसकी उम्मीद कम ही हैं
कमज़ोर चरण
फ़िल्म की कहानी कमज़ोर लगने लगती है आप फ़िल्म में अगले दृश्यो का अनुमान लगाने लगते है यह फ़िल्म की कमज़ोरी मैंनी जाएगी
कहानी और मजबूत हो सकती थी
बजट :-
इसका कोई पुख्ता आंकड़े नही आए है तो हम अनुमान पर चल रहे है
7 से 8 करोड़ में फ़िल्म तैयार हुई होगी और फ़िल्म की बिक्री हुई है लगभग 12 करोड़ में हॉटस्टार डिज्नी ओटीटी पर सेटेलाइट अधिकार की कोई जानकारी उपलब्ध नही हुई है।
अंत मे :-
फ़िल्म ओटीटी पर प्रदर्शित हुईहै तो आपको घर पर ही देखकर आप मनोरंजन कर पाएंगे चुकी फ़िल्म पारिवारिक मनोरंजन से भरपूर है तो आप पूरे परिवार के साथ फ़िल्म देख सकते हो।

फ़िल्म समीक्षक

इदरीस खत्री

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