तुम्हारे हैं
वेदना के इन स्वरों में… कुछ स्वर तुम्हारे हैं सिन्धु के प्रचंड वेग में.. कुछ लहरे तुम्हारी हैं जेठ का सा ताप बहुत है.. शाप कुछ तुम्हारे हैं किया सृजन…
पद
वो कौन सा है पद, जिसे देता ये जहाँ सम्मान । वो कौन सा है पद, जो करता है देशों का निर्माण वो कौन सा है पद, जो बनाता है…
रविवार
काश.. आज फिर रविवार होता… सो जाती फिर से… मुह ढांप के… करवट भी न बदलती… फिर तो… सोती रहती तान के… खोयी रहती… मै तो… निद्रा के आगोश में……
बिटिया की पीर
लौटकर तो आयेंगे यहीं, चाहकर भी न जा पाएंगे कहीं खूंटे से बंधी गाय की तरह, चरवाहे की भेड़ बकरी की तरह सांझ ढलते ही आयेंगे यही, चाहकर भी न…
Bacchapann ke woh din…
बच्चपन के वो दिन… कितने सुहाने थे… न किसी का डर था… न झूठे बहाने थे… खेलना ही ज़िन्दगी बन चूका था, सिर्फ मस्ती और मोज के दिन बिताने थे…!!…
माँ
संबंध नहीं हैं माँ केवल संपर्क नहीं है, आदर्श है जीवन का केवल संबोधन नहीं है, जन्मदात्री है वो मात्र इंसान नहीं है, व्यक्तित्व बनाती है, केवल पहचान नहीं है,…
बेटियाँ
बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैं जो बुनती हैं एक शाल अपने संबंधों के धागे से। बेटियाँ धान-सी होती हैं पक जाने पर जिन्हें कट जाना होता है जड़ से अपनी…
प्रिये कान्हा
नभ का श्यामल वर्ण था कान्हा की तरह… धरती का रंग था धानी चूनर ओढ़े राधा की तरह झुका हुआ नीलगगन ओस से भीगी धरा बरसते मेघ लरजती देह चूमने…
पत्थर
पत्थरों को पूजते पूजते अब तक रे मन.. क्यों नही पत्थर हुआ तू रे… जग की विद्रूप हंसी के सम्मुख… व्यंग बाणों के आमुख… क्यों नही पत्थर हुआ तू रे……
बदल रहा है
यह सवाल कई दिन से मेरे मन में चल रहा है, जो कल तक दिल में था आज क्यों बदल रहा है, जो मेरे विचारों का सूरज था आज क्यों…