कहाँ जा रही हो छोड़ कर राह मेँ मुझे इस तरह माँ
अभी तक तो मैँने चलना भी नही सीखा
अरे मुरझाया हुआ फूल हूँ मै तो
अभी तक तो मैँने खिलना भी नही सीखा
खेल खेल मेँ गिर जाऊ तो कौन साहारा देगा मुझे
मैने तो अभी उछलना भी नही सीखा
चल दी हो तुम कहाँ अकेला कर के मुझे
घर से अकेला अभी तक निकलना भी नही सीखा
कौन पोछेगा मेरे आँसू जब भी तेरी याद मेँ रोया तो
अभी तक तो मैने सम्भलना भी नही सीखा
देगा कौन अपने आँचल की छाँव इस तपती धूप मेँ तेरे सिवा
अभी तक तो मैने जलना भी नही सीखा.
२०२३ की सबसे शानदार कविता
एक अकेला पार्थ खडा है भारत वर्ष बचाने को।सभी विपक्षी साथ खड़े हैं केवल उसे हराने को।।भ्रष्ट दुशासन सूर्पनखा ने माया जाल बिछाया है।भ्रष्टाचारी जितने कुनबे सबने हाथ मिलाया है।।समर…