शनि का प्रवेश वृश्चिक राशि में

शनिदेव जब राशि परिवर्तन करते है तब दो राशियो पर ढैया तथा तीन राशियो पर साढेसाती का प्रभाव शुरू होता है । एक साथ में पाँच राशियो को विशेष रूप से प्रभावित करने कि क्षमता सिर्फ शनि मे है ।शनि मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी है। इसके अलावा तुला राशि में बीस डिग्री (अंश) उच्च का है जबकि मेश राशि में 20 अंश नीच का है। इसकी मूल त्रिकोण राशि कुंभ है। इसको दुख व शोक का कारक भी माना जाता है। 2 नवम्बर 2014 (रविवार की शाम) 6.45 बजे को शनि महाराज तुला राशि छोड़कर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। शनि के इस राशि परिवर्तन के कारण हर राशि पर अलग अलग प्रभाव पड़ेगा।
खगोल की दृष्टि से शनिसौर मंडल में शनि ग्रह सूर्य से 886 मिलियन मील दूर है जबकि आकार के हिसाब से शनि दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है, जिसका व्यास 75000 मील है। शनि के नौ उप ग्रह हैं एवं उसके आस पास धूल, कण एवं आकाशीय उल्काओं का मनमोहक तथा रंगबरंगा प्रकाशमान अंगूठी नमुना घेरा होता है, जो सौर मंडल में उसको सबसे खूबसूरत ग्रह बनाता है। शनि ग्रह पृथ्वी की तुलना में 700 गुना बड़ा है। हालांकि, उसकी द्रव्यता पृथ्वी की तुलना में सोवें हिस्से की है।
शनि किसी भी राशि मे प्रवेश करने के 6 माह पूर्व ही अगली राशि का फल प्रकट करने लग जाते है ।
इस दौरान जिन लोगों को साढ़ेसाती या ढैय्या चल रहा है। उन्हें शनिदेव को मनाने के लिए उनकी आराधना करना चाहिए। साथ ही, शनि से जुड़ा दान करना चाहिए। साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि दोष से पीडि़त लोगों को शनि देव के धामों के दर्शन करने चाहिए। शनि एक न्यायाधीश ग्रह है, जो आपको अपने पुराने कर्मों का फल प्रदान करता है, यदि आप अपने पुण्य किए हैं तो अच्छे फल, यदि आप ने पाप किए हैं तो बुरे परिणाम मिलेंगे
पिछली 19 जून से 2 नवम्बर 2014  तक दो प्रमुख ग्रह गुरु व शनि उच्च राशिगत चल रहे थे । गुरु, शनि व राहु का क्रमश: कर्क, तुला व कन्या राशि में आना सैकड़ों वषरें में एक बार होता है। यह संयोग 296 वर्ष के बाद हुआ था । शनि व गुरु दोनों उच्च के हों तो राजयोग कारक होते हैं। यदि चर लग्न हो तो उस स्थिति में ये दोनों ग्रह क्रमश: हंस व शश योग का निर्माण करते हैं। दोनों ही ग्रह केंद्रस्थ होकर आपस में जुड़ेंगे, शनि की गुरु पर पूर्ण दृष्टि होगी। यह स्थितियां राजयोग कारक हैं।गुरु, शनि, राहु व केतु का दुर्लभ संयोग 296 वर्ष बाद बना था । 19 जून 2014  को गुरु अपनी उच्च राशि कर्क में प्रवेश किया था । शनि अपनी उच्च राशि तुला में पहले से ही चल रहा है।
शनि देव का एक सिद्ध धाम उत्तर प्रदेश में ब्रजमंडल के कोसीकलां गांव के पास है। यह सिद्ध पीठ कोसी से 6 किलोमीटर दूर है और नंद गांव से सटा हुआ है। यह शनि मंदिर भी दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक है। यहां मांगी मुराद बड़ी जल्दी पूरी होती है।
मंदिर भगवान कृष्ण के समय से स्थापित है। जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, उनके दर्शन करने के लिए सभी देवतागण गए थे, जिनमें शनिदेव भी थे, लेकिन माता यशोदा और नंदबाबा ने शनिदेव महाराज जी की वक्र दृष्टि होने की वजह से कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं करवाए।
इस बात से शनि महाराज को बड़ा दुख हुआ उन्होंने सोचा वक्र दृष्टि भी भगवान श्रीकृष्ण की ही दी हुई है इसमें मेरा क्या दोष। इस पर कृष्ण भगवान ने अपने भक्त के दुख को समझते हुए। शनि महाराज को स्वप्न में यह प्रेरणा दी कि नंदगांव से उत्तर दिशा में एक वन है वहां जाकर मेरी भक्ति करो तो मैं स्वयं आकर आपको दर्शन दूंगा।
शनि महाराज ने ऐसा ही किया। मान्यता है कि शनि देव की आराधना से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने कोयल के रूप में शनि महाराज को उपरोक्त वन में दर्शन दिए और कोयल से रूपांतर होकर के उपरोक्त वन का नाम कोकिलावन पड़ा।
माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने शनि महाराज से कहा कि आज से आप यही पर विराजेंगे और यहीं विराजने पर आपकी वक्र दृष्टि नम रहेगी। मैं भी आप की बाईं दिशा में राधा जी के साथ यहीं पर विराजमान रहूंगा। जो भक्तगण अपनी किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर के आप के पास आएंगे उसकी पूर्ति आपको करनी होगी और कलयुग में मेरे से भी ज्यादा आप की पूजा अर्चना की जाएगी।
