आज से तीन साल पहले तक किसी ने कल्पना की थी कि ‘टॉयलेट’ रोजमर्रा की जिंदगी में इतना अहम हो जाएगा। यह भी कहा सोचा था कि जिस का जिक्र करने मात्र से नथुनों में सड़ांध भर जाने का अहसास होने लगे उस ‘टॉयलेट’ जैसे सड़े से सब्जेक्ट पर अक्षय कुमार की फिल्म सौ करोड़ी क्लब में शामिल हो जाएगी। कभी यह भी कहा सोचा था कि यही ‘टॉयलेट’ वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच लेटर वॉर का सबब बन जाएगा।
उमा भारती ने जिन्हें मिस्टर बंटाढार की उपाधि से नवाजा उन दिग्विजय सिंह को यह चिंता है कि ३० सितंबर से जब वे सपत्नीक नर्मदा परिक्रमा पर निकलेंगे तो वे और काफिले में जुड़ते जाने वाले नर्मदा (या यूं कहें दिग्गी भक्त) और लघु और दीर्घ शंका कहां करेंगे।जिन दिग्विजय सिंह को बिजली-सड़क और लगातार दो बार सीए रहते प्रदेश की जनता ने विनम्र से मगरूर होते देखा, बिजली और सड़क जैसे मामलों में उदासीनता के कारण मि. बंटाढार जिनके नाम का पर्याय बन गया वे ‘राजा’ अपने लिए आज टॉयलेट की चिंता करें तो प्रजातंत्र के कंधे सवार लोकतंत्र का ऐसा दृश्य कहां देखने को मिलेगा।यूं तो नरेंद्र मोदी को आईना दिखाने में दिग्वजय सिंह कोई मौका नहीं छोड़ते हैं पर स्वच्छ भारत अभियान के मामले में उन्हें अपने दस साल और कांग्रेस के छह दशकों से अधिक के शासन के इतिहास के पन्ने भी पलट लेना चाहिए कि जिन बापू के नाम को जपते रहे उनके स्वच्छ भारत के सपने को आज जितना भी पूरा कर पाए क्या? आज जब नर्मदा मैया के आदेश पर आप परिक्रमा पर निकलने को उतावले हो रहे हैं तो आप को चिंता सता रही है कि बिना टॉयलेट के पेट कैसे साफ होगा।सिंहस्थ, पंचकोशी, पंढरपुर, शिर्डी, वैष्णोदेवी सहित देश के तमाम धार्मिक-आध्यात्मिक स्थलों की पदयात्रा पर जो श्रद्धालु निकलते हैं वो सरकारों से अपेक्षा नहीं करते कि एंबुलेंस मिलेगी या नहीं, सुरक्षा गार्ड रहेंगे या नहीं, पीने का साफ पानी, टॉयलेट आदि की व्यवस्था होगी या नहीं। यह सत्य सबको पता है कि नर्मदा, गंगा हो या गांव की भूलीबिसरी नदी, सब के प्रति पवित्रता का भाव रहना चाहिए, पर क्या यह उससे बड़ी हकीकत नहीं है कि नदियों, स्विमिंग पुल में डुबकी लगाने वालों के कारण भी कुछ जलस्तर बढ़ जाता है।
ऐसे हजारोंहजार आस्थावान श्रद्धालु है जो बिना कोई अपेक्षा-लोभ-मोह के लिए तीर्थाटन पर निकलते हैं। अनेक वर्षों से संत-श्रद्धालु कई कई बार नर्मदा की परिक्रमा करते रहे हैं, उनके मन में तो आज तक यह विचार भी नहीं आया कि शाम को भिक्षा-भोजन भी मिलेगा या नहीं। क्योंकि वे मोह से नहीं मन से मनका-मनका फेरते चलने वाला भाव लेकर यात्रा करते है।शिवराज और मोदी की तरह आप भी इस सचको जानते हैं कि दूरदराज के गांव-पगडंडियों पर सबके लिए टॉयलेट उपलब्ध करा पाना संभव नहीं है फिर भी इन तीन सालों में सरकार ने टॉयलेट बनाने में भी माल खाने का करिश्मा कर दिखाया है। गांवों में पानी का संकट भले ही चरम पर हो लेकिन टॉयलेट बनाने में कीर्तिमान बनाए हैं।
बेहतर होता कि ‘राजा’ विनम्र भाव से सरकार को लिखता कि यह मेरी नितांत निजी यात्रा है। मुझे सरकार से किसी प्रकार की सुविधा की दरकार नहीं है और सरकार ने किसी तरहकी उदारता दिखाई भी तो नकार दूंगा। तीन चार दशक पहले चारधाम की यात्पंरा पर जाने वाले परिजन सत्तू, आटा, दाल, स्टोव आदि जरूरत का सामान सिर पर लादकर घर से जब निकलते थे तो पूरा मोहल्ला गाजे-बाजे से विदा करता था। इसके पीछे भाव यह भी होता था कि पता नहीं अब इनकी खबर भी आए या नही।अभी भी पंचकोशी में कोसौ पेदल चलने वाले, कावड़ यात्री आदि अपनी यात्रा सरकारी सुविधाओं के भरोसे निर्धारित नहीं करते। उनके मन में महाकाल, क्षिप्रा मैया, नर्मदा-गंगा मैया के प्रति आस्था का भाव रहता है।

आप टॉयलेट भी उस सरकार के मुखिया से मांग रहे हैं जो हर तीन महीने में करोड़ों का कर्ज लेकर परदेश को नंबर वन का खिताब दिलाना चाहता है। लगातार कृषि कर्मण अवार्ड जीतने वाले प्रदेश के किसान कर्ज में आत्महत्या करें सरकार की गोली का शिकार हों और इन परिवारों के दर्द भरे चेहरों पर घोषणाओं के इश्तिहार चस्पा करने वाली सरकार से आप को टॉयलेट की मांग करते हुए जरा भी झिझक महसूस नहीं हुई।असंख्य लोग हैं जिन्हें टॉयलेट नसीब नहीं है, क्या उन लोगों ने जाना छोड़ दिया। सदियों से खेत का दोहरा उपयोग होता रहा है। आप भी कोई कोना, पेड़ की ओट ढूंढ लेना।