दिल बेचारा

अधूरेपन के साथ मुकम्मल मुहब्बत की दास्तान

निर्देशक :- मुकेश छाबड़ा
कलाकार :- सुशांत, संजना सांघी, साहिल वैद, शासवता चटर्जी, स्वस्तिका मुखर्जी, सैफ अली खान
संगीत :- ए आर रेहमान

फ़िल्म डिज्नी हॉटस्टार के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित की गई है,
किसी नियामत का पास होना और उसे खो देने का दर्द या उस नियामत की कमी क्या होती है
इस सृष्टि में इंसानों में मुकम्मल(संपूर्ण) तो कोई भी नही ,
बस इसी कमी से झुझते दो इंसान जब साथ आते है तो वह सपनों की माला में फूलों को गूंथ लेते है और उस माला को पूरा करने की शिद्दत में खुद को खो देते है,
परन्तु उस कमी को भुलाया तो जा सकता कुछ पलों के लिए, लेकिन नकारा नही जा सकता –यही एहसास मुहब्बत होता है
यही शिद्दत मुहब्बत होती है
खुद को भूल कर किसी के लिए आंसू बहाना मुहब्बत है
किसी और के लिए अपनी खुशियों और आदतों की कुर्बानी दे देना मुहब्बत है
किसी और के वजूद में खुद के एहम और वजूद vको भूल जाना ही मुहब्बत है
शायद आज की युवा पीढ़ी मेरी मुहब्बत की व्याख्या से संतुष्ट न हो
पर
अजब उसूल है मकतबे इश्क का यारो,,
जिसे सबक याद हुवा उसे कभी छुट्टी न मिली,,,,
फ़िल्म पर आते है

कहानी :-
एक अंग्रेजी नावेल द फाल्ट इन अवर स्टार्स पर आधारित है पर इसमें छोटे छोटे बदलाव करके पेश किया गया हैं, क्योकि अमेरिकन नॉवेल और वहां के संस्कृति और संस्कारों को तो भारतीय परिवेश में बदलना ज़रूरी भी था।
किजी बासु( संजना सांघी)एक बंगाली लड़कीं के इर्द गिर्द बुनी गई है जो कि कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रही है उसे साँस लेने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर हमेशा उसके साथ होता है और एक नली जो उसके नाक के जरिये उस कमी को पूरी करती रहती है जो कि ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही है और वह अपनी टूटी फूटी साँसे इसी सिलेंडर से लेते हुवे जी रही है
अब किज़ी जवान है तो सपने होना भी लाजमी ही है जिसमे से एक सपना कालेज के सबसे खूबसूरत लड़के को डेट करने का भी है, लेकिन एक प्रसिद्ध एलबम गायक के अधूरे गाने को पूरा करने का भी सपना संजोय बैठी है।
लेकिन इस कहानी में वक्त एक ऐसा विलेन है जो किज़ी को साथ ले जाने में कोई कसर नही छोड़ रहा
अब इधर एक हीरो इमैनुएल राजकुमार जूनियर उर्फ मैंनी (सुशांत राजपूत)की एंट्री होती है जो की रजनीकांत साहब के बहुत बड़े फैन है और ज़िन्दगी में आने वाली मुसीबतो से दो दो हाथ करके निपटाने में माहिर है, साथ ज़िन्दगी को हंसते खेलते बिताना चाहते है, लेकिन इनके हंसते मुस्कुराते अंदाज़ के पीछे भी एक बहुत बड़ी जानलेवा बीमारी छिपी है जिसके चलते यह अपना एक पैर गवा चुके है, जिसकी वजह से उनका पसंदीदा खेल बास्केटबॉल का शौक भी गवा चुके है
अब जब कि यह दोनो अलग अलग मिज़ाज और अपनी अपनी कमियों को झेल रहे के लोग एक दूसरे के तज़दीक आते है तो भयानक और काली अंधेरी ज़िन्दगी एक खूबसूरत तस्वीर में बदलने लगती और जो मुहब्बत और खुशी का मुज़ाहिरा होता उसकी कीमत पूरी दुनिया की दौलत नही लगा सकती,,,
अब मैंनी की मुहब्बत का जादू ऐसा चलता है कि कीज़ी मौत को भूल कर उस मुहब्बत का हिस्सा बन जाती है और मौत को भूल कर मुहब्बत की पगडंडी पर सफर पर निकल पड़ती है
अब मुसीबत बनी बीमारी मौत के साथ बह फैलाए खड़ी हो जाती है और कुदरत के आगे किज़ी मैंनी की मुहब्बत घुटने टेकने पर मजबूर हो जाती है,
क्या मुहब्बत का रिश्ता इतना ताकतवर होता है कि कुदरत भी सलाम कर देती है और अपने क़वानीन तोड़ने पर मजबूर हो जाती है ??
क्या किज़ी मैंनी का रिश्ता मौत के चक्र से खुद को आज़ाद करवा कर साथ निभा पाएगा या दुख दर्द या बिछड़ने के बाद खुद के चेहरे पर दुनिया के सामने चेहरे पर झूठी मुस्कान लिएखुद के खुश रहने का नाटक करेगे ?
या मैंनी और किज़ी कि अधूरी ज़िन्दगी के सारे सपने चकनाचूर हो जाएगे…
इन सवालों के जवाब के लिए फ़िल्म देखनी बनती है
फ़िल्म क्यो देखे

