क्या हैं नागबलि-नारायण बलि ?

नारायण नागबलि ये दोनो विधी मानव की अपूर्ण इच्छा , कामना पूर्ण करने के उद्देश से किय जाते है इसीलिए ये दोने विधी काम्यू कहलाते है। नारायणबलि और नागबपलि ये अलग-अलग विधीयां है। नारायण बलि का उद्देश मुखत: पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्प/साप/नाग हत्याह का दोष निवारण करना है। केवल नारायण बलि यां नागबलि कर नहीं सकतें, इसलिए ये दोनो विधीयां एकसाथ ही करनी पडती हैं।

नारायण नागबली यह विधी एक महत्वपुर्ण विधी है जो अपने पित्रों के नाम से की जाती है ताकी उनकी आत्मा को शांती मिले और वह इस जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाये |

नारायण नागबली यह विधी मानव की अपूर्ण इच्छा , कामना पूर्ण करने के उद्देश से की जाती है | नारायणबली और नागबली यह अलग-अलग पूजाएं है। नारायण बलि का उद्देश मुख्यत: पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्प/साप/नाग हत्या का दोष निवारण करना है।

इस विधी का प्रमुख उद्देश है अपने अतृप्त पितरोंको तृप्त करके उन्हे सदगती दिलाना। क्योकी मरनेवालों की सभी इच्छाएँ पुरी नही नही हो सकती है। कुछ तीव्र इच्छाएँ मरने के बाद भी आत्मा का पिछा नही छोडती है। इस स्थिती में वायुरूप होने के पश्चात भी आत्मा पृथ्वीपर हि विचरण (भ्रमण) करती है। वास्तव में जीवात्मा सूर्य का अंश होता है। जो निसर्गत: मृत्यू के पश्चात सुर्यकी और आकर्षित होता है। जैसे पृथ्वी पर जल समुद्र की और आकर्षित होता है। किंतु वासना एवं इच्छाएँ आत्मा को इसी वातावरण में रहने के लिए मजबूर कर देती है। इस स्थिती में आत्मा को बहोत पीडाएँ होती है। और अपनी पिडाओंसे मुक्ती पाने के लिए वंशजो को सामने सांसरीक समस्या का निर्माण करता है। इन समस्याओं से मुक्ती पाने हेतु सामान्य इन्सान पहले तो वैद्यकिय सहारा लेता है। यदी उसे समाधान नही मिलता तो ज्योतिष का आधार लेता है। क्योंकी कुंण्‍डली में कुछ ग्रह स्थितीयाँ एैसी होती है जिससे पितृदोष का अनुमान लगाया जा सकता है।

पितरों की संतुष्टी हेतु उनकी श्रध्दा से जो पुजा की जाती है उसी का श्राध्द कहते है। श्राध्द को उचित सामग्री, स्थान, मुहूर्त, शास्त्रसे किया जाए तो निश्चय ही फलदायी बनता है।

पितृदोष निवारण के लिए नारायण नागबलि कर्म करने के लिये शास्त्रों मे निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते है। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्‍यक है। ये कर्म जिन जातकों के माता पिता जिवित हैं वे भी ये कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद कुंवारा ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकता है।

नारायण नागबलि ये दोनो विधी मानव की अपूर्ण इच्छा , कामना पूर्ण करने के उद्देश से किय जाते है इसीलिए ये दोने विधी काम्यू कहलाते है। नारायणबलि और नागबपलि ये अलग-अलग विधीयां है। नारायण बलि का उद्देश मुखत: पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्प/साप/नाग हत्याह का दोष निवारण करना है। केवल नारायण बलि यां नागबलि कर नहीं सकतें, इसगलिए ये दोनो विधीयां एकसाथ ही करनी पडती हैं।

निम्नालिखीत कारणोंके लिऐ भी नारायण नागबलि की जाती है

  • संतान प्राप्ति के लिए
  • प्रेतयोनी से होनवाली पीडा दुर करने के लिए
  • परिवार के किसी सदस्य के दुर्मरण के कारण इहलोक छोडना पडा हो उससे होन वाली पीडा के परिहारार्थ (दुर्मरण:याने बुरी तरह से आयी मौत। अपघा, आत्म‍हत्याद और अचानक पानी में डुब के मृत्यु होना इसे दुर्मरण कहते है)
  • प्रेतशाप और जारणमारण अभिचार योग के परिहारार्थ के लिऐ।

