अपनी हुकूमत के दौर में अंग्रेज़ हमारे देश में बहुत मज़े में रहे होंगे। हालाँकि हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने उन्हें कभी चैन से रहने नहीं दिया, लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि हम अंग्रेजों को ठीक तरह से प्रताड़ित नहीं कर पाए, और हमने बिना आंसुओं के उन्हें सुक्खा-सुक्खा ही विदा कर दिया। दरअसल, उस समय प्रताड़ित करने के उन्नत तरीके हमारे पास मौजूद नहीं थे। लेकिन आज स्थिति अलग है, ये इक्कीसवीं सदी का भारत है जो घनघोर तरीके से एक साधन संपन्न देश बन चुका है। आज हर हाथ में मोबाईल है, भर पेट डाटा है और किस्मत से आटा भी है।
आज हमारे पास प्रताड़ित करने के इतने तरीके मौजूद हैं कि हम अंग्रेज़ तो क्या अपने देशवासियों की भी नाक में दम कर सकते हैं। आज हम मोबाइल के एक क्लिक पर किसी को भी गुड मॉर्निंग, गुड नाईट, शुभ दिन, शुभ संध्या वगैरह के अद्भुत मैसेज भेज सकते हैं, वो भी लाल पीले फूलों की फ़ोटो के साथ, फिर चाहे हम अगले को जानते हो या न जानते हो। और तो और इसके लिए हमें किसी के फोन नंबर की भी गरज नहीं है, हम मैसेंजर आदि पर भी अपना शौर्य दिखा सकते हैं। इसके साथ ही हम सोम, मंगल, बुध और आड़े दिन की अन्धाधुन शुभकामनाएँ भी दे सकते हैं, भले ही अगला किसी की मैय्यत में खड़ा हो।
अंग्रेजों के समय में मानव को महामानव बनाने वाले सुविचार सिर्फ स्कूलों या सरकारी दफ्तरों के ब्लैक बोर्ड पर ही पढने में आते होंगे, लेकिन अब हम दिन के दस सुविचार भेजकर किसी को भी मात्र दस दिन में महापुरुष बना सकते हैं।
यही नहीं, आज हमारे पास बिग बॉस के बहुतेरे सीज़न हैं और हज़ार करोड़ की प्रॉपर्टी वाली सास-बहुओं के घोर संस्कारी सीरियल भी है, जिन्हें दिखा-दिखाकर हम किसी से भी एक मुक़म्मल बदला ले सकते हैं। इसके अलावा सोते-जागते, खाते-पीते और न जाने क्या-क्या करते हुए रिल्स बनाकर भी हम आज़ादी की लड़ाई लड़ सकते हैं। सोशल मिडिया तो खैर बना ही क्रांति के लिए है, जहाँ बिस्तर में पड़े-पड़े भी आठ दस पोस्ट शेयर करके हम कभी भी कहीं भी क्रांति ला सकते हैं, और अंग्रेज़ तो क्या, किसी माई के लाल में दम नहीं जो ऐसी क्रांतियों से निपट सके।
एक और नुस्खा है जिसका तोड़ दुनिया की किसी भी महाशक्ति के पास नहीं है। अंग्रेजों के समय यदि ‘तीर चीरते हुए दिल’ के साथ दर्द भरी शायरी भेजने की कला विकसित हो गई होती तो अंग्रेज़ दो चार हफ़्तों में ही हमसे आज़ाद हो गए होते। लेकिन दुर्भाग्यवश ये सब उस समय हो न सका। खैर, देर आए दुरुस्त आए। अब हमारे पास तमाम पैतरें हैं जिनसे हम घर बैठे ही आज़ादी की लड़ाई लड़ सकते हैं। अब किसी ने हमें गुलाम बनाने का रिस्क लिया तो उसकी सात पुश्तें उसे माफ़ नहीं करेंगी, और श्राद्ध तो कतई नहीं करेंगी।
कुल मिलाकर अब हमें डरने की ज़रूरत नहीं है, और हम डरते भी नहीं है। गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर का सपना पूरा हुआ ही समझो, अब “मन भयमुक्त है”, हमें किसी के बाप का डर नहीं है। कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जो बिगाड़ना है हम ख़ुद ही बिगाड़ लेंगे, और इसके लिए अब हमें कम से कम किसी दुश्मन की ज़रूरत तो नहीं ही है, हम हर मामले में आत्मनिर्भर जो हो गए ।
लेखक :- सारिका गुप्ता