आज पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ इंदौर में थे और उनका पहला आयोजन आज सुबह गांधी हॉल इंदौर में था। मांग मातंग समाज के द्वारा आयोजित आयोजन में कमलनाथ के पहुंचते ही उन्हें इंदौरी मीडिया ने घेर लिया। वीडियो, फोटो हो जाने के बाद कमलनाथजी ने इंदौरी मीडिया से निवेदन किया कि आपका काम हो गया हो तो हट जाइए क्योंकि जो लोग आयोजन में आए हैं वो देख नहीं पा रहे हैं। इस पर एक वीडियो बनाने वाले पत्रकार ने उन्हें धमकी भरे अंदाज में कहा कि हम सभी आयोजन से चले जाएंगे, इस पर कमलनाथ बोले आप मुझे धमकी दे रहे हैं, ऐसा है तो आप लोग चले ही जाइए?
सवाल यह है कि जिस भी पत्रकार से कमलनाथजी की बहस हुई है क्या वह यह नहीं जानता समझता था कि उसे कमलनाथ जी के निवेदन के बाद साथियों सहित वहां से हट जाना था। कमलनाथ वहां कोई प्रेस कांफ्रेंस तो नहीं कर रहे थे जो लंबे समय तक वह मीडिया के सामने रहते! वो गांधी हॉल में मांग मातंग समाज के निवेदन पर गए थे, समाज के लोगों से उनकी बात करना चाह रहे थे। मीडिया से उन्होंने अनुरोध ही किया था जो कि आक्रोश बनकर सामने आया। सवाल यह भी है कि जो नेता 50 साल से राजनीति कर रहा है, देश विदेश के मीडिया का सामना कर चुका है क्या वो हाथों में मोबाइल, कैमरा लेकर पत्रकारिता करने वाले चंद पत्रकारों से डरेगा? बिल्कुल भी नहीं डरेगा क्योंकि वो भी जानता है कि आजकल दो तरह का मीडिया काम कर रहा है। असल मीडिया किसी को धमकाता नहीं है वो अपना काम करता है। आज भी उसने अपना काम किया है। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि कमलनाथजी सही है या गलत? लेकिन आज एक सवाल इंदौरी मीडिया को भी खुद से करना चाहिए कि शहर में असली पत्रकार कितने हैं और कितने फर्जी?
आज मेरा सवाल उन पत्रकार साथियों से है जो गांधी हॉल गए थे। क्या उन्हें व्यक्तिगत रूप से गांधी हॉल के आयोजन में आमंत्रित किया गया था? या वो सभी अपनी मर्जी से सोशल मीडिया पर चली कमलनाथ के आज के आयोजन की खबरों को देख वहां पहुंच थे। यह मान भी लेते हैं कि इंदौरी पत्रकार सोशल मीडिया पर चले संदेश को निमंत्रण मान वहां पहुंचे थे तो क्या यह बताने कि हम किसी प्रोटोकाल को नहीं मानते हैं क्योंकि हम मीडियावाले हैं। कमलनाथजी से हुए विवाद ने आज यह भी साबित किया है कि शहर में दो तरह का मीडिया काम कर रहा है! एक वो मीडिया जो गरिमा के साथ आयोजन में जाता है और दूसरा वो मिडिया जो झुंड में जाता है और यह बताता है कि वो ही असली मीडिया है। मुझे तो बहुत ही दुखद लग रहा है कि क्यों इस विवाद को तुल दिया जा रहा है जबकि गलती मीडिया पर्सन की हीं थी उसने ही सामने वाले पक्ष को कुछ कहने पर विवाद किया। मुझे तो आश्चर्य है कि क्यों प्रेस क्लब के कुछ पदाधिकारी इस विवाद में उनका बचाव कर रहे हैं, जो शहर के मीडिया को बदनाम कर रहे हैं। यदि बहस करने वाला मीडिया पर्सन सही है होना तो यह चाहिए कि कमलनाथजी की खबर न अखबारों में दिखे ना ही न्यूज चैनल में। लेकिन दावे से कहता हूं बात को तुल देने वाले और मीडिया के अपमान की बात करने वाले लोग कमलबाथजी के विभिन्न आयोजन की किसी भी खबर को रोक नहीं पाएंगे। कल के तमाम अखबारों में कमलनाथजी विवाद के बाद भी सुखियों में होंगे! अखबारों में भी न्यूज, न्यूज चैनल्स में भी। क्योंकि जो भी घटित हुआ है उन पत्रकारों के साथ हुआ है जो खुद गलत थे।
मेरी नजर में लिफाफों के इंतजाम में जगह जगह जा पहुंचने वाला तो असली पत्रकार नहीं होता है। किसी नेता के ऑफिस के बाहर लिफाफे के इंतजार में बैठा व्यक्ति भी मेरी नजर में पत्रकार नहीं हैं और मोबाइल, कैमरा लेकर घूमने वाला विडियो बनाने वाला भी हर कोई पत्रकार नहीं है। कुछ एक चुनिंदा है जो मोबाइल हाथ में मोबाइल और कैमरा लेकर पत्रकारिता कर रहे हैं लेकिन वो वाद विवाद से दूर रहकर अपना काम करते हैं। वो विवादों में नहीं पड़ते है ना ही खुद को बड़ा बताते हैं।
अब यह देखना होगा कि सोशल मीडिया पर कमलनाथ का विरोध करने वाले चुनिंदा पत्रकार कमलनाथजी क्या बिगाड़ पाते हैं? इंदौर प्रेस क्लब ने तो कभी वह दिन भी देखा है जब भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने प्रेस क्लब में ही कुछ पत्रकारों को धंधेबाज और दलाल तक बोल दिया था । लेकिन क्या हुआ, सभी पत्रकार जानते हैं।
अंत में यहीं कहूंगा कि आजकल नेता भी मानने लगे है कि पत्रकारों को लिफाफा दो तो क्या नहीं छपता है, अखबार, चैनल्स को विज्ञापन दो तो क्या नहीं छपता है या दिखाया नहीं जाता है। मीडिया को पहले तो उनका यह भ्रम दूर करना होगा,लेकिन क्या ऐसा कुछ होगा, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। पत्रकार जब तक लिफाफों में नपते और तुलते रहेंगे जब तक मीडिया बदनाम होता रहेगा । कमलनाथ ने तो सुबह हुए विवाद पर अपनी सफाई मीडिया के सामने भी रख दी है, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मीडिया में उनकी खबरों का बहिष्कार होगा, उनका बहिष्कार होगा? यदि ऐसा कुछ नहीं होता है तो फिर किस बात का हल्ला और किस बात का शोर? आसमान पर थूका मुंह पर ही आता है, बस यही समझने वाली बात है।
साभार :- ब्रजेश जोशी, इंदौर