प्रतिस्पर्धा अपने साथ करें, दूसरों से नहीं – प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विद्यार्थियों से चिंता और तनाव से मुक्त होने और सकारात्मक नजरिया विकसित करने की सलाह दी है। बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं के मद्देनजर वह रेडियो कार्यक्रम मन की बात के माध्यम से छात्रों को संबोधित कर रहे थे।

प्रधानमंत्री ने छात्रों से कहा : प्रतिस्पर्धा अपने साथ करें, दूसरों से नहीं एवं जीवन के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर वह उनके साथ हैं। उन्होंने कहा कि वह इस समय उनको ज्‍यादा अंक लाने का कोई तरीका नहीं बातयेंगे बल्कि, लेकिन परीक्षाओं के प्रति सही नजरिए के महत्व पर बल दिया। उन्होंने छात्रों से घबराने और तनाव में नहीं आने का आग्रह किया। उन्होंने कहा अच्छे प्रदर्शन के लिए सारे प्रयास किए जाने चाहिए जबकि परीक्षाओं को बोझ नहीं बनना चाहिए।

अपने ही रिकॉर्ड तो 35 बार तोड़ने वाले प्रसिद्ध खिलाड़ी सर्गेई बुबका का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा प्रतिस्पर्धा किसी और के साथ नहीं स्वयं अपने साथ होनी चाहिए । उन्होंने छात्रों से अपनी क्षमताओं, तैयारी और कड़े परिश्रम पर भरोसा रखने का आग्रह किया।

प्रधानमंत्री ने कहा अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहें, संकल्प के प्रति अटल; सफलता पीछे चलेगी। सभी छात्रों को आने वाली परीक्षाओं के लिए शुभकामनाएं देते हुए कहा परीक्षाएं सीखने और अपनी क्षमताओं की पहचान की माध्‍यम होनी चाहिए ना कि दूसरों को दिखाने के लिए।

 प्रधानमंत्री द्वारा आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ का मूल पाठ

नमस्ते, युवा दोस्तो। आज तो पूरा दिन भर शायद आपका मन क्रिकेट मैच में लगा होगा, एक तरफ परीक्षा की चिंता और दूसरी तरफ वर्ल्ड कप हो सकता है आप छोटी बहन को कहते होंगे कि बीच – बीच में आकर स्कोर बता दे। कभी आपको ये भी लगता होगा, चलो यार छोड़ो, कुछ दिन के बाद होली आ रही है और फिर सर पर हाथ पटककर बैठे होंगे कि देखिये होली भी बेकार गयी, क्यों? exam आ गयी। होता है न! बिलकुल होता होगा, मैं जानता हूँ। खैर दोस्तो, आपकी मुसीबत के समय मैं आपके साथ आया हूँ। आपके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। उस समय मैं आया हूँ। और मैं आपको कोई उपदेश देने नहीं आया हूँ। ऐसे ही हलकी – फुलकी बातें करने आया हूँ।

बहुत पढ़ लिया न, बहुत थक गए न! और माँ डांटती है, पापा डांटते है, टीचर डांटते हैं, पता नहीं क्या क्या सुनना पड़ता है। टेलीफोन रख दो, टीवी बंद कर दो, कंप्यूटर पर बैठे रहते हो, छोड़ो सबकुछ, चलो पढ़ो यही चलता है न घर में? साल भर यही सुना होगा, दसवीं में हो या बारहवीं में। और आप भी सोचते होंगे कि जल्द exam खत्म हो जाए तो अच्छा होगा, यही सोचते हो न? मैं जानता हूँ आपके मन की स्थिति को और इसीलिये मैं आपसे आज ‘मन की बात’ करने आया हूँ। वैसे ये विषय थोड़ा कठिन है।