अदाकारी
सुशांत सिंह राजपूत जिसने इस फ़िल्म को आम से खास बना दिया है, सुशांत ने न केवल साबित किया साथ ही एभिनय के उरूज पर खुद को ले गए है जिस आत्मीयता से किरदार को परोसा और दिखाया है वह काबिले गौर है, जाते जाते सुशांत इस इंडस्ट्री को करारा तमाचा जड़ गए है कि अभिनेता किसी भाई भतीजा वाद का गुलाम नही खुद की प्रतिभा के बल पर होता है,,,,मस्त मौला खिलंदड़ किरदार को इतनी मासूमियत से सजाया हैं कि उसमे कमी खोजना मेरे लिए मुश्किल बन गया था, सुशांत ने इस फ़िल्म का टाइटल गाना बिना रिटेक एक ही टैक और एक बार मे बिना रुके शूट करवा दिया था।
संजना सांघी कही पर भी सुशांत के दौड़ते वक्त हम कदम लगी है, संजना का किरदार टेड़ामेडा है पर संजना ने बखूबी इंसाफ किया है, बंगाली सिनेमा के दो बड़े नाम शास्वत चटर्जी और स्वास्तिका मुखर्जी ने माता पिता किरदारों को बखूबी निभाया है और फ़िल्म में सोने पर सुहागा लगे है
सैफ अली खान छोटे कैमियो में है और पागलपन के साथ सनकी किरदार को सो फीसदी दे गए है।

संगीत और गाने :
रहमान का संगीत और अमिताभ भट्टाचार्य के गीत फ़िल्म खत्म होने के बाद भी आपके साथ साथ होंगे दोनो उम्दा और बेहतरीन हैं।

फ़िल्म का एक और पहलू
बेहद संजीदा विषय परन्तु पटकथा में एक लाइन के सँवाद जो कभी मौज मस्ती के साथ होते है तो कभी मौत और ज़िन्दगी की बानगी सुनाते है
संजीदा विषय होते हुवे भी पूरी फिल्म में आपके चेहरे पर मुस्कुराहट बनी रहती है साथ ही कुछ दृश्यों में आंखे पानी से डबडबा जाती है
अंत मे
सुशांत की भले ही यह अंतिम फ़िल्म हो पर वह इस फ़िल्म के साथ आपके आंखों से होते हुवे ज़हन के बाद दिल मे बसें रहेंगे कई सालों तक

बजट : फ़िल्म का बजट 35 से 40 करोड़ के बीच रहा है, फ़िल्म के अधिकार पहले ही 80 करोड़ में बेच दिए गए थे, संगीत और सेटेलाइट अधिकार लगभग 30 करोड़ की कमाई दे सकते है, तो फ़िल्म सिनेमाघरों में आए बिना ही सुपर हिट की श्रेणी में खड़ी हो चुकी है।

स्टार्स : इस फ़िल्म को स्टार्स की श्रेणी से बाहर रखा जाना चाहिए परन्तु मजदूरी है तो 4 स्टार्स फ़िल्म के लिए

फ़िल्म समीक्षक
इदरीस खत्री

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