कहते हैं कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करनी चाहिए। इससे शनि की कृपा प्राप्त होती है।
किसी भी  शनि मंदिर में शनिदेव का निवास है। भक्तजन यहां तेल चढ़ाते हैं और अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, जूते आदि सभी यहीं छोड़कर घर चले जाते हैं। ज्योतिषीय मान्यता है कि ऐसा करके रुष्ट शनिदेव को मनाया जा सकता है।
अगर यदि आप पर शनि कि साढेसाती आती है तो घबराये नहीं , क्यों कि शनि दूध का दूध ओर पानी का पानी करते है । साढेसाती के दोरान अपने कर्म अच्छे रखे ।
शनिदेव जब राशि परिवर्तन करते है तब दो राशियो पर ढैया तथा तीन राशियो पर साढेसाती का प्रभाव शुरू होता है । एक साथ में पाँच राशियो को विशेष रूप से प्रभावित करने कि क्षमता सिर्फ शनि मे है । शनि किसी भी राशि मे प्रवेश करने के 6 माह पूर्व ही अगली राशि का फल प्रकट करने लग जाते है ।
शनि की ढैया का प्रभाव :-
मेष ओर सिंह राशि पर शनि कि ढैया लगेगी । इन दोनो राशियो का समय बहुत अधिक विपरीत है,
क्यो कि बृहस्पति भी इनके लिये अनुकूल नही है । अखबार में आने वाले अपराधियो के नाम 90% शनि से प्रभावित होते है । क्यो कि शनि अपनी ढैया ओर साढेसाती मे एक एक कर्म का हिसाब करते है ।
शनि की साढेसाती का प्रभाव :-
तुला, वृश्चिक ओर धनु इन तीन राशियो पर साढेसाती का प्रभाव रहेगा ।
इस साढेसाती का शुरू का एक वर्ष धनु राशि वालो के लिये अत्यन्त विपरीत है,
कही भी सफलता नही मिलेगी, तनाव बढेगा । अगर कुण्डली मे शनिदेव कि स्थिति अच्छी है, ओर आपके
कर्म शुभ है तो शुभ फल प्राप्त होगे ।
2 नवम्बर, 2014 को शनि जैसे ही तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा, प्राकृतिक, राजनैतिक एवं प्रशासनिक गलियारों में हड़कम्प मच सकता है?
राजनीतिक व्यवस्था-
केंद्र में राजनीतिक स्थिरता मिलेगी। प्रांतीय सरकारों में अस्थिरता का योग मिल सकता है। राजनेताओं के आचरण से संबंधित दोष उजागर हो सकते हैं। भ्रष्टाचार एवं अन्य आपराधिक मामलों में कमी हो सकती है।
अर्थव्यवस्था –
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिश्रित फलदायक है। बैंकिंग एवं फायनेंस सेक्टर में बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है। कम्युनिकेशन व कंप्यूटर के क्षेत्र में अनुकूल परिणाम प्राप्त होंगे। महंगाई नियंत्रित हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के संकेत हैं।
कानून व्यवस्था –
कानून व्यवस्था में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। यद्यपि अपराधों की वृद्धि दर में कोई विशेष कमी नहीं दिखाई देगी परन्तु न्यायिक प्रक्रिया के चलते बड़े अपराधियों को दंड मिलेगा और लगेगा कि कानून व्यवस्था में सुधार हो रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध –
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में परिवर्तन के योग हैं। पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में प्रतिकूलता व पूर्वी देशों से संबंधों में प्रगाढ़ता के संकेत मिल रहे हैं।
सामाजिक व्यवस्था –
समाज के लिए ये स्थितियां अनुकूल फलप्रद हैं। समाज में जागरुकता की स्थिति बनेगी और सामाजिक परिवर्तन की स्वत:स्फूर्त चेतना का निर्माण होगा। महिलाओं की स्थिति में सुधार की उम्मीद है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि दास है। इसका रंग सांवला है एवं लंगड़ा होने के कारण इसकी गति धीमी है। इसको सूर्य पुत्र माना जाता है। हालांकि, इस ग्रह को सूर्य के विरोधी ग्रहों में गिना जाता है। शनि का वाहन कौआ है। उत्तर कालामृत के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में शनि निम्नलिखित मामलों में कारक की भूमिका निभाता है –
  • कमजोर स्वास्थ्य
  • बाधाएं
  • रोग
  • दुश्मनी
  • मृत्यु
  • अन्य जातियां
  • दीर्घायु
  • नंपुसकता
  • वृद्धावस्था
  • काला रंग
  • क्रोध
  • विकलांगता
  • संघर्ष
शनि पीड़ा निवारण के लिए करें ये उपाय-
  • दीपावली पर शनि को मनाने के लिए काले तिल का दान करें।
  • एक कटोरी में तेल लेकर उसमें अपनी परछाई देखें और फिर इस तेल का दान करें।
  • हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।
  • किसी जरूरतमंद व्यक्ति को काले कंबल का दान करें।
पं. विशाल दयानन्द शास्त्री

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