आज के विषय पर माँ बाप चाहते होंगे कि मैं उन बातों को करूं, जो अपने बेटे को या बेटी को कह नहीं पाते हैं। आपके टीचर चाहते होंगे कि मैं वो बातें करूँ, ताकि उनके विद्यार्थी को वो सही बात पहुँच जाए और विद्यार्थी चाहता होगा कि मैं कुछ ऐसी बातें करूँ कि मेरे घर में जो pressure है, वो pressure कम हो जाए। मैं नहीं जानता हूँ, मेरी बातें किसको कितनी काम आयेंगी, लेकिन मुझे संतोष होगा कि चलिये मेरे युवा दोस्तों के जीवन के महत्वपूर्ण पल पर मैं उनके बीच था. अपने मन की बातें उनके साथ गुनगुना रहा था। बस इतना सा ही मेरा इरादा है और वैसे भी मुझे ये तो अधिकार नहीं है कि मैं आपको अच्छे exam कैसे जाएँ, पेपर कैसे लिखें, पेपर लिखने का तरीका क्या हो? ज्यादा से ज्यादा marks पाने की लिए कौन-कौन सी तरकीबें होती हैं? क्योंकि मैं इसमें एक प्रकार से बहुत ही सामान्य स्तर का विद्यार्थी हूँ। क्योंकि मैंने मेरे जीवन में किसी भी exam में अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं किये थे। ऐसे ही मामूली जैसे लोग पढ़ते हैं वैसे ही मैं था और ऊपर से मेरी तो handwriting भी बहुत ख़राब थी। तो शायद कभी-कभी तो मैं इसलिए भी पास हो जाता था, क्योंकि मेरे teachers मेरा पेपर पढ़ ही नहीं पाते होंगे। खैर वो तो अलग बातें हो गयी, हलकी-फुलकी बातें हैं।

लेकिन मैं आज एक बात जरुर आपसे कहना चाहूँगा कि आप परीक्षा को कैसे लेते हैं, इस पर आपकी परीक्षा कैसी जायेगी, ये निर्भर करती है। अधिकतम लोगों को मैंने देखा है कि वो इसे अपने जीवन की एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण घटना मानते हैं और उनको लगता है कि नहीं, ये गया तो सारी दुनिया डूब जायेगी। दोस्तो, दुनिया ऐसी नहीं है और इसलिए कभी भी इतना तनाव मत पालिये। हाँ, अच्छा परिणाम लाने का इरादा होना चाहिये। पक्का इरादा होना चाहिये, हौसला भी बुलंद होना चाहिये। लेकिन परीक्षा बोझ नहीं होनी चाहिये, और न ही परीक्षा कोई आपके जीवन की कसौटी कर रही है। ऐसा सोचने की जरुरत नहीं है।

कभी-कभार ऐसा नहीं लगता कि हम ही परीक्षा को एक बोझ बना देते हैं घर में और बोझ बनाने का एक कारण जो होता है, ये होता है कि हमारे जो रिश्तेदार हैं, हमारे जो यार-दोस्त हैं, उनका बेटा या बेटी हमारे बेटे की बराबरी में पढ़ते हैं, अगर आपका बेटा दसवीं में है, और आपके रिश्तेदारों का बेटा दसवीं में है तो आपका मन हमेशा इस बात को compare करता रहता है कि मेरा बेटा उनसे आगे जाना चाहिये, आपके दोस्त के बेटे से आगे होना चाहिये। बस यही आपके मन में जो कीड़ा है न, वो आपके बेटे पर pressure पैदा करवा देता है। आपको लगता है कि मेरे अपनों के बीच में मेरे बेटे का नाम रोशन हो जाये और बेटे का नाम तो ठीक है, आप खुद का नाम रोशन करना चाहते हैं। क्या आपको नहीं लगता है कि आपके बेटे को इस सामान्य स्पर्धा में लाकर के आपने खड़ा कर दिया है? जिंदगी की एक बहुत बड़ी ऊँचाई, जीवन की बहुत बड़ी व्यापकता, क्या उसके साथ नहीं जोड़ सकते हैं? अड़ोस – पड़ोस के यार दोस्तों के बच्चों की बराबरी वो कैसी करता है! और यही क्या आपका संतोष होगा क्या? आप सोचिये? एक बार दिमाग में से ये बराबरी के लोगों के साथ मुकाबला और उसी के कारण अपने ही बेटे की जिंदगी को छोटी बना देना, ये कितना उचित है? बच्चों से बातें करें तो भव्य सपनों की बातें करें। ऊंची उड़ान की बातें करें। आप देखिये, बदलाव शुरू हो जाएगा।