पितृदोष निवारण के लिए नारायण नागबलि कर्म करने के लिये शास्त्रों मे निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते है। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्‍यक है।

ये कर्म जिन जातकों के माता पिता जिवित हैं वे भी ये कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद कुंवारा ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकता है। संतान प्राप्‍ती एवं वंशवृध्दि के लिए ये कर्म सपत्‍नीक करने चाहीए। यदि पत्‍नी जीवित न हो तो कुल के उध्‍दार के लिए पत्‍नी के बिना भी ये कर्म किये जा सकते है । यदि पत्‍नी गर्भवती हो तो गर्भ धारण से पाचवे महीनेतक यह कर्म किया जा सकता है। घर मे कोई भी मांगलिक कार्य हो तो ये कर्म एक साल तक नही किये जाते है । माता या पिता की मृत्यु् होने पर भी एक साल तक ये कर्म करने निषिध्द माने गये है।

नागबली यह विधी शौनक ऋषीने अतलायी है। किसी व्यक्तीने अपने जीवन मे जो द्रव्य संग्रह किया है। उसके द्रव्य पर आसक्ती रह गयी तो वह व्यक्ती मृत्यू के पश्चात उस द्रव्यपर नाग बनके रह जाता है। और उस द्रव्य का किसी को लाभ नही होने देता। ऐसे नाग की उस जन्म में अथवा पिछले किसी जन्म में हत्या की गयी तो उसका शाप लगता है। उदा:- वात, पित्त, कफ, त्रिदोष, जन्य ज्वर, शुळ, उद, गंडमाला, कुष्ठकंडु, नेत्रकर्णकृच्छ आदी सारे रोगोका निवारण करने के लिए एवंम् संतती प्राप्ती करने के लिए नागबली विधान करना चाहिए। ये विधान श्रीक्षेत्र त्रिबंकेश्वर में ही करने चाहिए।

नारायण बलि कर्म विधि हेतु मुहुर्त
सामान्यतया: नारायण बलि कर्म पौष तथा माघ महिने में तथा गुरु, शुक्र के अस्तगंत होने पर नही किये जाने चाहीए। परंन्‍तु ‘निर्णय सिंधु’ के मतानुसार इस कर्म के लिए केवल नक्षत्रो के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायण बलि कर्म के लिए धनिष्ठा पंचक एक त्रिपाद नक्षत्रा को निषिध्द माना गया है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, शततारका , पुर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा एवं रेवती इन साढे चार नक्षत्रों को धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिका, पुनर्वसु उत्तरा विशाखा, उत्तराषाढा और उत्‍तराभाद्रपदा ये छ: नक्षत्र ‘त्रिपाद नक्षत्र’ माने गये है।मार्कण्डेय  पुराण  में कहा गया है कि
पितृनिःश्वास   विध्वस्तं  सप्तजन्मार्जित  धनम्।
त्रिजन्म  प्रभवं देवो  निःश्वासो हन्त्यसंशयम्।।
यतस्ते विमुखायान्ति  निःस्वस्य  गृहमेधिनः।
तस्मादिष्टश्च  पूर्तश्च  धर्मो  दावपिनश्यतः।।
पितरों  के  असंतुष्ट  हो जाने  से सात  जन्मों  का  पुण्य नष्ट हो जाता है  और देवताओं के  रुष्ट हो  जाने  से  तीन  जन्मों का  पुण्य  नष्ट  हो  जाता  है। देवता और पितर जिससे  रुष्ट  हो जाते हैं  उसके  यज्ञ   और  पूर्त  दोनों  धर्मो  का   नाश  हो  जाता  है।
अपि  स्यात्सकुलेस्माकं  यो  नो   दघाद्ज्जलांजलिम्।
नदीषु  बहुतोयाषु  शीतलाषु  विशेषतः।
अपि  स्यात्सकुलेस्माकं  यः श्राध्दनित्यमाचरेत्।।
पयोमूलफलैर्भक्ष्यैस्तिल  तोयेन  वा  पुनः।।
पितृगण  कहते है  कि  क्या हमारे  वंश  में   कोई ऐसा भाग्यशाली  जन्म  लेगा, जो शीतल  जल  वाली नदी   के  जल से हमें  जलांजलि  देकर  तथा  दुग्ध, मूल, फल,  खाघान  सहित  तिल  मिश्रित जल से श्राध्द  कर्म  करेगा।

