फ्लैश

मॉनव तस्करी का काला आईना दिखाती सीरीज

निर्देशक :- दानिश असलम
अदाकार :- स्वरा भास्कर, अक्षय ओबेरॉय ,महिमा मकवाना, युधिष्ठिर, विद्या, राखी मंशा
लेखक :- पूजाला दास श्रुति
संगीत :- माँनस शिखर
कला निर्देशन :- शिवालिका प्रकाश

सीरीज से पहले एक मुख्तसर (लघु) चर्चा :-
सीरीज इरोज के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित हुई है तो सेंसरबोर्ड को भूल कर आगे बढ़ते है
प्रत्येक एपिसोड लगभग 35 से 40 मिंट का है जो कि 8 भाग में हैं, विषय सत्यघटना से प्रेरित है- आधारित आजकल नही बोला जाता नही तो कानूनी पचड़े पड़ जाते है,
खैर,,
विषय मॉनव तस्करी जिसमे मूलतः लड़कियों की अस्मत का सौदा होता है पर आधारित होकर अंतराष्ट्रीय अपराध होने के साथ अमानवीय- घिनोना-तिरस्कारपूर्ण होने के साथ अति संवेदनशील भी है लेकिन इस विषय पर पहले भी काम हो चुका है फिर भी देखना तो बनता ही है,,
रानी मुखर्जी की मर्दानी का मूल विषय इसी तानेबाने पर बुना गया था,
कहानी :-
एक अप्रवासी भारतीय परिवार की 16 वर्षीय बेटी ज़ोया की अगवा होने से फिर मानवतस्करी निरोध दस्ता पोलिस की आमद जिसमे एसीपी राधा (स्वरा भास्कर) है जिसमे ऐसे अपराधियो के खिलाफ आक्रोश भरा पड़ा है, अब शुरू होता है बच्ची को खोजने की मशक्कत जिसमे हमारे देश के अपराध जगत का एक काला सच सामने आता है जो कि नृशंस और अमानवीयता की हदें पार चुका है,
क्या एसीपी राधा ज़ोया को उन दरिंदो के चंगुल से छुड़ा पाएगी
इस सवाल के जवाब के लिए सीरीज देखी जा सकती है,
फिल्मांकन यथार्थ के निकट रखा गया है, जिस में कला निर्देशक का एहम काम रहा है जो कि शाल्विका प्रकाश ने बखूबी निभाया है,
अदाकारी :-
स्वरा भास्कर निसन्देह बेहतरीन अदाकारा है वह किरदार की जीवन्तता को समझते हुवे उस पर डिटेलिंग के साथ खुद को प्रस्तुत करती है जिससे वह अभीनय के चारो आयाम – आंगिक- वाचिक- अहारिक- सात्विक में खरी उतरती लगी, अक्षय ओबेरॉय के रूप में बॉलीवुड को एक नए विलेन मिल गया है वह भी अपने किरदार से बखूबी इंसाफ कर गए है शेष सभी किरदारों को ज्यादा स्क्रीन नही मिली पर कविष सिन्हा ने हर किरदार की कास्टिंग में पूरी ईमानदारी दिखाई और किरदारों ने भी जितना भी वक्त मिला उसमे पूरी शिद्दत और लगन दिखी
खूबियां
विषय प्रासंगिक होने के साथ वैश्विक अपराध की तरफ खुलता है- मॉनव तस्करी विषय पर ही रूह कांप जाती है,
कमियां
विषय पर पहले भी कम हो चुका है सीरीज में आप अनुमान लगाने लगते है कि आगे क्या क्या हो सकता है
आठ एपिसोड को कम किया जा सकता था बीच बीच मे पकड़ छूटने लगती है क्योकि विषय मे नयापन नही है और आप पहले भी फिल्में देख चुके है,
अंत मे एक चर्चा
क्योकि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई सेंसरबोर्ड हस्तक्षेप नही है तो विषय अनुकूल सँवाद डाले गए है तो सीरीज पारिवारिक नही रही वेसे भी विषय केवल जागरूकता और सावधानी का है तो ज़रूरी नही पारिवारिक भी हो
सीरीज को देखा जा सकता है
ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कोई सेंसरबोर्ड नही तो नृशंस- जघन्य- गालियां सब कुछ यथार्थ के तज़दीक हो दिखाने की छूट मिल जाती है।

फ़िल्म समीक्षक :-
इदरीस खत्री

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