हमें माफ कर देना बाबा महांकाल, हम आपकी चौखट तक तो आ सकते हैं, लेकिन आपके गरीब भक्तों के लिए गर्भगृह में प्रवेश संभव नहीं होगा। उज्जैन नगरी के राजा आप भले ही है लेकिन अब यहां रामराज्य वाली सरकार है। आपके कैलाश पर्वत पर तो सभी भक्त-देव, भूत-प्रेत, सुर-असुर, नर-पशु सभी बगैर किसी शुल्क के दर्शन के लिए पहुंच जाते थे। लेकिन हमने यहां करोड़ों रुपए खर्च कर महांकाल लोक बनाया है। हर किसी आम भक्त को फोकट में आपके नजदीक नहीं आने दे सकते।
यहां पर ‘शिव’राज है और आपके ‘आशीष’ से पैसे की कोई कमी नहीं है। फिर भी अमीर-गरीब का फर्क आपके दरबार में दिखाना जरूरी है। अब आप ‘वीआईपी’ भगवान हो गए हो। बड़े-बड़े लोग आपके दर्शन के लिए यहां आते हैं। यहां व्यवस्थाएं 5 या 7 स्टार होटल जैसी हैं। जहां मीनू कार्ड पर हर चीज के रेट लिखे होते हैं, वैसे ही बाबा के दर्शन के अलग-अलग रेट तय किए गए। आपको दूर से निहारने के 250, छूने, जल-दूध अर्पण के 1500, भस्म आरती देखने के 200 रुपए तय हैं। मंदिर प्रबंध समिति ने दर्शन के लिए अलग-अलग शुल्क लगाए हैं। व्यवस्था नई नहीं है, लेकिन रोज देशी-विदेशी श्रद्धालु व्यवस्था से भ्रम में थे। इसलिए परिसर में कई बोर्ड लगा दिए। इसमें दर्शन, पूजन, अभिषेक व शीघ्र दर्शन पर खर्च होने वाले रुपए की सूची लगा दी है।
मंदिर में कोई छोटा-बड़ा नहीं… यह बात अब पुरानी हो गई। अब कैटेगरी के अनुसार काम होता है। यदि प्रोटोकॉल से आ रहे हैं, वीवीआइपी श्रेणी के हैं…तो शुल्क नहीं लगेगा। समिति दुपट्टा ओढ़ाकर, आधा या एक किलो का लड्डू पैकेट देकर सम्मान करेगी। 2-3 कर्मियों को भेजकर गेट से लाने-ले-जाने की सुविधा देगी। दशनार्थी सामान्य हैं तो आपको 250 रुपए देने होंगे। बैरिकेड्स से ही दर्शन करने पड़ेंगे। अन्य रसूखदारों के लिए गेट नंबर 4 और 5 तय है। इन दरवाजों के अलावा यदि दूसरे गेट से घुसे, या कोशिश भी की, तो गार्ड दुत्कार देंगे।
लेकिन आप बुरा मत मानना, हमें माफ कर देना…करना पड़ता है बाबा महांकाल..!
लेखक :- लवीन राव ओव्हाल