दोस्तों एक बात है जो हमें बहुत परेशान करती है। हम हमेशा अपनी प्रगति किसी और की तुलना में ही नापने के आदी होते हैं। हमारी पूरी शक्ति प्रतिस्पर्धा में खप जाती है। जीवन के बहुत क्षेत्र होंगे, जिनमें शायद प्रतिस्पर्धा जरूरी होगी, लेकिन स्वयं के विकास के लिए तो प्रतिस्पर्धा उतनी प्रेरणा नहीं देती है, जितनी कि खुद के साथ हर दिन स्पर्धा करते रहना। खुद के साथ ही स्पर्धा कीजिये, अच्छा करने की स्पर्धा, तेज गति से करने की स्पर्धा, और ज्यादा करने की स्पर्धा, और नयी ऊंचाईयों पर पहुँचने की स्पर्धा आप खुद से कीजिये, बीते हुए कल से आज ज्यादा अच्छा हो इस पर मन लगाइए। और आप देखिये ये स्पर्धा की ताकत आपको इतना संतोष देगी, इतना आनंद देगी जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। हम लोग बड़े गर्व के साथ एथलीट सेरगेई बूबका का स्मरण करते हैं। इस एथलीट ने पैंतीस बार खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ा था। वह खुद ही अपने exam लेता था। खुद ही अपने आप को कसौटी पर कसता था और नए संकल्पों को सिद्ध करता था। आप भी उसी लिहाज से आगे बढें तो आप देखिये आपको प्रगति के रास्ते पर कोई नहीं रोक सकता है।

युवा दोस्तो, विद्यार्थियों में भी कई प्रकार होते हैं। कुछ लोग कितनी ही परीक्षाएं क्यों न भाए बड़े ही बिंदास होते हैं। उनको कोई परवाह ही नहीं होती और कुछ होते हैं जो परीक्षा के बोझ में दब जाते हैं। और कुछ लोग मुह छुपा करके घर के कोने में किताबों में फंसे रहते हैं। इन सबके बावजूद भी परीक्षा परीक्षा है और परीक्षा में सफल होना भी बहुत आवश्यक है और में भी चाहता हूँ कि आप भी सफल हों लेकिन कभी- कभी आपने देखा होगा कि हम बाहरी कारण बहुत ढूँढ़ते हैं। ये बाहरी कारण हम तब ढूँढ़ते हैं, जब खुद ही confused हों। खुद पर भरोसा न हो, जैसे जीवन में पहली बार परीक्षा दे रहे हों। घर में कोई TV जोर से चालू कर देगा, आवाज आएगी, तो भी हम चिड़चिड़ापन करते होंगे, माँ खाने पर बुलाती होगी तो भी चिड़चिड़ापन करते होंगे। दूसरी तरफ अपने किसी यार-दोस्त का फ़ोन आ गया तो घंटे भर बातें भी करते होंगें । आप को नहीं लगता है आप स्वयं ही अपने विषय में ही confusion हैं।

दोस्तो खुद को पहचानना ही बहुत जरुरी होता है। आप एक काम किजीये बहुत दूर का देखने की जरुरत नहीं है। आपकी अगर कोई बहन हो, या आपके मित्र की बहन हो जिसने दसवीं या बारहवी के exam दे रही हो, या देने वाली हो। आपने देखा होगा, दसवीं के exam हों बारहवीं के exam हों तो भी घर में लड़कियां माँ को मदद करती ही हैं। कभी सोचा है, उनके अंदर ये कौन सी ऐसी ताकत है कि वे माँ के साथ घर काम में मदद भी करती हैं और परीक्षा में लड़कों से लड़कियां आजकल बहुत आगे निकल जाती हैं। थोड़ा आप observe कीजिये अपने अगल-बगल में।

