जब आप जप करते हैं तो आपका मन पूरे ब्रह्मांड में भटक रहा होता है।
फिर भी जप करो!
जब आप जप करते हैं तो आपका मन अतीत तथा भविष्य में भटक रहा होता है।
फिर भी जप करो!
जब आप जप करते हैं तो आप प्रभु के नामों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
फिर भी जप करो!
आपको जप करने में कोई रुचि नहीं है।
फिर भी जप करो!
आपकी कामुक इच्छाएँ हैं।
फिर भी जप करो!
आप जप में अपराध कर रहे हैं।
फिर भी जप करो!
आप बेहतर जप करने के लिए प्रभु से प्रार्थना नहीं कर रहे हैं।
फिर भी जप करो!
आप प्राय: देर रात्रि में जप करते हैं ।
फिर भी जप करो!
सभी बाधाओं के बावजूद आपको जप क्यों करना चाहिए?
इसलिए की:
पवित्र नाम के जप के समान कोई व्रत नहीं है, इससे श्रेष्ठ कोई ज्ञान नहीं है, इसके समीपवर्ती कोई साधना नहीं है, तथा यह सर्वोच्च फल प्रदान करता है।
इसके समान कोई तपस्या नहीं है, तथा पवित्र नाम के समान कुछ भी प्रभावयुक्त या शक्तिशाली नहीं है।
जप धर्मपरायणता का सबसे बड़ा कार्य और परम शरण है।
यहाँ तक कि वेदों के शब्दों में भी इतनी शक्ति नहीं है कि वे उसके परिमाण का वर्णन कर सकें।
जप मुक्ति, शांति और शाश्वत जीवन का सर्वोच्च मार्ग है।
यह भक्ति की पराकाष्ठा है, हृदय की आनंदमयी प्रवृत्ति एवं आकर्षण है तथा परमेश्वर के स्मरण का सर्वोत्तम रूप है।
यह जीवों के स्वामी एवं भगवान्, उनकी सर्वोच्च पूजनीय वस्तु तथा उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक एवं गुरु के रूप में उनके लाभ के लिए प्रकट हुआ है।
जो कोई भी अपनी नींद में भी निरंतर भगवान् के पवित्र नाम का जप करता है, वह सरलता से अनुभव कर सकता है कि कलियुग के प्रभाव के बावजूद नाम स्वयं प्रभ का प्रत्यक्ष रूप है
कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।।
लेखक :- अंकित शर्मा