राजमाता देवी अहिल्याबाई जन्मदिन पर विशेष

पुण्यश्लोक राजमाता देवी अहिल्याबाई होलकर का जन्म महाराष्ट्र के चोंडी गांव में आज ही के दिन 31 मई सन् 1725 में हुआ था उनके का नाम पिता मानकोजी शिंदे था इनका विवाह इन्दौर राज्य के संस्थापक महाराज मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था।

मल्हारराव के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 ई. में हो गया था। पति की मौत के बाद अहिल्या पूरी तरह से अपने ससुर के कामकाज में हाथ बंटाने लगी… होलकर राज्य विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा था… कुछ समय बाद ससुर मल्हारराव भी चल बसे… अहिल्या के लिए यह एक और बड़ा झटका था, क्योंकि ससुर मल्हारराव की मृत्यु के बाद सारे राज्य की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी.. इसके बाद अहिल्याबाई के पुत्र मालेराव ने शासन संभाला पर अपने राजतिलक के कुछ दिनों बाद ही मालेराव गंभीर रुप से बीमार हो गये और महज 22 साल की उम्र में चल बसें और राज्य का दायित्व पूर्ण रूप से अहिल्याबाई के कंधों पर आ गया..!!

अहिल्याबाई ने नये प्रदेश बढ़ाने की इच्छा नही की, बल्कि जो प्रदेश था उसी को संभालते हुए अपनी प्रजा को सुखी रखना उन्होने अपना लक्ष्य बना लिया। रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर ले गईं वहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और स्थापत्य कला का अदभुत प्रतीक अहिल्या महल बनवाया। इंदौर का राजवाड़ा भी उनके समय का ही है..!!

पवित्र नर्मदा नदी के किनारे बनाए गए इस महल के ईर्द-गिर्द अहिल्याबाई की राजधानी बनी। उस दौरान महेश्वर साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था। वहाँ तरह-तरह के कारीगर आने लगे ओर शीघ्र ही वस्त्र-निर्माण का वह एक सुंदर केंद्र बन गया..!!

बाहुबली फ़िल्म में दिखाई गई माहिष्मति की संकल्पना प्राचीन नगरी अहिल्याबाई की राजधानी महेश्वर से ही ली गई है…मणिकर्णिका में भी “मैं रहूँ या ना रहूँ.. भारत ये रहना चाहिये इस गाने में दिखाये गये घाट महेश्व के ही है”..!!

उनका सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया। भगवान शकंर की वह बड़ी भक्त थी। बिना उनके पूजन के पानी तक ग्रहण नहीं करती थी..!!

सारा राज्य उन्होने शिव चरणों में अर्पित कर रखा था और उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी।
“संपति सब रघुपति के आहि”—सारी संपत्ति भगवान की है, इसका राजा भरत के बाद प्रत्यक्ष और एकमात्र उदाहरण शायद वही थीं। राजाज्ञाओं पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नही लिखती थी। नीचे केवल “श्रीशंकर” लिख देती थी..!!

उनके रूपयो, राज मुद्रा पर शिवलिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसो पर नंदी का। तब से लेकर भारतीय स्वराज्य की प्राप्ति तक इंदौर के सिंहासन पर जितने राजा आये सबकी राजाज्ञाएं जब तक श्रीशंकर की आज्ञा के बिना जारी नही होती, तब तक वह राजाज्ञा नही मानी जाती थी ओर उस पर अमल नही होता था..!!

राज्य के भीतर महेश्वर और ओंकारेश्वर जैसे तीर्थ क्षेत्र और बाहर सम्पूर्ण भारत वर्ष में जितने भी प्रमुख हिंदू तीर्थ थे, प्राय: उन सभी स्थानों पर मंदिर, घाट, अन्न-छत्र, पूजन कीर्तन आदि कोई-न-कोई पारमार्थिक प्रवृत्ति उनकी ओर से की गई…!!

काशी का मूल विश्वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 17 वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर ने सन्1777 में इसे सुंदर स्वरूप प्रदान किया…. मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़े हुए मंदिरों को पुनः बनवाने का श्रेय हमारी राजमाता अहिल्याबाई को ही जाता है..!!

उन्होंने सोमनाथ में शिव का मंदिर बनवाया…. कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में माँ अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं..!!

काशी, प्रयाग, गया, जगन्नाथपुरी, द्वारका, रामेश्वर, बदरी-केदार, हरिद्वार, मतलब यह कि ऐसे हर तीर्थ मे उन्होने कोई-न-कोई पवित्र काम किया है.. जो आज भी देखे जा सकते है..!!

13 अगस्त 1795 को राजमाता अहिल्याबाई भौतिक शरीर को त्यागकर परम् आराध्या श्री शिव में विलीन हो गयी…. देह की सीमाएँ है… पर माँ का अपनी प्रजा के प्रति वात्सल्य, आराध्य शिव के प्रति निष्ठा अमर है…!!

राजमाता पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर को आज उनकी जन्म जयंती पर सादर नमन वंदन पहुँचे…!

ये देश आपका ही है माँ.. आपके आशीर्वाद की छाँव हम सभी पर बनी रहें..
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