आपको ध्यान में आ जाएगा कि बाहरी कारणों से परेशान होने की जरुरत नहीं है। कभी-कभी कारण भीतर का होता है. खुद पर अविश्वास होता है न तो फिर आत्मविश्वास क्या काम करेगा? और इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ जैसे-जैसे आत्मविश्वास का अभाव होता है, वैसे वैसे अंधविश्वास का प्रभाव बढ़ जाता है। और फिर हम अन्धविश्वास में बाहरी कारण ढूंढते रहते हैं। बाहरी कारणों के रास्ते खोजते रहते हैं. कुछ तो विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिनके लिए हम कहते हैं आरम्म्भीशुरा। हर दिन एक नया विचार, हर दिन एक नई इच्छा, हर दिन एक नया संकल्प और फिर उस संकल्प की बाल मृत्यु हो जाता है, और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं। मेरा तो साफ़ मानना है दोस्तो बदलती हुई इच्छाओं को लोग तरंग कहते हैं। हमारे साथी यार- दोस्त, अड़ोसी-पड़ोसी, माता-पिता मजाक उड़ाते हैं और इसलिए मैं कहूँगा, इच्छाएं स्थिर होनी चाहिये और जब इच्छाएं स्थिर होती हैं, तभी तो संकल्प बनती हैं और संकल्प बाँझ नहीं हो सकते। संकल्प के साथ पुरुषार्थ जुड़ता है. और जब पुरुषार्थ जुड़ता है तब संकल्प सिद्दी बन जाता है. और इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि इच्छा + स्थिरता = संकल्प। संकल्प + पुरुषार्थ = सिद्धि। मुझे विश्वास है कि आपके जीवन यात्रा में भी सिद्दी आपके चरण चूमने आ जायेगी। अपने आप को खपा दीजिये। अपने संकल्प के लिए खपा दीजिये और संकल्प सकारात्मक रखिये। किसी से आगे जाने की मत सोचिये। खुद जहां थे वहां से आगे जाने के लिए सोचिये। और इसलिए रोज अपनी जिंदगी को कसौटी पर कसता रहता है उसके लिए कितनी ही बड़ी कसौटी क्यों न आ जाए कभी कोई संकट नहीं आता है और दोस्तों कोई अपनी कसौटी क्यों करे? कोई हमारे exam क्यों ले? आदत डालो न। हम खुद ही हमारे exam लेंगें। हर दिन हमारी परीक्षा लेंगे। देखेंगे मैं कल था वहां से आज आगे गया कि नहीं गया। मैं कल था वहां से आज ऊपर गया कि नहीं। मैंने कल जो पाया था उससे ज्यादा आज पाया कि नहीं पाया। हर दिन हर पल अपने आपको कसौटी पर कसते रहिये। फिर कभी जिन्दगी में कसौटी, कसौटी लगेगी ही नहीं। हर कसौटी आपको खुद को कसने का अवसर बन जायेगी और जो खुद को कसना जानता वो कसौटियों को भी पार कर जाता है और इसलिए जो जिन्दगी की परीक्षा से जुड़ता है उसके लिए क्लासरूम की परीक्षा बहुत मामूली होती है।

कभी आपने भी कल्पना नहीं की होगी की इतने अच्छे अच्छे काम कर दिए होंगें। जरा उसको याद करो, अपने आप विश्वास पैदा हो जाएगा। अरे वाह! आपने वो भी किया था, ये भी किया था? पिछले साल बीमार थी तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाये थे। पिछली बार मामा के घर में शादी थी, वहां सप्ताह भर ख़राब हो गया था, तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाये थे। अरे पहले तो आप छः घंटे सोते थे और पिछली साल आपने तय किया था कि नहीं नहीं अब की बार पांच घंटे सोऊंगा और आपने कर के दिखाया था। अरे यही तो है मोदी आपको क्या उपदेश देगा। आप अपने मार्गदर्शक बन जाइए। और भगवान् बुद्ध तो कहते थे अंतःदीपो भव:।

मैं मानता हूँ, आपके भीतर जो प्रकाश है न उसको पहचानिए आपके भीतर जो सामर्थ्य है, उसको पहचानिए और जो खुद को बार-बार कसौटी पर कसता है वो नई-नई ऊंचाइयों को पार करता ही जाता है। दूसरा कभी- कभी हम बहुत दूर का सोचते रहते हैं। कभी-कभी भूतकाल में सोये रहते हैं। दोस्तो परीक्षा के समय ऐसा मत कीजिये। परीक्षा समय तो आप वर्तमान में ही जीना अच्छा रहेगा। क्या कोई बैट्समैन पिछली बार कितनी बार जीरो में आऊट हो गया, इसके गीत गुनगुनाता है क्या? या ये पूरी सीरीज जीतूँगा या नहीं जीतूँगा, यही सोचता है क्या? मैच में उतरने के बाद बैटिंग करते समय सेंचुरी करके ही बाहर आऊँगा कि नहीं आऊँगा, ये सोचता है क्या? जी नहीं, मेरा मत है, अच्छा बैट्समैन उस बॉल पर ही ध्यान केन्द्रित करता है, जो बॉल उसके सामने आ रहा है। वो न अगले बॉल की सोचता है, न पूरे मैच की सोचता है, न पूरी सीरीज की सोचता है। आप भी अपना मन वर्तमान से लगा दीजिये। जीतना है तो उसकी एक ही जड़ी-बूटी है। वर्तमान में जियें, वर्तमान से जुड़ें, वर्तमान से जूझें। जीत आपके साथ साथ चलेगी।