याज्ञवल्क्यस्मृति में श्राद्ध-कर्म को लेकर कहा गया है कि श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन-धान्य, सुख-समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है।

मत्स्यपुराण और वायुपुराण में श्राद्ध के विधान और इसके पर विस्तार से चर्चा की गई है।  विष्णुधर्मोत्तरपुराण में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण पाकर वे वर्ष भर तृप्त बने रहते है। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है, वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने पर पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को अनेक दुख और कष्ट भोगना पड़ता है।

उज्जैन के पास ‘सिद्धवट’ का स्थान
उज्जैन के पास भैरवगढ़ के पूर्व में विमल जल-वाहिनी शिप्रा के मनोहर तट पर ‘सिद्धवट’ का स्थान है। ‘प्रयाग’ में जिस प्रकार ‘अक्षयवट’ हैं, नासिक में पंचवट हैं, ‘वृंदावन’ में वंशीवट हैं तथा गया में ‘गयावट’ हैं, उसी प्रकार उज्जैन में पवित्र ‘सिद्धवट’ हैं।

वैशाख मास में यहाँ भी यात्रा होती हैं। कर्मकाण्ड, मोक्ष कर्म, पिण्डदान एवं अंत्येष्टि के लिए प्रमुख स्थान माना जाता हैं। नागबलि, नारायण बलि-विधान प्राय: यहाँ होता रहता है।

कृपया ध्‍यान दे – विशेष सूचना :-

  • कृपया मुहूर्त के १ दिन पहले त्र्यंबकेश्वर मे पहुँचे|
  • त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा १.३० घंटे की होती है|
  • कृपया आपके साथ नये सफेद कपड़े, धोती, गमछा (नेपकिन) और आपकी पत्नी के लिए साड़ी, ब्लाउज (जिसका रंग हरा या काला नही होना चाहिए) लेके आना है।
  • ये पूजा कुशावर्त कुंड मे संपन्न होती है।
  • उपर दिए सभी वस्त्र नए होने चाहीए और यह वस्त्र काला और हरा रंग छोडकर कौनसे भी रंग के चलेंगे |
  • पुजा संपन्न होने के बाद वस्त्र यहा छोड देने होते है|
  • कृपया मुहर्त के एक दिन पहले सभी लोग श्याम ६ बजे तक पहुच जाये|

आपकी जन्म कुंडली में पितृदोष  है या नहीं? नारायण बलि, नागबलि एवं त्रिपिंडी  श्राध्द पूजा के लिए घबरायें नहीं, आप समय लेकर हमसे  मिलें अथवा संपर्क करें-

Indore Dil Se - Jyotishपंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री
मोब.– +91 96692 90067 (मध्यप्रदेश)
+91 90243 90067 (राजस्थान)
(ज्योतिष,वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ),
मोनिधाम (मोनतीर्थ), गंगा घाट,
संदीपनी आश्रम के निकट, मंगलनाथ मार्ग,
उज्जैन (मध्यप्रदेश) – 465006

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    One thought on “क्या हैं नागबलि-नारायण बलि ?

    1. आपका अपना …
      पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री
      मोब.–09669290067 (मध्यप्रदेश) और 09024390067 (राजस्थान)
      (ज्योतिष,वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ),
      मोनिधाम (मोनतीर्थ), गंगा घाट,
      संदीपनी आश्रम के निकट, मंगलनाथ मार्ग,
      उज्जैन (मध्यप्रदेश) -465006

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