चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व मनाया जाता है. होली पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है. “होलाष्टक” के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है. दुलैण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है. इसके कारण प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. वर्ष 2015 में 26 फरवरी से 5 मार्च, 2015 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी. होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है|
इसके बारे में हमारे शास्त्रों पदम पुराण, भविष्य पुराण आदि में कहा गया है कि इन दिनों कोई भी शुभ कार्य से होली तक परहेज रखें।
इन आठ दिनों में व्रत, पूजा पाठ, हवन यज्ञ जो करवाता है उन्हें पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जो सिद्धि साधना करता है उन्हें सिद्धि की प्राप्ति होती है। इन दिनों ब्रह्मचर्य का पालन करने से आत्म बल और शील बल की प्राप्ति होती है। आठ दिनों तक धार्मिक कार्यो पर जोर दें। प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनि रोग शत्रु, दुर्भाग्य, दरिद्रनाश के लिए एवं क्रूर कर्म करने के लिए ये समय श्रेष्ठ बताए गए हैं।
नरसिंह स्तोत्र का करें पाठ
प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने और उससे छुटकारा पाने के लिए होलाष्टक में विष्णु के साथ-साथ नरसिंह स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसी प्रकार अपने आराध्य देवों के चरणों मे निम्नानुसार रंग व पूजा सामग्री अर्पित करना चाहिए।
जैसे यदि सूर्य के कारण कोई निर्बलता आ रही है तो सूर्य को कुमकुम अर्पित करें। चंद्रमा के लिए अबीर, मंगल ले लिए लाल चंदन या सिंदूर , बुध के लिए हरा रंग या मेहंदी, बृहस्पति के लिए केशर, हल्दी पाउडर, शुक्र के लिए सफेद चंदन, मक्खन व मिक्षी, शनि के लिए नीला रंग और राहू-केतु के लिए पंच गव्य अथवा गोबर गोमूत्र के साथ काले तिल अर्पण करने चाहिए।
ज्योतिषीय आधार पर अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, दादशी को बृहस्पति, त्रयोदशी को बुद्ध, चतुर्दशी को मंगल व पूर्णिमा को राहू उग्र होकर काम प्रधान रहने से मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते है। फाल्गुन पूर्णिमा को उच्च अभिलाषी सूर्य विषुवत रेखा के करीब होता है। इससे अन्य ग्रह अपने प्रभाव के लिए स्वतंत्र हो जाते है।
अनूप गुप्ता