मेरे युवा दोस्तो, क्या आप ये सोचते हैं कि परीक्षा आपकी क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए होती हैं। अगर ये आपकी सोच है तो गलत है। आपको किसको अपनी क्षमता दिखानी है? ये प्रदर्शन किसके सामने करना है? अगर आप ये सोचें कि परीक्षा क्षमता प्रदर्शन के लिए नहीं, खुद की क्षमता पहचानने के लिए है। जिस पल आप अपने मन्त्र मानने लग जायेंगे आप पकड़ लेंगें न, आपके भीतर का विश्वास बढ़ता चला जाएगा और एक बार आपने खुद को जाना, अपनी ताकत को जाना तो आप हमेशा अपनी ताकत को ही खाद पानी डालते रहेंगे और वो ताकत एक नए सामर्थ्य में परिवर्तित हो जायेगी और इसलिए परीक्षा को आप दुनिया को दिखाने के लिए एक चुनौती के रूप में मत लीजिये, उसे एक अवसर के रूप में लीजिये। खुद को जानने का, खुद को पह्चानने का, खुद के साथ जीने का यह एक अवसर है। जी लीजिये न दोस्तो।

दोस्तो मैंने देखा है कि बहुत विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो परीक्षाओं के दिनों में नर्वस हो जाते हैं। कुछ लोगों का तो कथन इस बात का होता है कि देखो मेरी आज exam थी और मामा ने मुझे wish नहीं किया. चाचा ने wish नहीं किया, बड़े भाई ने wish नहीं किया। और पता नहीं उसका घंटा दो घंटा परिवार में यही debate होता है, देखो उसने विश किया, उसका फ़ोन आया क्या, उसने बताया क्या, उसने गुलदस्ता भेजा क्या? दोस्तो इससे परे हो जाइए, इन सारी चीजों में मत उलझिए। ये सारा परीक्षा के बाद सोचना किसने wish किये किसने नहीं किया। अपने आप पर विश्वास होगा न तो ये सारी चीजें आयेंगी ही नहीं। दोस्तों मैंने देखा है की ज्यादातर विद्यार्थी nervous हो जाते हैं। मैं मानता हूँ की nervous होना कुछ लोगों के स्वभाव में होता है। कुछ परिवार का वातावरण ही ऐसा है। नर्वस होने का मूल कारण होता है अपने आप पर भरोसा नहीं है। ये अपने आप पर भरोसा कब होगा, एक अगर विषय पर आपकी अच्छी पकड़ होगी, हर प्रकार से मेहनत की होगी, बार-बार revision किया होगा। आपको पूरा विश्वास है हाँ हाँ इस विषय में तो मेरी mastery है और आपने भी देखा होगा, पांच और सात subjects में दो तीन तो agenda तो ऐसे होंगे जिसमें आपको कभी चिंता नहीं रहती होगी। nervousness कभी एक आध दो में आती होगी। अगर विषय में आपकी mastery है तो nervousness कभी नहीं आयेगी।

आपने साल भर जो मेहनत की है न, उन किताबों को वो रात-रात आपने पढाई की है आप विश्वाश कीजिये वो बेकार नहीं जायेगी। वो आपके दिल-दिमाग में कहीं न कहीं बैठी है, परीक्षा की टेबल पर पहुँचते ही वो आयेगी। आप अपने ज्ञान पर भरोसा करो, अपनी जानकारियों पर भरोसा करो, आप विश्वास रखो कि आपने जो मेहनत की है वो रंग लायेगी और दूसरी बात है आप अपनी क्षमताओं के बारे में बड़े confident होने चाहिये। आपको पूरी क्षमता होनी चाहिये कि वो पेपर कितना ही कठिन क्यों न हो मैं तो अच्छा कर लूँगा। आपको confidence होना चाहिये कि पेपर कितना ही लम्बा क्यों न होगा में तो सफल रहूँगा या रहूँगी। confidence रहना चाहिये कि में तीन घंटे का समय है तो तीन घंटे में, दो घंटे का समय है तो दो घंटे में, समय से पहले मैं अपना काम कर लूँगा और हमें तो याद है शायद आपको भी बताते होंगे हम तो छोटे थे तो हमारी teachers बताते थे जो सरल questions है उसको सबसे पहले ले लीजिये, कठिन को आखिर में लीजिये। आपको भी किसी न किसी ने बताया होगा और मैं मानता हूँ इसको तो आप जरुर पालन करते होंगे।

दोस्तो MyGov. पर मुझे कई सुझाव, कई अनुभव आए हैं। वो सारे तो मैं शिक्षा विभाग को दे दूंगा, लेकिन कुछ बातों का मैं उल्लेख करना चाहता हूँ!

मुंबई महाराष्ट्र के अर्णव मोहता ने लिखा है कि कुछ लोग परीक्षा को जीवन मरण का इशू बना देते हैं अगर परीक्षा में फेल हो गए तो जैसे दुनिया डूब गयी हैं। तो वाराणसी से विनीता तिवारी जी, उन्होंने लिखा है कि जब परिणाम आते है और कुछ बच्चे आत्महत्या कर देते हैं, तो मुझे बहुत पीड़ा होती है, ये बातें तो सब दूर आपके कान में आती होंगी, लेकिन इसका एक अच्छा जवाब मुझे किसी और एक सज्जन ने लिखा है। तमिलनाडु से मिस्टर आर. कामत, उन्होंने बहुत अच्छे दो शब्द दिए है, उन्होंने कहा है कि स्टूडेंट्स worrier मत बनिए, warrior बनिए, चिंता में डूबने वाले नहीं, समरांगन में जूझने वाले होने चाहिए, मैं समझता हूँ कि सचमुच मैं हम चिंता में न डूबे, विजय का संकल्प ले करके आगे बढ़ना और ये बात सही है, जिंदगी बहुत लम्बी होती है, उतार चढाव आते रहते है, इससे कोई डूब नहीं जाता है, कभी-कभी अनेच्छिक परिणाम भी आगे बढ़ने का संकेत भी देते हैं, नयी ताकत जगाने का अवसर भी देते है!

एक चीज़ मैंने देखी हैं कि कुछ विद्यार्थी परीक्षा खंड से बाहर निकलते ही हिसाब लगाना शुरू कर देते है कि पेपर कैसा गया, यार, दोस्त, माँ बाप जो भी मिलते है वो भी पूछते है भई आज का पेपर कैसा गया? मैं समझता हूँ कि आज का पेपर कैसा गया! बीत गयी सो बात गई, प्लीज उसे भूल जाइए, मैं उन माँ बाप को भी प्रार्थना करता हूँ प्लीज अपने बच्चे को पेपर कैसा गया ऐसा मत पूछिए, बाहर आते ही उसको कह दे वाह! तेरे चेहरे पर चमक दिख रही है, लगता है बहुत अच्छा पेपर गया? वाह शाबाश, चलो चलो कल के लिए तैयारी करते है! ये मूड बनाइये और दोस्तों मैं आपको भी कहता हूँ, मान लीजिये आपने हिसाब किताब लगाया, और फिर आपको लगा यार ये दो चीज़े तो मैंने गलत कर दी, छः marks कम आ जायेंगे, मुझे बताइए इसका विपरीत प्रभाव, आपके दूसरे दिन के पेपर पर पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा? तो क्यों इसमें समय बर्बाद करते हो? क्यों दिमाग खपाते हो? सारी exam समाप्त होने के बाद, जो भी हिसाब लगाना है, लगा लीजिये! कितने marks आएंगे, कितने नहीं आएंगे, सब बाद में कीजिये, परीक्षा के समय, पेपर समाप्त होने के बाद, अगले दिन पर ही मन केन्द्रित कीजिए, उस बात को भूल जाइए, आप देखिये आपका बीस पच्चीस प्रतिशत burden यूं ही कम हो जाएगा|

मेरे मन मे कुछ और भी विचार आते चले जाते हैं खैर मै नहीं जानता कि अब तो परीक्षा का समय आ गया तो अभी वो काम आएगा। लेकिन मै शिक्षक मित्रों से कहना चाहता हूँ, स्कूल मित्रों से कहना चाहता हूँ कि क्या हम साल में दो बार हर term में एक weak का परीक्षा उत्सव नहीं मना सकते हैं, जिसमें परीक्षा पर व्यंग्य काव्यों का कवि सम्मलेन हो. कभी एसा नहीं हो सकता परीक्षा पर कार्टून स्पर्धा हो परीक्षा के ऊपर निबंध स्पर्धा हो परीक्षा पर वक्तोतव प्रतिस्पर्धा हो, परीक्षा के मनोवैज्ञानिक परिणामों पर कोई आकरके हमें lecture दे, debate हो, ये परीक्षा का हव्वा अपने आप ख़त्म हो जाएगा। एक उत्सव का रूप बन जाएगा और फिर जब परीक्षा देने जाएगा विद्यार्थी तो उसको आखिरी moment से जैसे मुझे आज आपका समय लेना पड़ रहा है वो लेना नहीं पड़ता, वो अपने आप आ जाता और आप भी अपने आप में परीक्षा के विषय में बहुत ही और कभी कभी तो मुझे लगता है कि सिलेबस में ही परीक्षा विषय क्या होता हैं समझाने का class होना चाहिये। क्योंकि ये तनावपूर्ण अवस्था ठीक नहीं है|

दोस्तो मैं जो कह रहा हूँ, इससे भी ज्यादा आपको कईयों ने कहा होगा! माँ बाप ने बहुत सुनाया होगा, मास्टर जी ने सुनाया होगा, अगर tuition classes में जाते होंगे तो उन्होंने सुनाया होगा, मैं भी अपनी बाते ज्यादा कह करके आपको फिर इसमें उलझने के लिए मजबूर नहीं करना चाहता, मैं इतना विश्वास दिलाता हूँ, कि इस देश का हर बेटा, हर बेटी, जो परीक्षा के लिए जा रहे हैं, वे प्रसन्न रहे, आनंदमय रहे, हसंते खेलते परीक्षा के लिए जाए!

आपकी ख़ुशी के लिए मैंने आपसे बातें की हैं, आप अच्छा परिणाम लाने ही वाले है, आप सफल होने ही वाले है, परीक्षा को उत्सव बना दीजिए, ऐसा मौज मस्ती से परीक्षा दीजिए, और हर दिन achievement का आनंद लीजिए, पूरा माहौल बदल दीजिये। माँ बाप, शिक्षक, स्कूल, classroom सब मिल करके करिए, देखिये, कसौटी को भी कसने का कैसा आनंद आता है, चुनौती को चुनौती देने का कैसा आनंद आता है, हर पल को अवसर में पलटने का क्या मजा होता है, और देखिये दुनिया में हर कोई हर किसी को खुश नहीं कर सकता है!

मुझे पहले कविताएं लिखने का शौक था, गुजराती में मैंने एक कविता लिखी थी, पूरी कविता तो याद नहीं, लेकिन मैंने उसमे लिखा था, सफल हुए तो ईर्ष्या पात्र, विफल हुए तो टिका पात्र, तो ये तो दुनिया का चक्र है, चलता रहता है, सफल हो, किसी को पराजित करने के लिए नहीं, सफल हो, अपने संकल्पों को पार करने के लिए, सफल हो अपने खुद के आनंद के लिए, सफल हो अपने लिए जो लोग जी रहे है, उनके जीवन में खुशियाँ भरने के लिए, ये ख़ुशी को ही केंद्र में रख करके आप आगे बढ़ेंगे, मुझे विश्वास है दोस्तो! बहुत अच्छी सफलता मिलेगी, और फिर कभी, होली का त्यौहार मनाया कि नहीं मनाया, मामा के घर शादी में जा पाया कि नहीं जा पाया, दोस्तों कि बर्थडे पार्टी में इस बार रह पाया कि नहीं रह पाया, क्रिकेट वर्ल्ड कप देख पाया कि नहीं देख पाया, सारी बाते बेकार हो जाएँगी , आप और एक नए आनंद को नयी खुशियों में जुड़ जायेंगे, मेरी आपको बहुत शुभकामना हैं, और आपका भविष्य जितना उज्जवल होगा, देश का भविष्य भी उतना ही उज्जवल होगा, भारत का भाग्य, भारत की युवा पीढ़ी बनाने वाली है, आप बनाने वाले हैं, बेटा हो या बेटी दोनों कंधे से कन्धा मिला करके आगे बढ़ने वाले हैं!

आइये, परीक्षा के उत्सव को आनंद उत्सव में परिवर्तित कीजिए, बहुत बहुत शुभकामनाएं!

Demo

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